बीजेपी में भितरघात का खतरा: अपने बिछा सकते हैं राह में कांटे

राजद के पूर्व अध्यक्ष गिरिनाथ सिंह चतरा से टिकट की आस में भाजपा में शामिल हुए। टिकट नहीं मिला। नीलम देवी भी इसी आस में झाविमो छोड़कर भाजपा में आईं। टिकट की दौर में उल्टे मुंह गिरीं। कोडरमा में प्रणव वर्मा करीब छह माह पूर्व झाविमो छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे, निराशा उन्हें भी हाथ लगी। कोडरमा सांसद रवींद्र कुमार राय और रांची सांसद रामटहल चौधरी का पत्ता कट गया। बड़ा सवाल है कि अब इनका और इनके समर्थकों का रुख क्या होगा?

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव कहते हैं कि सभी भाजपा की विचारधारा से प्रभावित होकर पार्टी में शामिल हुए थे। टिकट की कहीं कोई बात ही नहीं थी। हमें नहीं लगता कि कहीं कोई दिक्कत पेश आएगी। हालांकि भाजपा प्रवक्ता कुछ भी कह रहे हों लेकिन खुद कमल दल खेमा भितरघात की आशंका से डरा हुआ है। भाजपा में सर्वाधिक जिच रांची, कोडरमा और चतरा सीट को लेकर ही थी। यही वजह थी कि यहां से तमाम दावेदार अपने पैरोकारों के बूते दिल्ली साध रहे थे।

कांफिडेंस लेवल का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चतरा में गिरिनाथ सिंह समेत आठ भाजपा नेताओं ने अपने समर्थकों द्वारा नामांकन का पर्चा तक खरीद लिया था। इनमें पूर्व सांसद धीरेंद्र अग्रवाल भी शामिल थे। इन सभी को झटका लगा है। यहां रूठने-मनाने का दौर अभी चलेगा, संभव है कुछ मान भी जाएं। कोडरमा में भी नाराजगी है। हालांकि सांसद रवींद्र राय इससे इन्कार करते हैं।

रवींद्र राय ने सोशल मीडिया में अपने पोस्ट के माध्यम से यह स्पष्ट कर दिया है कि वे नाराज नहीं हैं। लेकिन एकमात्र भूमिहार सांसद का टिकट कटा है, उनके समर्थक इसे आसानी से तो नहीं पचा सकेंगे। वैसे भी बाबूलाल मरांडी को कोडरमा में अभी भी भाजपा नेता पराया नहीं समझते। यहां राजद का खेमा भी अन्नपूर्णा से कुछ ज्यादा ही नाराज है। मुश्किल तो पेश आएगी। रांची सांसद रामटहल तो अब तक बगावत का झंडा बुलंद किए हैं। प्रदेश भाजपा उन्हें मानने में जुटी है। संभव है वे मान जाएं। लेकिन उनके महतो समर्थक भी मान जाएंगे, इसे लेकर संशय है।

रांची, चतरा और कोडरमा संसदीय सीट की घोषणा में विलंब का कारण शीर्ष नेताओं की वर्चस्व की लड़ाई रही। सहमति बन गई, तो घोषणा हो गई। कोडरमा से अन्नपूर्णा देवी भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री भूपेंद्र यादव की वजह से मौजूदा सांसद रवींद्र राय पर भारी पड़ीं। वहीं, चतरा में सह संगठन मंत्री सौदान सिंह को सुनील सिंह के अलावा कोई मंजूर नहीं था। संजय सेठ तो मुख्यमंत्री रघुवर दास के करीबी बताए ही जाते हैं। भाजपा नेतृत्व ने भी इन शीर्ष नेताओं के निर्णय पर मुहर लगा दी।

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