पंकज कुमार श्रीवास्तव
चुनाव आयोग ने उत्तरप्रदेश सहित 5राज्यों के विधानसभा चुनाव के विस्तृत कार्यक्रमों की घोषणा कर दी है।पांचों राज्यों को मिलाकर कुल 690सीटों पर चुनाव होंगे इसमें से 403सीटें सिर्फ उत्तर प्रदेश की हैं और जो 18.34 करोड़ मतदाताओं को मताधिकार का प्रयोग करना है,उसमें 15.02करोड़ सिर्फ उत्तर प्रदेश के हैं।भारतीय राजनीति का एक प्रसिद्ध जुमला है-दिल्ली(केन्द्र)की सत्ता की राह
उत्तर प्रदेश से होकर गुजरती है।इसलिए,सबकी निगाहें उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तरफ टिकी हैं।
उत्तर प्रदेश में 7चरणों में चुनाव होंगे।10फरवरी को पहले चरण के वोट डाले जाएंगे और 7मार्च को अंतिम चरण का।मतगणना 10मार्च को होगी और परिणाम उसी दिन मिलने की आशा है।विधानसभा चुनावों के दौरान आमतौर पर मतदाता अंतिम अवधि में अपने वोट का निर्णय लेता है और वह ऐसे उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहता,जिसके जीतने की संभावना ही न हो।सीएसडीएस सर्वे के अनुसार अंतिम समय में मतदान का निर्णय लेने वालों का प्रतिशत 2007 में 63%,2012 में 70% और 2017 में 54% रहा था।चुनाव आयोग की घोषणा के बाद उत्तरप्रदेश के मन बनाने का समय अब आया है।
अथाह पूंजी और आक्रामक मीडिया मैनेजमेंट के भरोसे प्रभावशाली परशेप्सन विकसित करने में 2014 में मोदीजी ने गजब सफलता पाई,जिसमें उन्हें विनोद राय जैसे नौकरशाहों का जबरदस्त सहयोग मिला।अच्छे दिन आएंगे…,स्विस बैंकों से कालाधन वापस लाने का वादा,भ्रष्टाचारके खिलाफ जीरो टॉलरेंस का वादा,दो करोड़ युवकों को प्रतिवर्ष रोजगार देने का वादा इत्यादि के भरोसे मोदीजी ने अपने पक्ष में जबरदस्त परशेप्सन विकसित किया और देखते ही देखते वह अपराजेय दिखने लगे।
उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव,2017 के पहले मोदीजी ने उत्तरप्रदेश को उत्तमप्रदेश बनाने का,किसानों की आय दोगुना करने और बनारस को क्वेटो शहर बनाने का वादा किया था,जो झूठे जुमले साबित हुए हैं।
डीबी लाइव के सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले हैं।71% लोगों ने विकास के मुद्दे पर योगी सरकार का परफॉर्मेंस अच्छा नहीं माना,वहीं रोजगार सृजन के मुद्दे पर 75%लोगों ने योगी सरकार के परफॉर्मेंस को अच्छा नहीं माना।60%लोग नहीं मानते कि भ्रष्टाचार के मामले में योगी आदित्यनाथ सरकार का परफॉर्मेंस अच्छा है।63% लोग नहीं मानते योगी आदित्यनाथ की सरकार के दौरान कानून व्यवस्था की स्थिति अच्छी रही है।
योगी सरकार के कार्यकाल के दौरान किसानों की स्थिति बद से बदतर हुई है और 1वर्ष से ज्यादा समय तक चले किसान आंदोलन ने किसानों के बीच योगी आदित्यनाथ की अलोकप्रियता को स्थापित करता है।बिना संसद अथवा कैबिनेट के अप्रूवल के 19नवंबर,2021 को प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा काले कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की एकतरफा घोषणा किसानों को मनाने के प्रयास के रूप में परिभाषित किया गया।लेकिन,एमएसपी पर कमेटी नहीं बनाने की भाजपा की वादाखिलाफी की कीमत उत्तर प्रदेश चुनाव में चुकानी पड़ेगी।
कोरोना की तीसरी लहर ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कुव्यवस्था और कुप्रबंध की याद ताजा कर दी है और यह योगी सरकार की अलोकप्रियता का सबब बनेगी।महंगाई और बेरोजगारी भी योगी को अलोकप्रिय स्थापित करेगी।
अयोध्या में श्रीराममंदिर निर्माण और काशी में विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन के बाद भाजपा ने मथुरा के मुद्दे को भी उठाया है।योगी आदित्यनाथ का ताजा बयान कि महज 20%आबादी(अव्यक्त तौर पर मुसलमान)ही उनके विरोधी हैं।यह दिखलाता है कि आगामी चुनाव में भाजपा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को अपना मुख्य हथियार बनाने का प्रयास करती दिखती है।लेकिन,सफलता मिलती नहीं दिखती और यह भाजपा के चिंता का सबब बना हुआ है।
2014में राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के प्रवेश के बाद जितने भी विधानसभा चुनाव हुए उन सभी चुनाव में भाजपा ने सिर्फ मोदी जी के चेहरे के आधार पर चुनाव लड़ने की हरचंद कोशिश की है। ‘मोदी है तो मुमकिन है’-इस जुमले ने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों को नेपथ्य में धकेला है।लेकिन,एबीपी-सी वोटर के ताजा सर्वे के मुताबिक 8% लोग भी नहीं मानते इस बार मोदी का चेहरा काम आ पाएगा।
2019के आमचुनाव के बाद जहां भी विधानसभा चुनाव हुए,भाजपा के वोटों में जबरदस्त गिरावट दर्ज हुई है।30अक्तूबर,2021को 14राज्यों में 3लोकसभा की सीट और 29विधानसभा की सीटों के लिए उपचुनाव हुए,उसमें भी भाजपा को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा।
भाजपा को 2002 में 20.8%,2007 में 16.97%,2012 में 15% वोट मिले थे।इन तीनों ही चुनावों में भाजपा को समाजवादी पार्टी से कम वोट मिले थे।2017 में भाजपा के वोटों में जबरदस्त उछाल आया और वह 39.67% पर पहुंच गया।भाजपा के वोटों में यह जबरदस्त उछाल की वजह राष्ट्रीय राजनीति में मोदीजी का प्रवेश था।जाहिर सी बात है,भाजपाके कोर वोटर 15-20% ही हैं।
इंडिया टुडेके अप्रकाशित सर्वेक्षण में मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ 42%की गिरावट दर्ज करते हुए 66% से घटकर 24% बताई गई है।उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर योगीकी लोकप्रियता का ग्राफ 49% से घटकर 29% तक पहुंच गया है।2016की नोटबंदी,2017का जीएसटी कानून, बढ़ती मंहगाई और बेरोजगारी,गिरती अर्थव्यवस्था, कोरोना काल का कुप्रबंध ने यह स्थिति पैदा कर दी है कि 2022के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा अपने कोर वोट-15-20%बचा ले,तो बड़ी बात होगी।मोदीने उत्तरप्रदेश में डबल इंजन की सरकार का वादा किया था।आज,भाजपा उत्तरप्रदेश में डबल एंटीइनकमबेंसी का सामना कर रही है।
समाजवादी पार्टी को 2002में 25.37%,2007में 25.43%,2012में 29.15% 2017 में 21.82% वोट मिले थे।2002,2007और 2012 में उसे भाजपा से ज्यादा वोट मिले थे।जाहिर सी बात है कि उसके कोर वोटर की संख्या भाजपा से तो ज्यादा ही हैं।अखिलेश की रैलियों में भाजपाविरोध का जनाक्रोश तो झलकता है,लेकिन वह समाजवादी गठबंधन के पक्ष में वोटों में तब्दील हो पाएगा इसकी संभावना कम ही है।भाजपा विरोध का यह जनाक्रोश प्रियंका गांधी की रैलियों में भी दिख रहा था।चुनाव आयोग द्वारा रैलियों,जुलूसों, जनसभाओं,नुक्कड़ सभाओं पर प्रतिबंध लगाए जाने से सपा के प्रचार अभियान के समक्ष नई चुनौती आ खड़ी हुई है।सपा गठबंधन के अन्यान्य दल तो और भी अक्षम हैं।
मायावती के नेतृत्व में बसपा चुनावी रेस से बाहर हैं।2019के आमचुनाव में यह बात साबित हो चुका है कि मायावती का दलित वोटर गठबंधन होने पर भी अखिलेश को वोट नहीं देगा।योगी के शासनकाल में दलितों के प्रति इतने जुल्म और अत्याचार हुए हैं कि कोई भी दलित भाजपा के पक्ष में वोट देने से रहा।ऐसी स्थिति में,उनका 22%दलित वोट कांग्रेस के पक्ष में ध्रुवीकृत हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा और तब कांग्रेस एकबारगी सत्ता की दावेदार दिखेगी।
प्रियंका गांधी ने महिलाओं को 40% टिकट देने और लड़कियों को स्कूटी,स्मार्टफोन देने का वादा करके चुनाव को जाति और संप्रदाय से ऊपर उठकर लैंगिक समस्याओं,महिला सशक्तिकरण,महिला उत्पीडन, यौनशोषण जैसी समस्याओं पर केंद्रित किया है।प्रयाग में मोदी द्वारा महिला सम्मेलन से बात बनती नहीं दिख रही है और प्रियंका इस मुद्दे पर बढ़त बनाती दिख रही है।
2019में प्रियंका गांधी ने कांग्रेस का महासचिव बनाए जाने के बाद उत्तर प्रदेश में कांग्रेस में जान फूंकने की कोशिश की है।जिला,अनुमंडल,प्रखंड और पंचायत स्तर तक कांग्रेस का ढांचा नए सिरे से खड़ा किया है।मुद्दों के आधार पर नई पीढ़ी को गोलबंद किया है।लगभग 20000कार्यकर्ता आन्दोलनात्मक गतिविधियों में जेल गए हैं।उन्नाव हो या हाथरस महिलाओं के खिलाफ जुल्म और अत्याचार के खिलाफ सबसे पहले पहुंची हैं।सोनभद्र में मीड डे मील में गड़बड़ी हो या आगरा में बाल्मिकी समाज के व्यक्ति के खिलाफ ज्यादती प्रियंका हर उत्पीड़न के खिलाफ खड़ी हुईं हैं। लखीमपुर-खीरी कांड के बाद किसान आन्दोलन के प्रति भी उनकी शुभकामनाएं और समर्थन स्पष्ट रहा है।कांग्रेस के मामूली से मामूली कार्यकर्ता से वह नियमित और सीधा संपर्क में हैं।और इन तमाम मुद्दों पर वह अखिलेश यादव और सपा से बहुत आगे हैं।
किसान हित की बात हो या मंहगाई, बेरोज़गारी,ढहती अर्थव्यवस्था,बिकते सार्वजनिक उपक्रम हों-तमाम राष्ट्रीय मुद्दों पर भाजपा का विकल्प कांग्रेस प्रियंका ही हो सकती हैं।जनसभाओं,नुक्कड़ सभाओं, रैलियों, जुलूसों पर प्रतिबंध के बाद कांग्रेस और प्रियंका ही संसाधन,मानव संसाधन,तकनीकी कौशल, आधारभूत संरचना के मामले में सक्षम हैं।
इसलिए, उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी गेम चेंजर साबित होंगी।