राजनीतिक संवाददाता द्वारा
रांची, झारखंड का माहौल गर्म है। सियासत तेजी से रंग बदल रही है। पल-पल बदलते समीकरण पर दिल्ली तक नजरें गड़ाई हुई हैं। यहां कभी भी कोई बड़ा सियासी धमाका हो सकता है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ ऑफिस ऑफ प्रॉफिट केस में कार्रवाई की सुगबुगाहट के बीच राज्यपाल रमेश बैस गुरुवार को दोपहर बाद रांची लौट आए हैं। इस बीच सीएम हेमंत सोरेन भी किसी अप्रत्याशित कार्रवाई से निपटने के लिए पूरी तरह सतर्क हैं।
दिल्ली में बीते दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से राज्यपाल रमेश बैस की मुलाकात के बाद अटकलों का बाजार गर्म है। खासकर तब जब राज्यपाल की ओर से यह कहा गया है कि सीएम हेमंत सोरेन के खिलाफ खदान लीज मामले में कार्रवाई करने के लिए पर्याप्त आधार हैं। बहरहाल उनके रुख पर निगाह लगी हैं। किसी बड़ी कार्रवाई की आशंका में सबकी नजरें राजभवन पर टिक गई हैं। वहीं सत्तारुढ़ दल झामुमो और हेमं सोरेन सरकार भी आने वाली विपत्ति को लेकर सतर्क है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस मामले में अपने खास लोगों को कानूनी परामर्श लेने का निर्देश दिया है। अनिश्चितता से भरे माहौल से निकालने के लिए नामचीन विधि विशेषज्ञों और बड़े कानूनी एक्सपर्ट से संपर्क किया जा रहा है। ताकि किसी तरह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुर्सी बचाई जा सके। इधर, झारखंड मुक्ति मोर्चा अपने कार्यकारी अध्यक्ष मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ होने वाली किसी भी तरह की कार्रवाई से पहले आज थोड़ी देर में प्रेस वार्ता करने जा रही है।
माना जा रहा है कि इस संवाददाता सम्मेलन में जेएमएम संभावित कार्रवाई के पहले विपक्ष को चेतावनी देते हुए आगे की रणनीति का खुलासा करेगा। इधर झारखंड की सत्ता में भागीदार कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर तेज हो रही राजनीतिक हलचल के बीच दिल्ली बुलाए गए हैं। वे कांग्रेस हाईकमान को राज्य के ताजा राजनीतिक हालात की जानकारी देंगे।
बता दें कि राज्यपाल रमेश बैस के दिल्ली दौरे और चुनाव आयोग की ओर से संभावित कार्रवाई के मद्देनजर झारखंड में सियासी गतिविधियां एकाएक तेज हो गई है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरन की सरकार भी आने वाले संकट को लेकर पूरी तरह सतर्क है। चुनाव आयोग द्वारा राज्यपाल को मंतव्य देने, और राज्यपाल द्वारा सीएम को हटाने की कार्रवाई करने पर कानूनी मोर्चे पर चुनौती देने की भी तैयारी है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर कुर्सी गंवाने के आसन्न संकट पर झारखंड हाई कोर्ट के अधिवक्ता नवीन कुमार सिंह ने अपनी राय रखते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 192 (2) के अनुसार राज्यपाल को इस तरह के मसले पर चुनाव आयोग से मंतव्य मांगने का अधिकार है। आयोग के मंतव्य पर ही राज्यपाल अपना निर्णय लेंगे। कानूनविद ने बताया कि खदान लीज प्रकरण में हेमंत सोरेन ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8ए, 9 और 9ए का सीधा उल्लंघन किया है।
उच्च न्यायालय के अधिवक्ता ने बताया कि सीएम ने स्वेच्छा से लीज सरेंडर नहीं किया है, जब सबके संज्ञान में आया तब उन्होंने लीज सरेंडर किया। ऐसे में उनपर धारा 9 के तहत भी मामला भी बनता है। मुख्यमंत्री और खनन विभाग के मंत्री रहते हुए ही हेमंत सोरेन ने लीज लेने की सारी प्रक्रिया पूरी की है। इसलिए यह मामाला धारा 9ए के तहत भी कार्रवाई के दायरे में आएगा। बता दें कि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8ए, 9 और 9ए में ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में सदस्यता समाप्त किए जाने की कार्रवाई होती है
दूसरी ओर आज जेएमएम केंद्रीय कार्यालय में पार्टी विधायक सुदिव्य कुमार सोनू और केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के आरोप का कानूनी तर्क और उदाहरण के साथ जवाब दिया है. जेएमएम विधायक सुदिव्य कुमार सोनू ने कहा कि खदान लीज का मामला लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के 9-A के दायरे में नहीं आता है. बीजेपी नेताओं के द्वारा एक साजिश के तहत राज्य सरकार के गिरने को लेकर राजनीति की जा रही है.
जेएमएम विधायक ने कहा कि जिस माइंस की बात कही जा रही है वहां अब तक किसी प्रकार का कोई खनन तक नहीं हुआ है. यहां तक की उस जमीन पर अब तक बिजली का कनेक्शन तक नहीं है. जीएसटी का कोई मामला भी इस खदान पर नहीं बनता है. हेमंत सोरेन ने इस खदान लीज का उल्लेख 2009 से लेकर 2019 तक के चुनाव में शपथ के माध्यम से किया है. चुनाव आयोग को इस मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी अपना पक्ष रखने का मौका देना चाहिये. न्यायालय को भी इस मामले में नजर रखने की जरूरत है.
सुप्रीम कोर्ट ने 1964 में धारा 9A के एक फैसले में कहा था कि खनन पट्टा कोई व्यवसाय नहीं है और ना ही माल की आपूर्ति का कांट्रेक्ट है.धारा 9 A में कहा गया है कि एक व्यक्ति को तब अयोग्य घोषित किया जाएगा, जब उन्होंने किसी के साथ कांट्रेक्ट साइन किया हो या सप्लाई ऑफ गुड्स के लिये सरकार के साथ व्यापार किया हो.खनन पट्टा सप्लाई ऑफ गुड्स का व्यवसाय नहीं है और यह सरकार द्वारा किये गए कार्य निष्पादन के अंतर्गत नहीं आता है.2001 में माननीय सुप्रीम कोर्ट के करतार सिंह बधाना बनाम हरि सिंह नलवा बनाम अन्य के मामले में तीन जजों की बेंच ने कहा कि खनन लीज सरकार द्वारा किये गए कार्य के निष्पादन के अंतर्गत नहीं आता है.
1964 में C V K RAO बनाम DENTU BHASKARA RAO का माननीय सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट में पारा 13 कहता है.
सरकार के साथ सड़क निर्माण या बांध के निर्माण जैसे काम किये है और ऐसे कार्यों के निष्पादन के लिये किसी कांट्रेक्ट को साइन किया है.9A खनन पट्टे के पट्टेदार की अयोग्यता साबित नहीं करता है , खनन पट्टा कार्यो के निष्पादन का कांट्रेक्ट नहीं है.1964, 2001 और 2006 में इस प्रकार की बातें सामने आई है, लेकिन फैसला एक ही था और हम सभी सर्वोच्च न्यायालय के कानून का पालन करना होगा.