News Agency : उत्तर प्रदेश में छठा चरण काफी महत्वपूर्ण रहेगा। पश्चिमी से शुरू हुई सियासी बयार अब पूर्वांचल तक पहुंच गई है। 12 मई को छठा चरण समाप्त होते ही यूपी में 67 सीटों पर मतदान सम्पन्न हो जाएगा। इसके बाद मात्र 13 सीटों पर चुनाव रह जाएगा। सभी दलों के ‘लड़ाके’ तय हो चुके हैं। इस चरण में सबसे बड़ी चुनौती भाजपा के लिए है। 12 मई को जिन 14 सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें से आजमगढ़ को छोड़ बाकी सभी पर भाजपा और उसके गठबंधन का कब्जा है। इस बार सपा−बसपा के साथ आने से भाजपा के लिए मुकाबला इतना आसान नहीं दिख रहा है। उधर, बकौल कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा उनकी पार्टी जीत के लिए कम भाजपा को हराने के लिए वोटकटुआ बनने को बेताब है। बात जातीय गणित की कि जाए तो कुछ एक सीटें छोड़ दी जाएं तो ज्यादातर पर जातीय समीकरण हावी हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बार का चुनाव जातीय गणित या फिर मोदी फैक्टर में से किस पर लड़ा जाएगा। बात संसदीय क्षेत्रवार करें। अबकी से कांग्रेस की तरफ से पूर्वांचल की लोकसभा सीटों की जिम्मेदारी प्रियंका वाड्रा संभाले हुए हैं। उनकी भी हैसियत पता चल जाएगी। यहां पूर्चांचल की ही वाराणसी की सीट से मोदी चुनाव लड़ रहे हैं जिस पर मतदान भले अंतिम चरण में होना है, लेकिन मोदी के कारण भाजपा का जोश यहां हाई है।
सुल्तानपुर संसदीय सीट- गोमती किनारे बसे सुल्तानपुर की सीट पर लंबे समय तक कांग्रेस का कब्जा रह। हालांकि अमेठी से सटी होने के बावजूद वीवीआईपी सीट जैसा रुतबा इसे कभी नहीं मिला। बीते चुनाव में वरुण गांधी ने जीत दर्ज कर यहां भाजपा के लिए 16 साल का सूखा खत्म किया था। इस बार यहां से उनकी मां मेनका गांधी मैदान में हैं। 2009 में कांग्रेस को इस सीट पर जीत दिलाने वाले अमेठी के राजा डॉ संजय सिंह कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। वहीं, बसपा ने पूर्व विधायक चंद्रभद्र सिंह पर दांव लगाया है। सपा−बसपा के साथ आने के बाद यहां मुकाबला कठिन माना जा रहा है। यही वजह है कि पीलीभीत में वोटिंग होने के तुरंत बाद वरुण ने मां के लिए पूरी टीम यहां लगा दी है। अबकी एक खास बात और हुई पिछले चुनाव में बसपा के सिंबल पर चुनाव लड़कर 2,31,446 वोट पाने वाले पवन पांडेय ने अबकी से भाजपा प्रत्याशी मेनका के समर्थन में चिट्ठी जारी करके उनके लिए जतना से समर्थन मांगा हैं। भाजपा−मेनका गांधी। कांग्रेस− डॉ. सजंय सिंह। बसपा− चंद्रभद्र सिंह
प्रतापगढ़ संसदीय सीट- कभी कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी। यहीं से राजा दिनेश सिंह कांग्रेस सरकार में विदेश मंत्री रहे। अभी इस सीट पर अपना दल का कब्जा है। यह दिलचस्प तथ्य है कि अब तक इस सीट पर भाजपा केवल एक ही बार, 1998 में तब जीत दर्ज कर सकी थी, जब राम विलास वेदांती लड़े थे। यही वजह रही कि 2014 में यह सीट भाजपा की साझेदार रही अपना दल को दी गई थी और कुंवर हरिबंश सिंह सांसद चुने गए। इस बार भाजपा ने अपना दल के विधायक संगमलाल गुप्ता को अपने सिंबल पर उतारा है। वहीं, दिनेश सिंह की बेटी राजकुमारी रत्ना सिंह, जो 1996 में प्रतापगढ़ की पहली महिला सांसद बनी थीं, वह कांग्रेस की कैंडिडेट हैं। रत्ना यहां से तीन बार सांसद रह चुकी हैं। अशोक कुमार त्रिपाठी को बसपा ने उम्मीदवार बनाया है। वहीं, कुंडा के राजा भैया ने अपनी पार्टी से अक्षय प्रताप सिंह को चुनाव मैदान में उतारकर मुकाबले को कुछ और रोचक बना दिया है। अक्षय 2004 में सपा के टिकट पर यहां से सांसद रह चुके हैं। भाजपा−संगम लाल। कांग्रेस राजकुमारी रत्ना सिंह। बसपा−अशोक कुमार त्रिपाठी। जनसत्ता दल− अक्षय प्रताप।
फूलपुर संसदीय सीट- देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की कर्मभूमि फूलपुर से 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते पहली बार भाजपा ने खाता खोला था। हालांकि मार्च 2018 में हुए उप−चुनाव में बसपा के समर्थन से सपा ने यह सीट अपने नाम कर ली थी। ऐसे में इस बार लोकसभा चुनाव में एक बार फिर सपा−बसपा गठबंधन और बीजेपी के बीच मुकाबले की उम्मीद है। फूलपुर लोकसभा सीट से कुर्मी समाज के कई प्रत्याशी जीतकर संसद पहुंचे। इसके अलावा यहां सपा का भी मजबूत जनाधार है। यही वजह है कि 1996 से लेकर 2004 और 2018 के उप−चुनाव में सपा ने जीत दर्ज की। इस बार भाजपा की तरफ से जहां केशरी पटेल चुनाव मैदान में हैं तो कांग्रेस ने अपना दल की कृष्णा पटेल के दामाद पंकज निरंजन को उतारा है। सपा ने अपने मौजूदा सांसद का टिकट काटकर पंधारी यादव पर विश्वास जताया है। बताते हैं कि भाजपा और कांग्रेस की तरफ से कुर्मी उम्मीदवार उतारे जाने की वजह से कांग्रेस ने यादव प्रत्याशी तय किया है। भाजपा−केशरी पटेल। सपा− पंधारी यादव। कांग्रेस पंकज निरंजन।
इलाहाबाद संसदीय सीट- यूपी की सियासत में इलाहाबाद को हाई प्रोफाइल सीट माना जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, वीपी सिंह, मुरली मनोहर जोशी, जनेश्वर मिश्र जैसे दिग्गजों के साथ−साथ अमिताभ बच्चन यहां से सांसद रहे। मौजूदा समय में यहां भाजपा का कब्जा है, लेकिन उसके सांसद श्यामाचरण गुप्ता के पार्टी छोड़कर सपा में शामिल होने के बाद भाजपा ने इलाहाबाद की मेयर रह चुकीं, कैबिनेट मंत्री रीता बहुगुणा जोशी को प्रत्याशी बनाया है। भाजपा के लिए इस सीट को बरकरार रखना चुनौती है। कांग्रेस और गठबंधन की तरफ से उतारे गए उम्मीदवारों के कद और हाल ही में प्रदेश सरकार द्वारा बेहद प्रचारित कुंभ का असर भाजपा के लिए कुछ राहत की बात है। वहीं, गठबंधन प्रत्याशी के लिए उम्मीदें इसलिए बनी हैं क्योंकि 2014 की मोदी लहर में भी सपा के उम्मीदवार को ढाई लाख और बसपा प्रत्याशी को डेढ़ लाख वोट से ज्यादा मिले थे। इस बार सपा और बसपा साथ हैं। भाजपा− रीता बहुगुणा जोशी। सपा− राजेंद्र पटेल। कांग्रेस− योगेश शुक्ल।
अंबेडकरनगर संसदीय सीट- के संसदीय क्षेत्र बनने से पहले यह अकबरपुर संसदीय क्षेत्र के तहत आता था। यहीं से जीत हासिल कर बसपा सुप्रीमो मायावती चार बार लोकसभा में पहुंचीं। लेकिन मौजूदा समय में यह सीट भाजपा के पास है। हरिओम पांडेय यहां से सांसद हैं। भाजपा ने उनका टिकट काटकर प्रदेश सरकार में मंत्री मुकुट बिहारी को प्रत्याशी बनाया है। 1989 में कांग्रेस का वर्चस्व खत्म होने के बाद इस सीट पर बसपा का ही दबदबा रहा है। 2014 में बसपा भले ही यहां करिश्मा न दोहरा सकी हो, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में पांचों सीटों पर जीत दर्ज की। कांग्रेस ने उम्मेद सिंह निषाद को अपना प्रत्याशी बनाया था, लेकिन उनका पर्चा खारिज होने के बाद यहां भाजपा और बसपा में सीधी टक्कर हो गई है। बसपा ने जलालपुर सीट से विधायक रितेश पांडेय को प्रत्याशी बनाया है। भाजपा− मुकुट बिहारी। बसपा− रितेश पांडेय
श्रावस्ती संसदीय सीट- 2008 में अस्तित्व में आने वाली यह संसदीय सीट तीसरा सांसद चुनने को तैयार है। अब तक हुए दो चुनावों में एक बार कांग्रेस जबकि दूसरी बार भाजपा को सफलता मिली। इस सीट पर हुए पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के डॉक्टर विनय कुमार पांडेय ने बसपा के रिजवान जहीर को 4,20,29 वोटों के अंतर से हराया था। तब भाजपा को केवल 7.92 फीसदी वोट मिले थे। 2014 में जब चुनाव हुआ तो तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी थी। मुकाबला भाजपा के दद्दन मिश्र और सपा के अतीक अहमद के बीच था। दद्दन मिश्र ने 85 हजार से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की थी। बसपा उम्मीदवार रहे लालजी वर्मा तीसरे नंबर पर थे और उन्हें 1,94,890 वोट मिले थे। यह आंकड़ा अगर सपा के वोटों के साथ जुड़ता है तो मुकाबला दिलचस्प होना तय है। विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो प्रचंड लहर में भी सपा−बसपा को अलग−अलग मिले कुल वोट भाजपा के कुल वोटों से काफी ज्यादा हैं। सपा−बसपा के कुल वोट 45 फीसदी से ज्यादा हो जाते हैं। कांग्रेस ने इस सीट से धीरेंद्र प्रताप सिंह को प्रत्याशी घोषित किया है। भाजपा− दद्दन मिश्र। बसपा− राम शिरोमणि वर्मा। कांग्रेस− धीरेंद्र प्रताप सिंह।
डुमरियागंज संसदीय सीट- भाजपा नेता जगदंबिका पाल इस सीट से सांसद हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस छोड़कर कमल थामने वाले जगदंबिका पाल पर एक बार फिर यहां से भाजपा प्रत्याशी हैं। सियासी तौर पर भले ही इस सीट की खासी चर्चा न रही हो, लेकिन राप्ती नदी के किनारे बसा यह नगर ऐतिहासिक तौर पर काफी समृद्ध है। महात्मा बुद्ध की जन्मस्थली लुंबनी यहां से महज 80 मील दूर है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद का भी इस क्षेत्र से जुड़ाव बताया जाता है। राजनीतिक तौर पर देखा जाए तो इस सीट को उन सीटों में शुमार किया जाता है, जहां कांग्रेस मजबूत नहीं रही। यहां की सभी पांच विधानसभा सीटों पर भाजपा गठबंधन का ही कब्जा है। ऐसे में गठबंधन बनाम भाजपा यह चुनाव देखा जा रहा है। 2014 के मुख्य मुकाबले में भाजपा और बसपा थे। जगदंबिका पाल एक लाख तीन हजार वोटों से जीते थे। सपा उम्मीदवार माता प्रसाद पांडेय को एक लाख 74 हजार वोट मिले थे। कांग्रेस ने डॉ चंद्रेश उपाध्याय को उतारा है। भाजपा−जगदंबिका पाल। बसपा− आफताब आलम। कांग्रेस− डॉ. चंद्रेश उपाध्याय
बस्ती संसदीय सीट- हिंदी के विद्वान और आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल की धरती पर 1957 में अस्तित्व में आई इस सीट पर लंबे समय तक कांग्रेस का कब्जा रहा। 1990 के बाद देश में राजनीति की दिशा बदली और कांग्रेस के हाथ से यह सीट भी छिन गई। 1991 से 1999 तक लगातार 4 चुनाव भाजपा जीती। यह सीट 2004 तक सुरक्षित रही थी। 2014 में एक बार फिर यह सीट 1999 के बाद भाजपा के खाते में आई थी। भाजपा ने अपने सांसद हरीश द्विवेदी पर ही फिर भरोसा जताया है। राम प्रसाद चौधरी को बसपा ने, कांग्रेस ने राज किशोर सिंह पर दांव लगाया है। भाजपा−हरीश द्विवेदी। बसपा− राम प्रसाद। कांग्रेस− राजकिशोर सिंह
संतकबीरनगर संसदीय सीट- 2008 में संत कबीरनगर को संसदीय सीट का दर्जा मिला। 2006 में पंचायती राज मंत्रालय ने संत कबीर नगर को देश के सबसे पिछड़े 250 जिलों में शामिल किया। यह प्रदेश के उन 34 जिलों में है जिसे बैकवर्ड रीजन ग्रांट फंड प्रोग्राम (बीआरजीएफ) के तहत अनुदान दिया जाता है। 2009 में क्षेत्र में हुए पहले लोकसभा चुनाव में बसपा के भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी ने भाजपा के शरद त्रिपाठी को करीब 30 हजार वोटों से हराया था। जबकि 2014 की मोदी लहर में शरद ने कुशल को हराकर बदला लिया था। तीसरे नंबर पर सपा के टिकट पर भालचंद्र यादव थे। यहां से भाजपा ने हाल ही में जूता कांड से चर्चा में आए शरद त्रिपाठी की जगह गोरखपुर के चर्चित उप−चुनाव में सपा के टिकट पर जीते प्रवीण निषाद पर दांव लगाया है। भालचंद्र यादव इस बार कांग्रेस के सिंबल पर हैं। जबकि बसपा ने कुशल तिवारी पर ही भरोसा बरकरार रखा है। भाजपा− प्रवीण निषाद। बसपा− भीष्मशंकर। कांग्रेस− भालचंद्र यादव
लालगंज संसदीय सीट- को 1962 में संसदीय सीट का दर्जा मिला था। तभी से यह अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है। यहां से विश्राम प्रसाद लोकसभा पहुंचने वाले पहले सांसद रहे। उन्होंने 1962 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की थी। इसके बाद कांग्रेस ने इस सीट पर अपना खाता खोला। 1991 के बाद से हुए 6 चुनाव में 3 बार बसपा और 2 बार सपा के अलावा एक बार यह सीट बीजेपी के खाते में गई। इतिहास पर नजर डालें तो यहां सपा−बसपा का ही पलड़ा भारी है। 2017 के विधानसभा चुनाव में पांच सीटों में सिर्फ एक पर ही बीजेपी जीती थी। हालांकि इस बार भी मोदी फैक्टर को खारिज नहीं किया जा सकता। पिछले चुनाव में इसी फैक्टर का असर था जो भाजपा की नीलम सोनकर 63,086 मतों से जीती थीं। वहीं, बसपा उम्मीदवार डॉक्टर बलिराम को 2,33,971 वोट मिले थे। वह तीसरे स्थान पर थे। इस बार भाजपा ने नीलम सोनकर को ही उम्मीदवार बनाया है, जबकि बसपा ने संगीता को उतारा है। पंकज मोहन सोनकर कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। भाजपा−नीलम सोनकर। बसपा− संगीता आजाद। कांग्रेस− पंकज मोहन सोनकर।
आजमगढ़ संसदीय सीट- 2014 की मोदी लहर से अछूती रहने वाली पूर्वांचल की एकमात्र सीट आजमगढ़ थी। पिछले चुनाव में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव यहां से चुनाव लड़कर जीते थे तो इस बार सपा मुखिया अखिलेश यादव चुनाव मैदान में हैं। उनके साथ बसपा की भी ताकत है जबकि कांग्रेस ने अखिलेश यादव के खिलाफ प्रत्याशी ही नहीं खड़ा किया है। ऐसे में इस सीट पर सपा और भाजपा में सीधी टक्कर है। भाजपा ने भोजपुरी स्टार दिनेशलाल यादव निरहुआ को प्रत्याशी बनाया है। सत्तर के दशक तक कांग्रेस की सीट रही आजमगढ़ एक बार जो कांग्रेस के हाथ से फिसली तो फिर कांग्रेस कभी वैसा प्रदर्शन नहीं कर सकी। हां, 1984 में जरूर कांग्रेस ने एक बार फिर इस सीट पर कब्जा किया था। सपा और बसपा के एक साथ मुस्लिम यादव बहुल सीट पर आने के बाद यहां की स्थितियां भाजपा के लिए पहले से ज्यादा चुनौतीपूर्ण दिख रही हैं। भाजपा− दिनेश लाल निरहुआ। सपा− अखिलेश यादव।
जौनपुर संसदीय सीट- गोमती नदी के किनारे बसा यह शहर चमेली के तेल और तंबाकू की पत्तियों के लिए जितना प्रसिद्ध है, उतनी ही यहां की सियासत भी। 2014 की मोदी लहर में भाजपा की झोली में यह सीट डालने वाली जौनपुर की जनता ने 2017 में लोकसभा की पांच में से केवल दो सीटें भाजपा के खाते में दीं। दो पर सपा का जबकि एक पर बसपा जीतने में सफल रही। मोदी लहर में जीतकर संसद पहुंचे केपी सिंह को एक बार फिर भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है। पिछली बार केपी सिंह बसपा उम्मीदवार रहे सुभाष पांडेय से 1,46,310 मतों से जीते थे। तीसरे नंबर पर सपा थी। बसपा ने इस बार श्याम सिंह यादव को टिकट दिया है। 1984 के बाद यहां से एक बार भी लोकसभा चुनाव नहीं जीत सकी कांग्रेस ने नदीम जावेद की दावेदारी को नजरअंदाज करते हुए देवव्रत मिश्र को उतारा है। भाजपा− केपी सिंह। बसपा− श्याम सिंह। कांग्रेस− देवव्रत मिश्र।
मछलीशहर संसदीय सीट- इस सुरक्षित सीट पर 2014 में भाजपा के रामचरित्र निषाद तकरीबन पौने दो लाख वोटों से जीते थे। उन्होंने सपा के भोलानाथ को हराया था। इसके पहले 2009 के चुनाव में सपा के पास यह सीट थी। यह सीट भी उनमें शामिल है, जहां कांग्रेस 1984 के बाद से कभी नहीं जीती। ऐसे में यहां एक बार फिर भाजपा बनाम गठबंधन का ही चुनाव दिख रहा है। भाजपा ने जहां अपने सांसद का टिकट काटकर बीपी सरोज को मौका दिया है। बसपा ने टी राम को टिकट दिया है। वहीं, कांग्रेस ने इस बार यहां से उम्मीदवार नहीं उतारा है। सीट जन अधिकार पार्टी के खाते में गई है। वह निर्दल उम्मीदवार के तौर पर लड़ रही है। भाजपा− बीपी सरोज। बसपा−टी राम।
भदोही संसदीय सीट- कालीन निर्माण और हस्तकला के मशहूर भदोही क्षेत्रफल के लिहाज से प्रदेश का सबसे छोटा जिला है। इसे 1994 को प्रदेश का 65वां जिला घोषित किया गया था। लोकसभा सीट 2008 में अस्तित्व में आई और पहली बार 2009 में चुनाव हुए। बसपा उम्मीदवार रहे गोरखनाथ ने सपा के छोटे लाल भिंड को 12,963 मतों से हराया था। इस चुनाव में भाजपा को केवल 8.76 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन पांच साल बाद मोदी लहर में भाजपा के उम्मीदवार वीरेंद्र सिंह 1,58,141 मतों जीते थे। वीरेंद्र ने बसपा के राकेश धर त्रिपाठी को हराया था। लोकसभा की पांच विधानसभा सीटों में से दो सीटें भाजपा के पास हैं जबकि दो पर बसपा का कब्जा है। एक सीट पर निषाद पार्टी का उम्मीदवार जीता था। भाजपा ने अपने सांसद का टिकट काटकर रमेश बिंद को मैदान में उतारा है तो बसपा ने पूर्व मंत्री रंगनाथ मिश्र से उम्मीदें पाल रखी हैं। कांग्रेस ने बाहुबली रमाकांत यादव को टिकट दिया है। चर्चित नामों के मैदान में आने से चुनाव रोचक हो गया है। भाजपा− रमेश बिंद। बसपा− रंगनाथ मिश्र। कांग्रेस− रमाकांत यादव।