बिहार के महागठबंधन में 40 में से 37 सीटों पर विवाद नहीं

महागठबंधन में सम्मानजनक हिस्सेदारी से ज्यादा बड़ा मसला लोकसभा सीटों पर दावेदारी को लेकर है। घटक दलों में बिहार की कुल 40 में से 37 सीटों पर ज्यादा विवाद नहीं दिखाई दे रहा है। सिर्फ तीन सीटों पर दो बड़े घटक दलों में तकरार के हालात हैं।

ये सीटें हैं दरभंगा, मधेपुरा और मुंगेर। तीनों सीटों को कांग्रेल छोडऩे के पक्ष में नहीं है और राजद देने के पक्ष में नहीं है। विवाद लंबा खिंच रहा है। सुलझाने के लिए दिल्ली-पटना और रांची में कई दौर की पंचायतें हो चुकी हैं। फिर भी समाधान होता नहीं दिख रहा है। छोटे घटक दल बेकरार हैं, क्योंकि उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। बड़े दलों का भी वजूद फंसा हुआ है। इस बार चूके या दूसरे को महत्व दिए तो वोट बैंक खिसक सकता है। 

राजद और कांग्रेस के लिए नाक का सवाल है। 2009 में राजद ने सीट देने से पहले कांग्रेस से पहलवानों की सूची मांगी थी। अबकी कांग्रेस ने पहले ही पहलवान का जुगाड़ कर लिया है। उन सीटों के लिए भी पहलवान खोज लिए गए हैं, जिनपर राजद की नजर है। इसलिए राजद की ओर से अबकी दूसरा दांव चला गया है।

रांची से ही लालू प्रसाद ने सीट बंटवारे का फार्मूला तय कर दिया है। सूत्र बता रहे हैं कि अपनी पार्टी के लिए 20 सीटें रखी हैं। कांग्रेस को 10 और बाकी 10 सीटें अन्य घटक दलों के लिए रखी है। लालू फार्मूले से कांग्रेस सहमत नहीं है। लिहाजा दबाव का खेल जारी है। इसमें छोटे घटक दल मोहरा बने हुए हैं और बड़े दल अपना मोर्चा ठीक कर रहे हैं।

पूरा गठबंधन दो खेमे में बंट गया है। राजद के पक्ष में नई बनी विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) है तो कांग्रेस के साथ राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) की ताकत है। वामदलों का झुकाव कांग्रेस की ओर दिख रहा है। शरद यादव का कुनबा राजद के साथ खड़ा है।

सबसे ज्यादा मुश्किल में हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) है। उसे मजबूत सहारे की तलाश है। महागठबंधन में सबसे पहले शामिल होकर भी उसे ज्यादा कुछ नहीं मिलता दिख रहा है। जीतनराम मांझी शायद इसीलिए दुखी हैं और अपना हक-हिस्सा जानने के लिए बेताब हैं। 

राजद-कांग्रेस के बीच सबसे बड़ा पेच पप्पू यादव को लेकर फंसा है। पिछली बार लालटेन लेकर मधेपुरा के रास्ते लोकसभा पहुंचे पप्पू अबकी सीधे राहुल गांधी के संपर्क में हैं। लालू की राजनीतिक विरासत के मुद्दे पर तेजस्वी से ठनी हुई है। पप्पू मधेपुरा सीट शरद यादव के लिए छोडऩे के लिए तैयार हैं, लेकिन पूर्णिया के लिए अड़े हैं।

तेजस्वी अबकी किसी भी हाल में पप्पू को दिल्ली नहीं जाने देना चाहते हैं, जबकि पप्पू ने भी अपने सारे घोड़े खोल रखे हैं। पप्पू को रोकने के लिए तेजस्वी ने एक दूसरे पप्पू (उदय सिंह) को तैयार रखा है। राजद उन्हें पूर्णिया का पहलवान बता रहा है।

भाजपा को बाय करने के बाद वह लालू के सीधे संपर्क में हैं। मामला बुरी तरह फंस गया है। मधेपुरा पर अगर शरद की बात बनती है तो पप्पू के लिए कांग्र्रेस पूर्णिया का दावा छोडऩे के लिए कतई तैयार नहीं होगी। 

महागठबंधन में दूसरी बड़ी तकरार दरभंगा सीट को लेकर है। यहां से कीर्ति झा आजाद ने पिछला चुनाव भाजपा के टिकट पर जीता था। अब कांग्र्रेस के साथ हैं। कांग्र्रेस की हैसियत कम करने के लिए तेजस्वी यादव ने अपने खेमे से विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) के मुकेश सहनी को आगे बढ़ाया है। 

मुंगेर में कांग्रेस के बाहुबली और संभावित प्रत्याशी अनंत सिंह के सामने राजद ने आत्मबल का सहारा लिया है। तेजस्वी ने जदयू के पूर्व एमएलसी राम बदन राय को जबसे इशारा किया है, वह तभी से आगे बढ़कर ताल ठोक रहे हैं। कांग्रेस अनंत पर अड़ी है और राजद राम बदन पर। कांग्र्रेस के अनिल शर्मा और श्याम सुंदर सिंह धीरज भी उम्मीद लगाए बैठे हैं।  

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