दो दशक बाद जल्द होने वाला आम चुनाव राष्ट्रवाद के साये में होगा। पुलवामा हमला मामले में पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के तहत भारतीय वायु सेना के सर्जिकल 2 को अंजाम देने के बाद भाजपा गदगद है। पार्टी को उम्मीद है कि इस कार्रवाई से वर्ष 1999 में कारगिल युद्घ के बाद बही राष्ट्रवादी बयार बीते आम चुनाव की तरह पीएम मोदी के पक्ष में लहर पैदा करेगी। गौरतलब है कि तब एक वोट से सरकार गिरने के बाद कारगिल युद्घ के कारण पूरे देश में बही राष्ट्रवादी बयार ने भाजपा की सत्ता में वापसी करा दी थी। तब महज 114 सीटों पर सिमटी कांग्रेस को ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा था।भाजपा के रणनीतिकारों की माने तो पाकिस्तान के खिलाफ इस कार्रवाई ने एक बार फिर से पूरे आमचुनाव को राष्ट्रवाद पर केंद्रित कर दिया है। राष्ट्रवाद के साये में होने वाले आम चुनाव में पार्टी के पास सबसे बड़ा राष्ट्रवादी सियासी चेहरा पीएम मोदी है। विपक्षी एका और बड़े राज्यों में विपक्षी गठबंधन से चिंता में पड़ी पार्टी इस चुनाव को किसी भी तरह से स्थानीय मुद्दों के इतर नेतृत्व के मुद्दे पर केंद्रित करना चाहती थी।
अब वायु सेना के सर्जिकल स्ट्राइक के साथ ही न सिर्फ सारे स्थानीय मुद्दों के हवा हो जाने की संभावना बन गई है, बल्कि पार्टी को यह भी लगता है कि निर्णायक पीएम के सवाल पर अपने अपने राज्यों में मजबूत क्षेत्रीय दलों को भी बीते चुनाव की तरह इस बार भी नुकसान उठाना होगा। गौरतलब है कि तब कई राज्यों में लोगों ने क्षेत्रीय पार्टी से नाराजगी न होने केबावजूद महज मोदी के नाम पर भाजपा के पक्ष में वोट दिया।
राजस्थान की जनसभा से भाजपा ने इस मुद्दे को भुनाने की रणनीति को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है। अब आम चुनाव तक पार्टी के सभी नेता जनसभाओं में अपने भाषण को मुख्य रूप से इसी मुद्दे पर केंद्रित रखेंगे। इसके अलावा पार्टी राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर पर लगातार राजनीतिक कार्यक्रमों का आयोजन करेगी। इस दौरान पीएम की छवि को भुनाने की भी रणनीति बनी है।
बीते सदी के अंत साल 1999 में हुए आम चुनाव में वर्ष 1998 में हुए कारगिल युद्घ के कारण बही राष्ट्रवादी बयार में भाजपा ने अपनी सत्ता बचा ली थी। इससे पहले एक वोट से सरकार गिरने के बाद अगले चुनाव के परिणामों के प्रति भाजपा आशंकित थी। मगर इस चुनाव में पार्टी ने न सिर्फ अपना 182 सीटों का रिकार्ड कायम रखा, बल्कि कांग्रेस के सीटों की संख्या 141 से घट कर 114 रह गई। यह कांग्रेस की अब तक की सबसे बड़ी हार थी। हालांकि वर्ष 2014 के चुनाव में महज 44 सीटें हासिल कर कांग्रेस ने करारी हार का अपना ही कीर्तिमान ध्वस्त कर लिया।