रामविलास पासवान के छोटे भाई के लिए आसान नहीं हाजीपुर

Ramvilas Paswan's younger brother is not easy for Hajipur

News Agency : लोकसभा चुनाव 2019 के लिए अभी तक चार चरणों का चुनाव संपन्न हो गया है। पांचवे चरण में seven राज्यों की fifty one सीटों पर vi मई को वोट डाले जाएंगे। इसी चरण में बिहार के हाजीपुर संसदीय क्षेत्र में भी चुनाव होना है। एलजेपी अध्यक्ष रामविलास पासवान इस बार चुनावी मैदान में नहीं हैं। उनकी विरासत संभालने की जिम्मेदारी उनके छोटे भाई पशुपति कुमार पारस को मिली है। वे एनडीए उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में हैं। महागठबंधन की तरफ से पूर्व मंत्री शिवचंद्र राम चुनावी मैदान में हैं। पशुपति कुमार पारस के लिए अपने भाई की विरासत को बचाना मुश्किल लग रहा है। वहीं मतदाता की खामोशी ने उनकी परेशानी और बढ़ा दिया है।

2014 के आंकड़ों के मुताबिक यहां पर कुल sixteen,49,547 मतदाता हैं, जिसमें 8,95,047 पुरुष और seven,54,500 महिला मतदाता हैं। बिहार के वैशाली जिले का यह लोकसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है।

1952-1962 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा। कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार राजेश्वरा पटेल यहां से चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे। तो वहीं कांग्रेस के ही 1967 में वाल्मीकि चौधरी निर्वाचित हुए थे। इसके अगले चुनाव 1971 में एक बार फिर हाजीपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा। रामशेखर प्रसाद सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। इसके बाद 1977 लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर रामविलास पासवान चुनाव जीत कर पहली बार सांसद बने।

रामविलास पासवान 1977 से 2014 तक कई बार हाजीपुर से चुनाव जीते। लेकिन उन्हें दो बार यहां से पराजय का सामना भी करना पड़ा। पहली बार 1984 में उन्हें इंडियन नेशनल कांग्रेस के उम्मीदवार रामरतन राम से तो दूसरी बार 2009 में जेडीयू के उम्मीदवार और पूर्व मुख्यमंत्री स्व रामसुंदर दास ने हराया। रामविलास पासवान यहां कई दलों से टिकट पर चुनाव लड़े। 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर तो 1989 में जनता दल से निर्वाचित हुए। वहीं 1999 में पार्टी बदलकर जनता दल (यूनाइटेड) से निर्वाचित हुए। 2004 में रामविलास पासवान, लोक जन शक्ति पार्टी से चुने गए।

2009 में जनता दल (यूनाइटेड) के राम सुंदर दास ने यह सीट अपने नाम कर ली। लेकिन 2014 में मोदी लहर पर सवार होकर राम विलास पासवान, लोक जन शक्ति पार्टी से निर्वाचित हुए। यहां से राम विलास पासवान आठ बार सांसद रह चुके हैं। राम विलास पासवान ने यहां से रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की थी, जिसके बाद उनका मान गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड में दर्ज हो गया था।

1977 में यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित की गई। इसके पहले इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा था। जातीय समीकरण की बात करें, तो इस क्षेत्र में यादव, राजपूत, भूमिहार, कुशवाहा, पासवान की संख्या काफी अधिक है। अति पिछड़ों की भी अच्छी संख्या है, जिनकी चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

2014 के आम चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी के रामविलास पासवान को four,55,652 वोट मिले थे। जबकि दूसरे नंबर पर कांग्रेस के संजीव प्रसाद रहे थे, उनको 2,30,152 मिले थे। वहीं जेडीयू के रामसुंदर दास को मात्र ninety five,790 वोट मिले थे।

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