छत्तीसगढ़ की विधान -सभा चुनाव में धान फिर बनेगी सियासी मुद्दा

अरुण कुमार चौधरी
‘धान का कटोरा’ कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ की चुनावी थाली में धान बड़े हिस्से में मौजूद रहेगा.चुनाव की बढ़ती सरगर्मी के बीच भूपेश बघेल सरकार का कहना है कि उसने किसानों की क़र्ज़-माफ़ी और धान ख़रीदने के लिए एमएसपी पर भुगतान का वादा पूरा किया है.इसके साथ राज्य सरकार ग्रामीण अंचल के लिए दूसरी स्कीमों को ‘किसानों के साथ न्याय’ के रूप में पेश कर रही है.मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हाल ही में दावा किया था कि किसान, खेतिहर मज़दूरों और गौ-केंद्रित योजनाओं के माध्यम से सरकार आम नागरिकों तक 1.50 लाख करोड़ रुपये पहुँचाने में सफल रही है.
कांग्रेस सरकार का दावा है कि क़र्ज़ माफ़ी के वादे को पूरा कर उसने क़रीब 18 लाख किसानों को क़र्ज़ से मुक्ति दिलाई.इसके साथ ही फसल की बेहतर क़ीमत दिए जाने से न सिर्फ़ किसानों में ख़ुशहाली आई है, बल्कि किसान अधिक
छत्तीसगढ़ की लगभग पौने तीन करोड़ की आबादी में 43 लाख की जनसंख्या किसान परिवारों की है !छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा भी इसलिए कहा जाता है. इलाक़े में 22 हज़ार क़िस्म की धान का संग्रह रिकॉर्ड में मौजूद है.भौगोलिक तौर पर भी ये एक ऐसा हिस्सा है, जिसके दोनों तरफ़ पठारी क्षेत्र हैं और बीच में है मैदानी इलाक़ा.राजधानी रायपुर इसी मैदानी इलाक़े का हिस्सा है. पिछले चुनाव में धान को लेकर किए गए वादे के कारण कहा जाता है कि कांग्रेस ने अच्छी राजनीतिक फसल काटी थी.इत्तेफ़ाक़ से इस समय धान की बुआई का सीज़न है, जिसकी कटाई नवंबर मध्य तक होती है. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव नवंबर के आसपास ही होंगे.
विधानसभा चुनाव से पहले सीएम भूपेश बघेल मंत्री रविन्द्र चौबे ने बड़ा दावा किया है। उन्होंने कहा कि राज्य में फिर से कांग्रेस की सरकार बनते ही धान के समर्थन मूल्य में फिर से वृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि अगली कांग्रेस सरकार बनते ही किसानों को धान के लिए 3600 रुपए प्रति क्विंटल कीमत मिलेगी। उन्होंने कहा कि इसका लाभ किसानों को अगले साल से मिलेगा। वहीं, रवीन्द्र चौबे की इस घोषणा पर विपक्ष ने जमकर हमला बोला है।
चौबे के ने कहा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में राज्य में एक बार फिर से कांग्रेस की सरकार बनाएंगे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को किसानों का साथ इस बार भी मिलेगा। किसानों की मदद से कांग्रेस इस बार राज्य में 75 से ज्यादा सीटों पर चुनाव जीतेगी। बता दें कि राज्य सरकार अभी समर्थन मूल्य के साथ राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत प्रति क्विंटल नौ हजार रुपए की सब्सिडी देती है।
छत्तीसगढ़ में 2023 में 2800 रुपये प्रति क्विंटल देने की घोषणा की। अभी तक राज्य सरकार 2640 रुपये में धान खरीद रही है। इसमें 2040 समर्थन मूल्य और 600 रुपये प्रोत्साहन राशि हैं। इसके साथ ही प्रति एकड़ 20 क्विंटल धान खरीदने का भी फैसला सरकार ने लिया है।पिछले साल के आँकड़ों के अनुसार पंजाब के बाद सबसे अधिक धान की ख़रीद छत्तीसगढ़ में हुई थी.


दूसरी ओर विपक्षी भारतीय जनता पार्टी दो हज़ार किसान चौपालों के माध्यम से ये समझाने की कोशिश कर रही है कि जो मिल रहा है, वो मोदी सरकार की देन है.लेकिन बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह कहते रहे हैं, ‘दाना-दाना ख़रीदने का वादा कांग्रेस का, पूरा करे भाजपा. 2,500 रुपये क्विंटल देने का वादा कांग्रेस का, पैसे दे केंद्र सरकार.’पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह कहते रहे हैं कि धान ख़रीद के लिए पैसे केंद्र से मिल रहे हैं
विपक्षी दल बीजेपी ने जून के पहले 10 दिनों में ‘किसान चौपाल’ आयोजित किए, जिसमें उसने धान ख़रीदी और गोठानों (मवेशियों के लिए दिन में ठहरने के लिए पानी और दूसरी सुविधाओं वाले स्थान) में कथित फ़र्ज़ीवाड़े के मामलों को उठाया.
कांग्रेस पार्टी ने 2018 के चुनाव घोषणा पत्र में धान की सरकारी ख़रीद के लिए 2,500 रुपये प्रति क्विंटल क़ीमत देने का एलान किया था.ये उस समय केंद्र सरकार की ओर से निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य से क़रीब 600-700 रुपये अधिक था.अब राज्य के विधानसभा चुनाव में कुछ ही महीने बचे हैं.
ऐसे इस सम्बन्ध में दर्जन-दो दर्जन से अधिक किसानों से हमारी मुलाक़ात और बातचीत हुई, इसमें से एक -दो से शिकायतें भी सुनने को मिलीं, लेकिन कई किसानों के कृषि क्षेत्र में कामकाज से संतुष्ट दिखे.
.राज्य सरकार एमएसपी के ऊपर जो राशि किसानों को देना चाहती थी, उसको लेकर केंद्र सरकार और उसके बीच कुछ विवाद भी रहा.
खाद्य विभाग के सचिव तोपेश्वर वर्मा के अनुसार केंद्र का कहना था कि वो इस तरह नियमानुसार निर्धारित न्यूनतम मूल्य से अधिक रक़म किसानों को नहीं दे सकते हैं.
तोपेश्वर वर्मा ने बताया कि इसके बाद राज्य सरकार ने मई 2020 से राजीव गांधी किसान न्याय योजना लागू की, जिसके तहत किसानों को ‘इनपुट सब्सिडी’ यानी खेती की ज़रूरतों के सामानों के लिए प्रति एकड़ नौ से दस हज़ार रुपये तक की राशि मुहैया कराई जाती है.
एक सरकारी अधिकारी के मुताबिक़, बीते साल (2022-23) केंद्र सरकार की ओर से निर्धारित एमएसपी 2,040 रुपये थी, तो छत्तीसगढ़ की सरकार की ओर से दी गई इनपुट सब्सिडी को मिलाकर किसानों के हाथ में प्रति क्विंटल धान की फ़सल की क़ीमत 2,649 रुपये आई
इसी तरह का मामला सरकार की ओर से गोबर और गोमूत्र ख़रीदी का भी है, जिनसे सरकार खाद तैयार करवाकर जैविक खेती को बढ़ावा देने का दावा कर रही है.जानकारों का मानना है कि एक ओर तो सरकार अधिक ख़रीद मूल्य देकर किसानों को पैदावार बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रही है, वहीं पैदावार बढ़ाने की ख़ातिर किसान खाद का अधिक मात्रा में इस्तेमाल करने लगा है.
कृषि वैज्ञानिक संकेत ठाकुर इसका एक दूसरा पक्ष रखते हैं.वे कहते हैं कि किसानों की जेब में पैसा आ रहा है, वो रक़म बाज़ार में पहुँच रही है, जिससे ऑटोमोबाइल से लेकर कंज़्यूमर गुड्स, घर-निर्माण के क्षेत्र यानी सीमेंट, स्टील सेक्टर्स तक को बढ़ावा मिल रहा है, जो अर्थव्यवस्था के लिए फ़ायदेमंद है.छत्तीगसढ़ कृषि मंत्रालय के अनुसार सूबे की कुल 2.55 करोड़ जनसंख्या में 70 प्रतिशत कृषि से जुड़ी है
धान की फसल पर सरकार के ज़ोर को लेकर कांग्रेस प्रवक्ता आनंद मोहन शुक्ला कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में पारंपरिक तौर पर किसान एक ही फसल उगाता था, जो धान की हुआ करती थी.
कभी धान और किसान के मुद्दे पर बैकफुट पर रही भाजपा अब इसे मोदी का मास्टरस्ट्रोक बता रही है। वहीं कांग्रेस कह रही है कि इन कवायदों से भाजपा को कोई फायदा नहीं होगा। तू डाल-डाल, मैं पात-पात के क्रेडिट पॉलिटिक्स ने जता दिया है कि शह-मात के खेल आने वाले दिनों में और रोमांचक होंगे।

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