News Agency : महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार शनिवार शाम समाप्त हो गया। हालांकि यह प्रचार उससे twenty four घंटे पहले अपने चरम पर था। उस समय एक ही समय पर दो जन सभाओं ने राज्य का ध्यान खींचा। एक को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस मुंबई में संबोधित कर रहे थे, जबकि दूसरी को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे नासिक में संबोधित कर रहे थे। फेसबुक पर दोनों जन सभाओं को लाइव देखने वाले दर्शकों की संख्या लगभग एकसमान रही। करीब nine,000 लोगों ने ठाकरे के भाषण को लाइव देखा। वहीं मोदी के भाषण को करीब ten,000 लोगों ने इस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लाइव देखा। इसी जनसभा को जब फडनवीस ने संबोधित किया तो लाइव दर्शकों की संख्या four,000 से ऊपर नहीं गई।
महाराष्ट्र में चुनाव के दो अंतिम चरणों में fifty वर्षीय ठाकरे की जनसभाओं में अच्छी-खासी भीड़ देखने को मिली है। इससे मुश्किल दौर से गुजर रही कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के गठबंधन को कुछ राहत मिल रही है। राज्य की forty eight सीटों में से thirty one पर मतदान हो चुका है। ठाकरे की लोकप्रियता इतनी है कि पिछले कुछ दिनों के दौरान न राकांपा प्रमुख शरद पवार ने और न ही कांग्रेस के प्रमुख राहुल गांधी ने मुंबई में किसी जनसभा को संबोधित किया है। इसमें चौंकाने वाली बात यह है कि ठाकरे की अगुआई वाली मनसे वर्तमान लोक सभा चुनावों में एक भी सीट पर चुनाव नहीं लड़ रही है।
ठाकरे ने अपनी जन सभाओं में मोदी सरकार के प्रदर्शन की बखिया उधेडऩे और लोगों के बीच मोदी की छवि को कमजोर करने की कोशिश की है। मुख्यधारा के मीडिया समूह उनके भाषणों का प्रसारण नहीं करना चाहते हैं, इसलिए ठाकरे सोशल मीडिया का प्रभावी उपयोग कर रहे हैं। ठाकरे और उनकी मनसे की करीब एक दशक से महाराष्ट्र की राजनीति में मौजूदगी है। हालांकि ठाकरे ने लोक सभा चुनावों का इस्तेमाल खुद को निखारने और कांग्रेस-राकांपा गठबंधन की अहमियत को साबित करने में किया है।
ठाकरे ने अपनी जनसभाओं की तैयारी के लिए व्यापक शोध किया है, समाचार चैनलों और सोशल मीडिया वीडियो क्लिप से सबूत एकत्रित किए हैं ताकि वह अपने तर्कों को मजबूती दे सकें। वह ऑडियो-वीडियो टूल का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। मनसे के नेता अनिल शिडोरे का मानना है कि उनकी पार्टी जनता के बीच चर्चा के स्तर पर पहुंच गई है। शिडोर ठाकरे को अपना भाषण तैयार करने में मदद करते हैं। कांग्रेस के रणनीतिकार इस असमंजस में हैं कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में ठाकरे क्या कीमत वसूलेंगे। राज्य में विधानसभा चुनाव सितंबर-अक्टूबर में होने हैं। अशोका यूनिवर्सिटी के त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा के चुनावी आंकड़ों पर आधरित विश्लेषण के मुताबिक वर्ष 2009 के लोक सभा चुनावों के दौरान मनसे को औसतन हर सीट पर करीब one,37,000 वोट मिले थे। प्रख्यात राजनीतिक विज्ञानी सुहास पालशिकर ने कहा कि तब मनसे ने शिव सेना और भाजपा के जनाधार में सेंध लगाई थी।
हालांकि अब शिडोरे और पालशिकार का मानना है कि महाराष्ट्र में प्रमुख राजनीतिक दलों और गठबंधनों का मतदाता जनाधार 2014 के बाद बहुत अधिक बदल गया है। शिडोरे ने कहा, ‘मनसे के मतदाता और शिव सेना/भाजपा के मतदाता एकसमान होने की बात अब प्रासंगिक नहीं है। यह रुझान 2014 के बाद बदल गया है।’ पालशिकार ने कहा कि मुंबई में शिव सेना और राकांपा के मतदाताओं में काफी समानता है। मनसे कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों के परंपरागत जनाधार से मतदाताओं को अपनी तरफ खींच सकती है। उन्होंने कहा, ‘शिव सेना ने राज्य और केंद्र की सत्ता में भागीदार होने के बावजूद भाजपा पर हमला किया है। शिव सेना में मतदाताओं का एक ऐसा धड़ा है, जो भाजपा को समर्थन देने से खफा है।’ पलाशिकार ने कहा कि इससे और कुछ अन्य कारणों से शिव सेना-भाजपा की बढ़त सीमित हो सकती है। पलाशिकार ने कहा कि विधानसभा चुनावों के लिए अपनी मांग बढ़ा रहे हैं और यह राज्य कांग्रेस के नेतृत्व के लिए भी चिंता की बात है। वर्ष 2014 के आम चुनावों में मनसे ने ten सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे हर सीट पर औसतन seventy,000 वोट मिले थे। ये मत शिव सेना-भाजपा के उम्मीदवारों की जीत के मार्जिन की तुलना में बहुत कम थे। शिव सेना-भाजपा गठबंधन ने ये सभी ten सीटें जीती थीं। मनसे ने उसके बाद विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनावों में भी कमजोर प्रदर्शन किया।
हालांकि कांग्रेस महाराष्ट्र के बदले राजनीतिक सांचे में खुद को ढालने में जूझ रही है। दलित नेता प्रकाश आंबेडकर और एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी कांग्रेस पार्टी के दलित और मुस्लिम जनाधार में सेंध लगा रहे हैं। राकांपा में पवार के भतीजे अजित और बेटी सुप्रिया सुले का बारामती में प्रभाव है, लेकिन पूरे राज्य में पकड़ नहीं है। मराठा राजनीति में बदलाव हो रहा है। यहां भूजल उपलब्धता घट रही है, जिससे गन्ना उत्पादन पर असर पड़ रहा है और किसानों की समृद्धि कम हो रही है। राकांपा और कांग्रेस के नेताओं के पास बहुत सी चीनी और बैंक सहकारी संस्थाएं हैं। ठाकरे सितंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों में खुद की जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। राज्य के लोग अपने राजनेताओं की न केवल उनके साहस बल्कि उनकी शिक्षा और शिष्टता की प्रशंसा करते हैं। ऐसे में ठाकरे खुद को विपक्ष के ऐसा के रूप में पेश कर सकते हैं, जो फडणवीस को चुनौती दे सके।