सड़क के दोनों तरफ़ खड़ी तेंदू, टीक और साल के पेड़ों की लंबी क़तारें यह बताने के लिए काफ़ी हैं कि अब हम ‘सतपुड़ा के घने जंगलों’ में प्रवेश कर चुके हैं. दिल्ली से तक़रीबन हज़ार किलोमीटर दूर, मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल ज़िले अलिराजपुर में जैसे-जैसे गाड़ी ज़िला मुख्यालय से ककराना बस्ती की ओर बढ़ने लगती है, सायं-सायं करती पहाड़ी हवा में महुए की गंध घुलने लगती है. हर किलोमीटर के साथ ‘शहरी’ सभ्यता पीछे छूटती जा रही है. इसका पहला संकेत मिलता है मोबाईल फ़ोन के सिग्नल ग़ायब…
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