मणिपुर में हो रहे संवैधानिक अधिकारों के हनन को ले मानव श्रृंखला बनाकर शांतिपूर्वक प्रदर्शन

आदिवासियों के ऊपर हो रहे लगातार अत्याचार शोषण मानवता को शर्मसार कर रही है: मनोज टुडू

ईसाई समुदाय, आदिवासी छात्र संघ, केंद्रीय सरना समिति व ऑल संथाल स्टूडेंट यूनियन ने मानव श्रृंखला बनाकर शांति पूर्वक किया प्रदर्शन

हजारीबाग। मणिपुर में हो रहे संवैधानिक अधिकारों के हनन को लेकर ईसाई समुदाय, केंद्रीय सरना समिति, आदिवासी छात्र मोर्चा व ऑल संथाल स्टूडेंट यूनियन के संयुक्त तत्वाधान में मानव श्रृंखला बनाकर शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन किया गया। साथ ही मणिपुर में हिंसा को रोकने के साथ शांति बहाल करने की आह्वान करते हुए आवाज बुलंद किया गया। सभी के संयुक्त तत्वाधान में मणिपुर में शांति बहाल करने को लेकर विरोध प्रकट किया गया। इस शांतिपूर्वक प्रदर्शन में बनाए गए मानव श्रृंखला में हजारों की संख्या में पुरुष व महिलाएं सम्मिलित हुई।

आदिवासी छात्र संघ केंद्रीय उपाध्यक्ष सुशील ओड़िया ने आदिवासी समाज का नेतृत्व किया। यह मानव श्रृंखला समाहरणालय गेट से शुरू होकर डीवीसी चौक, डिस्टिक बोर्ड चौक, बिरसा चौक, नया बस स्टैंड, कार्मेल चौक, कोलंबस कालेज मोड़ होते हुए पतरातू चौक में समाप्त हुआ। इस मौके पर यंग ब्लड आदिवासी समाज सह ऑल संथाल स्टूडेंट यूनियन के केंद्रीय अध्यक्ष मनोज टुडू ने आजाद भारत के मणिपुर में लगभग 80 दिनों से जारी हिंसा को दुर्भाग्यपूर्ण और मानवता को शर्मसार करने वाली घटना बताते हुए कहा कि मणिपुर के मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करना ही हिंसा का मुख्य कारण है। इस फैसले से वहां के अनुसूचित जनजाति कुकी और नागा समुदायों में काफी आक्रोश है और मैतई और कुकी इन्हीं दो समुदायों के बीच अपने हक अधिकार की लड़ाई चल रही है।

और इस लड़ाई में लाखों लोग पलायन कर रहे हैं, लाखों महिलाएं का शोषण हो रहा है, लाखों बच्चे मारे जा रहे हैं, महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाया जा रहा है जो काफी दर्दनाक एवं दिल को झिंझोड़ देने वाली घटनाएं हैं। मणिपुर राज्य एवं केंद्र सरकार से निवेदन है कि जल्द से जल्द मणिपुर में हिंसा रोकने के लिए पहल की जाए और शांति बहाल की जाए।ऐसा फैसला एवं कानून ना लाएं जिससे कि वहां के अनुसूचित जनजाति अपने जल जंगल जमीन से वंचित हो जाए। कहा कि कुकी और नागा अनुसूचित जनजाति समुदाय को अपने सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक भौगोलिक रूप से क्षति पहुंचाने का डर उनके दिलों में समाई हुई है केंद्र सरकार जल्दी दोनों समुदाय के बीच आपसी ताल मिलाकर शांति पहल करने का प्रयास करें।साथ ही साथ मनोज टुडू ने यह भी कहा कि वर्तमान समय में आदिवासियों पर उनके हक अधिकार जल जंगल जमीन पर बेदखल करने का पूरा प्रयास कर रहा है जो की उचित नहीं है।

वर्तमान समय में झारखंड में भी कुड़मी समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग को लेकर लगातार केंद्र सरकार पर दबाव बना रही है जो कि उचित प्रतीत नहीं होता है क्योंकि कुड़मी समुदायों का अनुसूचित जनजाति के सभ्यता संस्कृति से किसी प्रकार की मेल नहीं खाती है । आदिवासियों के अस्तित्व जल जंगल, जमीन ,शिक्षा ,नौकरी पेशा, राजनीति की रक्षा के लिए, कुड़मी समुदायों का अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के मांग का कड़े शब्दों में विरोध हम करते हैं।

क्योंकि वर्तमान समय में भी आदिवासियों की स्थिति संतोषजनक नहीं है ऐसे में कुड़मी समुदायों का अनुसूचित जनजाति दर्जा प्राप्त होने से आदिवासियों का जल जंगल जमीन नौकरी व शिक्षा में कुड़ियों का अधिकार हो जाएगा और आदिवासियों का अस्तित्व पूर्ण रूपेण समाप्त होने की संभावना बढ़ जाएगी। यूनिफॉर्म सिविल कोड (युसीसी) के विषय में कहा कि अचानक पूरे देश में परिवर्तन संभव नहीं है और अभी उचित समय भी नहीं है इसलिए युसीसी के कानून को आदिवासियों से अलग रखा जाए।

आदिवासियों के लिए भी सिनटी एक्ट,एसपिटी एकट,पेसा कानून ,झारखंड के लिए बने हुए युसीसी लागू होने पर इन पर भी प्रभाव पड़ने की संभावना बढ़ जाएगी।

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