आगामी लोकसभा चुनावों के लिए तमिलनाडु में चुनावी युद्ध रेखाएं खींची जा चुकी हैं. दोनों द्रविड दलों ने अपने-अपने गठबंधन का ऐलान कर दिया है. 19 फरवरी को एआईडीएमके ने पट्टाली मक्कल कटची (पीएमके) और बीजेपी से गठबंधन की घोषण की.
तमिलनाडु में लोकसभा की 39 सीटें हैं और एआईडीएमके ने इनमें से सात सीट पीएमके और पांच सीट बीजेपी को देने की बात कही है. घोषणा के अगले दिन 20 फरवरी को डीएमके ने कांग्रेस से गठबंधन का ऐलान किया और उसे 10 सीटें देने का वादा किया है. इन दस में से पुद्दुचेरी की एकलौती सीट भी शामिल है.
दो वाम पार्टियां एमडीएमके और वीसीके के भी इस गठबंधन में जल्द शामिल होने की बात कही जा रही है. पीएमके ने 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा, एमडीएमके और विजयकांत की डीएमडीके के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के बैनर तले चुनाव लड़ा था.
तमिलनाडु में एनडीए का यह गठबंधन बहुत कमाल नहीं कर पाया था. गठबंधन सिर्फ़ दो सीटों पर ही जीत का परचम लहराया पाया था.एक सीट पीएमके के खाते में गई थी तो दूसरी भाजपा के खाते में. बाकी सीटों पर दिवंगत जयललिता की पार्टी ने सफलता पाई थी.
जयललिता की पार्टी एआईडीएमके इस चुनाव में अकेले मैदान में थी और उसने किसी पार्टी के साथ अपना गठबंधन नहीं किया था, बावजूद इसके वो 37 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी.
1998, 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों के बाद दिल्ली की सत्ता का रास्ता तमिलनाडु से होकर खुला था. 1998 में एआईडीएमके के 18 सांसदों ने एनडीए की पहली सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे.
यह सरकार 1999 में सिर्फ एक वोट की वजह से गिर गई थी. इसके बाद 2004 और 2009 के चुनाव आए. 2004 के चुनावों के दौरान राज्य में डीएमके, कांग्रेस, पीएमके, एमडीएमके, सीपीआई और सीपीएम का गठबंधन हुआ था और यह गठबंधन सभी 39 सीटों को जीतने में कामयाब रहा था.
एआईडीएमके और भाजपा का गठबंधन इन चुनावों में कामयाब साबित नहीं हुआ. साल 2009 के चुनावों के दौरान डीएमके, कांग्रेस और वीसीके का गठबंधन 27 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रहा. वहीं एआईडीएमके, एमडीएमके, सीपीआई और सीपीएम के गठबंधन के खाते में 12 सीटें आई थीं.
2004 के चुनावों के बाद लोकसभा में कांग्रेस और भाजपा के बीच महज सात सीटों का अंतर था. कांग्रेस को 145 और भाजपा को 138 सीटें मिली थीं. कांग्रेस की अगुवाई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) ने तमिलनाडु के सहयोगियों की मदद से सरकार बनाई थी. यही वजह है कि तमिलनाडु की 39 सीटों का महत्व राष्ट्रीय राजनीति में रहा है.
2004 और 2009 की सरकारों में राज्य ने देश को कई केंद्रीय मंत्री दिए. 2004 में यहां से 14 केंद्रीय मंत्री हुए थे, वहीं 2009 में इस राज्य ने देश को 10 केंद्रीय मंत्री दिए थे.
साल 2018 में दिवंगत करुणानिधि के घर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आने को इस पृष्ठभूमि से देखा जा सकता है. अगस्त 2018 में उम्र की परेशानियों की वजह से करुणानिधि की मौत हो गई थी.
इससे कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चेन्नई स्थित उनके आवास पर पहुंचे थे और उनसे दिल्ली पर अपने आवास पर रह कर इलाज करवाने की भी बात कही थी.
इस घटना ने राजनीति पर नज़र रखने वालों को चौंका दिया था. मोदी का इशारा साफ़ था कि वो डीएमके जैसी मजबूत पार्टी को अपने पाले में लाना चाह रहे थे.
लेकिन बीते 20 फरवरी को मोदी की इस योजना पर पानी फिर गया और डीएमके ने कांग्रेस के साथ अपने गठबंधन का ऐलान कर दिया.
तमिल फ़िल्मों के सुपरस्टार रजनीकांत ने 31 दिसंबर 2017 को यह घोषणा की कि करुणानिधि और जयललिता के निधन के बाद राज्य की राजनीति में एक ख़ालीपन आ गया था, जिसे वो भरने जा रहे हैं. लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वो केवल विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, लोकसभा नहीं.
कुछ दिन पहले रजनीकांत ने यह घोषणा की कि उन्होंने आगामी लोकसभा चुनावों में किसी भी राजनीतिक दल को अपना समर्थन नहीं दिया है और स्पष्ट किया कि कोई भी दल उनका या उनके संस्था का नाम इस्तेमाल नहीं कर सकता है.
यह घोषणा भाजपा के लिए एक झटके की तरह था क्योंकि पार्टी यह सपना देख रही थी कि अंतिम वक़्त में रजनीकांत, पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना खुला समर्थन देंगे.
वहीं दूसरी तरफ कमल हासन ने भी आगामी चुनावों में अकेले चलने का फ़ैसला किया है और ऐसा लग रहा है कि उनकी नई पार्टी ‘मक्कल निधि मय्यम’ तमिलनाडु और पुद्दुचेरी की सभी 40 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी.
दिलचस्प बात यह है कि कमल हासन डीएमके पर लगातार हमला बोल रहे हैं और भाजपा के साथ कुछ नरमी से पेश आ रहे हैं. डीएमके भी कमल हासन के आरोपों का जवाब दे रही है. भारत में तमिलनाडु एक ऐसा राज्य है जहां फ़िल्मी सितारों ने जयललिता की मृत्यु तक लगभग 50 सालों तक शासन किया है. लेकिन यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि आगामी चुनावों में रजनीकांत और कमल हासन किस तरह का बदलाव ला पाएंगे.
यहां ध्यान देने वाली एक बात और है कि तमिलनाडु के चुनावों में धन शक्ति का इस्तेमाल भी खूब होता है. “वोट के बदले नकद” के मामले में तमिलनाडु देश में सबसे आगे है. कई कार्यरत मुख्य चुनाव आयुक्त इस बारे में अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं.
इन्होंने इसे रोकने में अपनी असमर्थता का भी इजहार किया है. इसलिए कोई तमिलनाडु में आने वाले लोकसभा चुनावों को उस दृष्टिकोण से देखता है तो उसे परिणामों के बारे में पूरी तरह से नई धारणा मिल सकती है.
आर मणि
(बीबीसी से साभार)