शराबबंदी पर चौतरफा घिरने के बाद बैकफुट पर नीतीश कुमार

समी अहमद
सियासत से अदालत तक सवालों से घिरने के बाद बिहार सरकार 2016 से लागू राज्य के शराबबंदी क़ानून में छह बरसों के बाद फेरबदल कर सकती है। मीडिया में इसके लिए मद्य निषेध व उत्पाद विभाग द्वारा की जा रही तैयारियों की ख़बर आ रही है। ऐसी संभावना जतायी जा रही है कि आगामी बजट सत्र में शराबबंदी क़ानून में संशोधन लाया जा सकता है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए पिछले छह साल से शराबबंदी बेहद अहम रही है लेकिन समाज सुधार के इस काम के लिए उनके क़ानून को कई स्तरों पर गंभीर सवालों का सामना करना पड़ रहा है। एक तरफ़ शराबबंदी में पकड़े गये लोगों से जेल में जगह कम पड़ रही तो दूसरी तरफ़ अदालतों को भी जमानत की अर्जियों को निपटाने में मशक्कत करनी पड़ रही है। इसके साथ ही आये दिन जहरीली शराब से होने वाली मौतें भी नीतीश कुमार के लिए सवाल बनकर खड़ी हैं।
शराबबंदी क़ानून की अपनी समस्याओं के साथ-साथ जहरीली शराब की रोकथाम में नाकामी भी नीतीश कुमार के लिए शर्मिंदगी की वजह बनी है। पिछले आठ दिनों में उनके गृह ज़िले नालन्दा और सारण में लगभग 30 लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हो चुकी है। पिछले साल भी जहरीली शराब से क़रीब 100 लोगों की मौत की ख़बर आ चुकी है।
उम्मीद की जा रही है कि क़ानून में बदलाव के बाद पहली बार शराब पीकर पकड़े जाने पर गिरफ्तार करने के प्रावधान को लागू करने में कुछ ढिलाई दी जाए। अब ऐसे लोगों को महज जुर्माना लेकर छोड़ा जा सकता है। इसी तरह जिस गाड़ी से शराब जब्त होगी उसे कुछ शर्तों के साथ छोड़ा जा सकता है जबकि अभी उन्हें जब्त कर नीलाम करने का प्रावधान है। जैसे गाड़ी छोड़ने के लिए जुर्माने की एक रक़म मांगी जा सकती है। इसी तरह जमानत देने की प्रक्रिया को भी आसान बनाने की बात चल रही है।
नीतीश कुमार पर शराबबंदी क़ानून पूरी तरह से वापस लेने का जबर्दस्त दबाव है लेकिन जदयू के नज़दीकी सूत्रों का कहना है कि नीतीश कुमार इस मामले में बहुत कम ही रियायत देंगे।
इसी साल 11 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने शराबबंदी के 40 मामलों में बिहार सरकार की अपीलों को एक बेंच ने ठुकरा दिया था। राज्य सरकार ने शराबबंदी क़ानून में पकड़े गये लोगों को हाईकोर्ट द्वारा दी गयी अग्रिम और नियमित जमानत के ख़िलाफ़ अपील थी जिसकी सुनवाई के बाद यह फ़ैसला हुआ है।
चीफ़ जस्टिस एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने टिप्पणी की थी कि आपको पता है कि इस कानून ने पटना हाईकोर्ट के कामकाज पर कितना प्रभाव डाला है। उन्होंने कहा, “एक केस को सूची में आने में एक साल लग रहा है और सारे कोर्ट शराबबंदी के मामलों से
ठसाठस भर गये हैं। मुझे बताया गया है कि हर दिन 14-15 हाईकोट जज शराबबंदी के मामले में जमानत की अर्जी पर सुनवाई कर रहे हैं।”
बिहार पुलिस के दस्तावेजों के मुताबिक़ शराबबंदी क़ाननू लागू होने के बाद क़रीब साढ़े तीन लाख मुक़दमे दर्ज हुए हैं जिनमें 4 लाख से अधिक गिरफ्तारी हुई है। क़रीब बीस हजार से अधिक जमानत की अर्जी पर अलग-अलग अदालतों में सुनवाई चल रही है। बिहार में 59 जेल हैं जिनमें क्षमता से क़रीब 23 हजार अधिक कैदी बंद हैं। इन जेलों में बंद 70 हजार कैदियों में 25 हजार कैदी शराबबंदी में पकड़े गये हैं।
शराबबंदी कानून पर अदालत की इस परेशानी से पहले नीतीश कुमार को अपने सहयोगियों से भी सवालों का सामना करना पड़ रहा था और अब भी इस मामले में तू-तू, मैं-मैं हो रही है। एक तरफ़ नीतीश कुमार हर हाल में शराबबंदी क़ानून को बिहार में सख्ती से लागू करना चाहते हैं तो दूसरी ओर सहयोगी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष संजय जायसवाल और अन्य नेता इस क़ानून की समीक्षा के लिए सार्वजनिक बयान दे रह हैं।
बीजेपी और नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ताओं में काफी तल्ख बयानीबाजी भी हो रही है। बीजेपी के अलावा नीतीश के करीबी माने जा रहे हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी भी कई बार शराबबंदी क़ानून की समीक्षा या समाप्ति की मांग कर चुके हैं। मांझी का कहना है कि इस क़ानून के बाद दलित वर्ग के लोगों को सबसे अधिक गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा है जिनके लिए जमानत कराना भी बहुत मुश्किल काम है।
सहयोगी दलों के अलावा विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल भी लगातार नीतीश कुमार पर इस बात के लिए निशाना साधते रहे हैं कि बिहार में शराबबंदी क़ानून सफल नहीं है। विपक्षी दल यह आरोप भी लगाते हैं कि बिहार में शराब की होम डिलीवरी हो रही है और इसमें थानेदार से लेकर पुलिस के बड़े अफ़सर मालामाल हो रहे हैं।
खुद नीतीश कुमार अपनी हाल की ’समाज सुधार यात्रा’ में शराबबंदी पर अपने सख्त रवैये को दोहरा चुके हैं। वे इस कानून के पक्ष में महात्मा गांधी का भी उल्लेख कर रहे हैं लेकिन 2005 के बाद बिहार में शराब के ठेकों में बेतहाशा इजाफा हुआ और 11 साल बाद पाबंदी के लिए उन्हें महात्मा गांधी की याद आयी है। अब अदालत की टिप्पणी और राजनैतिक दलों के सवालों से नीतीश कुमार पहली बार बैकफुट पर नजर आ रहे हैं।
नीतीश कुमार कहते हैं कि उन्होंने यह क़ानून महिलाओं की मांग पर लाया था लेकिन उनके लिए इसे लागू करना शुरू से चुनौती रही है। एक तो बिहार में चारों तरफ शराब पर खुली छूट है। उत्तर प्रदेश और झारखंड के अलावा नेपाल से भी बिहार में शराब की तस्करी होने लगी और यह एक तरह से रोजगार बन गया। इससे ईमादनदार पुलिसवालों का सिरदर्द बढ़ गया और बेईमान पुलिसवालों की चांदी हो गयी। जब्त शराब को थाने में रखना एक चुनौती बनी और चूहों की शराबनोशी के क़िस्से भी सामने आये।
दूध की गाड़ी से लेकर एम्बुलेंस तक से शराब की ढुलाई शुरू हो गयी जिनमें से कुछ तो पकड़ी गयीं और बाक़ी से तस्करी होती रही। शराबबंदी के साथ-साथ जहरीली शराब से होने वाली मौतों के बाद इस कानून के विरोधी यह कहते रहे हैं कि सूबे में पाबंदी के बाद से बिहार में शराब की तस्करी बढ़ी है और कम आमदनी वालों की पहुंच से दूर हो गयी है। ऐसे में कम आमदनी वाले शराब के शौकीन सस्ती शराब के चक्कर में जहरीली शराब पी लेते हैं। इसके पीछे जो माफिया काम कर रहा है उस पर काबू पाने में सरकार की खुली नाकामी के कारण भी नीतीश कुमार बैकफुट पर नज़र आते हैं।

 

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