किसानों के गुस्से झेलेगें मोदी

पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक के बाद माहौल ऐसा बन रहा है कि ग्रामीण वोटों के दमपर नरेंद्र मोदी दूसरी बार प्रधानमंत्री बन सकते हैं। कहा जा रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में ग्रामीण वोट काफी महत्वपूर्ण होने वाले हैं। इसका कारण है कि देश की सवा सौ करोड़ जनसंख्या में से ज्यादातर आबादी गांवों में रहती है। तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में हार के बाद ऐसी संभावनाएं बन रही थीं कि ग्रामीण इलाकों में बीजेपी बुरी तरह से पिछड़ सकती है। 

हालांकि, एयर स्ट्राइक के बाद चली राष्ट्रवाद की लहर बीजेपी और मोदी को लोकसभा में फायदा दिला सकती है। इसके बावजूद इस बात की संभावना है कि उसे पहले की तुलना में नुकसान जरूर होगा। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को वोट देने वाले महाराष्ट्र के बंदू बेलकर कहते हैं, ‘मैं किसानों के प्रति सरकार के उदासीन रवैये को लेकर मन बना चुका था कि इसबार बीजेपी को वोट नहीं दूंगा। हालांकि, एयर स्ट्राइक के बाद मैंने मन बदल दिया है। हमें पाकिस्तान को हराने के लिए मोदी जैसे मजबूत नेता की जरूरत है।’ 

बंदू बेलकर को प्याज और टमाटर की फसलों में भारी नुकसान हुआ है, इसके बावजूद वह फिर से बीजेपी के पक्ष में वोट करने को तैयार हैं। देशभर में कई फसलों के अधिक उत्पादन की वजह से कीमतों में भारी कमी आई है। इससे महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों के किसान बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।

महाराष्ट्र के पेमडारा के बगल के ही गांव के किसान रामकिसान धवले कहते हैं कि अगर मोदी पाकिस्तान को सबक सिखाते हैं तो वह बीजेपी के लिए वोट देने को तैयार हैं। धवले बताते हैं कि उनके भाई भारतीय सेना में हैं। वह आगे कहते हैं, ‘अगर मोदी देश की सुरक्षा के लिए कोई ठोस कदम उठाते हैं तो मैं निजी हित को किनारे रखकर रखकर मोदी के लिए वोट करूंगा।’ 

चुनावी विश्लेषकों का कहना है कि पुलवामा हमले के बाद पीओके में भारत की आक्रामक कार्रवाई का मोदी और बीजेपी को चुनावों में फायदा मिलेगा। भारत के विदेश सचिव विजय गोखले ने दावा किया था कि भारत की एयर स्ट्राइक में भारी संख्या में आतंकी, ट्रेनर्स, सीनियर कमांडर और जिहादियों के ग्रुप्स मारे गए थे। इससे पहले जैश-ए-मोहम्मद ने पुलवामा हमले की जिम्मेदारी ली थी।

भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव की स्थिति बनने से पहले आए ओपिनियन पोल्स मे यह कहा जा रहा था कि सुस्त अर्थव्यवस्था, कम ग्रामीण आय और रोजगार सृजन में सरकार की असफलता के चलते बीजेपी बहुमत से दूर रह जाएगी। हालांकि, एयर स्ट्राइक के बाद एक निजी चैनल के सर्वे में दिखाया गया कि बीजेपी यूपी की 80 में से 41 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल कर सकती है। अगर ये ओपिनियन पोल्स सही होते हैं तो बीजेपी यूपी समेत देशभर में रिकवर कर सकती है। 

गौरतलब है कि सोशल मीडिया जैसे-फेसबुक और वॉट्सऐप समेत टीवी चैनल्स और मीडिया ने भी राष्ट्रवाद की भावना को देशभर में और बल दिया है। ये सभी माध्यम सीधे तौर पर ग्रामीण जनता को प्रभावित करते हैं। वॉशिगंटन स्थित कार्नेजी एंडोमेंट फॉर इंटरनैशनल पीस में सीनियर रिसर्च फेलो मिलन वैष्णव कहते हैं, ‘अर्थव्यवस्था, रोजगार और समाज कल्याण को निश्चित तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा रीप्लेस नहीं कर सकता है लेकिन इससे चुनावी माहौल में मदद मिलेगी।’ 

भले ही देशभक्ति की भावना हिलोरें मार रही हों लेकिन किसान भी पिछले कुछ सालों की तकलीफों को भूले नहीं हैं। पिछले आठ दिनों में न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने महाराष्ट्र, यूपी, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के 49 किसानों से फोन पर बात की। इसमें से सिर्फ 18 लोगों ने इस बात को स्वीकार किया कि वे बीजेपी को वोट देंगे। दिसंबर में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार का एक कारण फसलों की गिरती कीमत को लेकर किसानोंं का गुस्सा भी था। यह गुस्सा अभी ठंडा नहीं हुआ है।

पिछले कुछ महीनों में किसानों ने प्रदर्शन किए, हाइवे जाम किए, प्याज की फसलों के दाम बेहद होने पर प्याज सड़कों पर फैला दिए। वडगांव आमली गांव के किसान सुनील डेरे कहते हैं, ‘एयर स्ट्राइक से मेरी कमाई में क्या मदद मिलेगी? पिछले चार सालों में मोदी ने किसानों के लिए कुछ नहीं किया है।’ सुनील डेरे ने बताया कि प्याज इतना सस्ता हो गया है कि वह अपनी भेंड़ों को भी प्याज खिला रहे हैं। 

कई और किसानों ने कहा कि सूखे के चलते चारे की कमी हो गई है लेकिन सरकार ने इसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। बता दें कि 2018 में महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक में बारिश सामान्य से कम रही थी, जिससे पानी की समस्या उत्पन्न हो गई है। इससे फसलों का तो नुकसान हो रहा है, पशुओं के लिए चारे की कमी भी हो गई है।

किसानों को ऐसी स्थितियों के उबारने के लिए मोदी सरकार ने किसानों के खाते में सीधे पैसे भेजने वाली योजना शुरू की है। इसकी पहली किस्त में किसानों के खाते में 2000 रुपये भेज भी दिए गए हैं। हालांकि, किसानों का कहना है कि यह मदद नाकाफी है। किसानों का कहना है कि इतने पैसों से तो खेतों की जुताई भी नहीं की जा सकती है। 

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