कन्हैया एक उगता हुआ सितारा

अरुण कुमार चौधरी,
रांची/बेगूसराय : अभी बेगूसराय देश का राजनीतिक हलचल का गढ बन गया है। ऐसे भी यहां पर बहुत बड़े-बड़े हस्तियां सांसद बनकर केंद्र में मंत्री बन चुके हैं इसमें से स्व. श्यामनंदन प्रसाद मिश्र प्रमुख हैं जो कि मुरार जी देसाई के मंत्रीमंडल में विदेश मंत्री थे। इनकी वाक्यपटूता जगजाहिर है। इसके साथ-साथ यहां विद्वान एवं वरिष्ठ पत्रकार स्व. मथुरा प्रसाद मिश्र भी बेगूसराय से सांसद बनकर देश तथा विदेशों में बेगूसराय का नाम रौशन किये है। बेगूसराय स्व. श्री बाबू का कर्म क्षेत्र रहा है इन्हीं के कारण बेगूसराय में उत्तर बिहार का बरौनी औद्योगिक क्षेत्र बना जिसमें हजारों की संख्या में बेगूसराय के लोग कारखाने में काम कर अपना जीवन यापन किया है और अभी बरौनी रिफाइनरी एक विशाल रिफाइनरी हो गया है और यह श्री बाबू का ही देन है। इसके अलावे बेगूसराय में राजनीतिक हस्ति में कॉमरेड चंद्रशेखर सिंह रहे हैं जिनका ओजस्वी भाषण जगजाहिर है। इन्हीं के कारण बेगूसराय क्षेत्र को लोग लेलिन ग्राड कहते हैं।

इसके साथ-साथ पूर्व सांसद एवं पूर्व मंत्री स्व. भोला बाबू पिछले कई दशकों से बेगूसराय के राजनीतिक क्षेत्रों में एक वट-वृक्ष थे। भोला बाबू कई पार्टियों में गये, परंतु जिस पार्टी में गये उस पार्टी का बर्चस्व जिला में बन जाता था। भोला बाबू का व्यक्तित्व के सामने पार्टी गौन हो जाती थी क्योंकि भोला बाबू का विशाल व्यक्तित्व बेगूसराय के जनता को हमेशा ही आकर्षित करते रहा और इसी भोला बाबू का विरासत क्षेत्र बेगूसराय है। अभी छात्र नेता तथा युवा वर्ग के धड़कन श्री कन्हैया कुमार बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र में उम्मीदवारी के कारण सारे देश का नजर बेगूसराय पर हो गया है।

पिछले पांच-छह महीनों से कन्हैया बेगूसराय जिला के प्रत्येक गांव में अपना कार्यक्रम दे चुका है जिसके कारण लोगों के बीच कन्हैया कुमार का एक छवि बनते जा रहा है। लोगो का कहना है कि कन्हैया एक उगता हुआ सितारा है। इस क्षेत्र का इतिहास सक्रिय राजनीति में नए नए कदम रखने वाले जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने बिहार के बेगूसराय की लड़ाई को नौजवान बनाम ताकतवर की जंग बना दिया है। बिहार की यह एक ऐसी सीट है जहां महागठबंधन में दरारें दिखने लगीं, जब कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया यानी सीपीआई ने कन्हैया कुमार को अपना प्रत्याशी बना दिया। एनडीए उम्मीदवार और केंद्रीय मंत्री गिरिराज भी परेशान हैं और महागठबंधन के प्रत्याशी भी नाखुश। गिरिराज सिंह बेगूसराय से चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे और अपनी पुरानी नवादा सीट पर वापस लौटना चाहते थे। उन्होंने आलाकमान को अपनी नाखुशी जाहिर भी कर दी थी लेकिन अमित शाह ने समझा बुझा कर उन्हें तैयार कर लिया।

हालांकि कन्हैया ने केंद्रीय मंत्री के इस रुख का खूब मजाक उड़ाया। फेसबुक पर लिखे एक पोस्ट में कन्हैया ने कहा कि गिरिराज का व्यवहार उस बच्चे की तरह है जो होमवर्क पूरा नहीं होने की वजह से स्कूल न जाने की जिद पर अड़ा है। टीवी पर न्यूज देखकर पता लगा कि लोगों को फ्री में पाकिस्तान भेजने वाला बेगूसराय चुनाव लड़ने तक आने को तैयार नहीं है। गिरिराज सिंह के लिए यह सीट ऐसी है जो न निगलते बन रही है न उगलते। गिरिराज की चिंता थोड़ी कम होगी क्योंकि आरजेडी के उम्मीदवार तनवीर हसन के उतरने के बाद मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। वहीं गिरिराज इस बात से परेशान भी हैं कि अब कन्हैया की एंट्री से भूमिहार वोट बंट जाएंगे, जिस पर वो अब तक निर्भर थे।

कन्हैया के मैदान में आने के पहले इतिहास और जाति समीकरण गिरिराज के साथ थे। बेगूसराय के 19 लाख वोटरों में ऊंची जाति के भूमिहारों की संख्या लगभग 19 फीसदी है, जबकि दूसरे नंबर पर 15 फीसदी वोटरों के साथ मुसलमान हैं। 12 फीसदी यादव हैं और 7 फीसदी कुर्मी वोटर है। नीतीश की पार्टी का साथ मिलने के बाद बीजेपी को पूरा भरोसा था कि वो करीब 37 फीसदी वोटों पर कब्जा कर लेगी। ( भूमिहार 19%+ ऊंची जाति 11%+ कुर्मी 7%) आरजेडी को भी पूरा भरोसा था कि जीत के वो भी करीब हैं और करीब 35 फीसदी वोट उन्हें भी मिल सकते हैं। (मुस्लिम 15 % + यादव 12%+ दलित 8%)। दोनों गुटों को इस बात का भरोसा था कि 22% अन्य जातियों खास तौर पर महादलितों का वोट अगर उन्हें मिल जाता तो जीत पक्की हो जाती।

इतिहास : बेगूसराय के इतिहास में भूमिहार किस कदर छाये रहे इसका एक छोटा सा उदाहरण है कि पिछले 10 में से 9 बार लोकसभा में वहां से एक भूमिहार ही सांसद चुना गया। कन्हैया की एंट्री ने दोनों गठबंधनों के प्लान को मटियामेट कर दिया है, खासतौर पर नुकसान गिरिराज को होगा क्योंकि दोनों एक ही जाति से ताल्लुक रखते हैं। अगर कुमार भूमिहारों का वोट काटने में कामयाब रहे तो इसका सीधा फायदा आरजेडी उम्मीदवार तनवीर हसन को मिलेगा। लेकिन आरजेडी के लिए भी ये आसान नहीं है। एक जमाने में बेगूसराय बिहार की औद्योगिक राजधानी मानी जाती थी। कल कारखानों की मौजूदगी के चलते वहां के राजनैतिक परिद्श्य में ट्रेड यूनियनों का बहुत महत्व था और वो काफी प्रभावशाली थे, वामदलों की इस इलाके में अच्छी पैठ है। हालांकि दशकों के खराब शासन, बंद होते कारखानों के चलते वामदलों की हालत कमजोर होती चली गई। आखिरी बार सीपीआई ने यहां 1967 में जीत दर्ज की थी। हार के बावजूद सीपीआई हमेशा मुकाबले में बनी रही, 1967 के बाद से 3 बार वो दूसरे या तीसरे स्थान पर रहे। 2009 में भी सीपीआई का उम्मीदवार दूसरे स्थान पर था। 2014 के चुनाव में प्रचंड मोदी लहर में उसे 2 लाख वोट मिले।

2004 और 2009 में यहां से जेडीयू जीती जो उस वक्त एनडीए का हिस्सा थी लेकिन 2014 में वो एनडीए से अलग हो गई और बीजेपी ने ये सीट उनसे छीन ली। इस बार कन्हैया कुमार कुछ भूमिहारों, दलितों और महादलितों का चेहरा बन सकते हैं। भूमिहारों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए कन्हैया कुमार ये लगातार हवा बनाने की कोशिश में लगे हैं कि ये मुकाबला गिरिराज बनाम कन्हैया है। आरजेडी के उम्मीदवार तनवीर हसन भी ताल ठोक रहे हैं कि मुकाबला कन्हैया बनाम गिरिराज नहीं बल्कि गिरिराज का मुकाबला आरजेडी से है।

अभी बिहार के बेगूसराय में लोकसभा चुनाव की जंग रोमांचक होती जा रही है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उम्मीदवार गिरिराज सिंह बेगूसराय पहुंचने पर सीपीआई उम्मीदवार कन्हैया कुमार ने ट्विटर पर उनका तंज भरे लहजे में स्वागत किया। उन्होंने कहा कि रूठने और मनाने जैसे नाज़-नखरों के बाद वीज़ा मंत्री जी आज बेगूसराय आ गए हैं और आते ही उन्होंने कहा है कि बेगूसराय तो मेरा ननिहाल है। हमें तो पहले ही पता था कि मंत्री जी को बेगूसराय पहुंचते ही नानी याद आ जाएगी। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह पहली बार शुक्रवार को उम्मीदवार के रूप में बेगूसराय पहुंचे। बेगूसराय पहुंचते ही उन्होंने सबसे पहले सिमरिया घाट स्थित सिद्ध आश्रम में मां काली की पूजा अर्चना की। उसके बाद वे बेगूसराय के बीहट पहुंचे। यहां उन्होंने सिद्ध पीठ में माता का आशीर्वाद लिया। गिरिराज के साथ इस दौरान पार्टी कार्यकर्ताओं का हुजूम था। रूठने और मनाने जैसे नाज़-नखरों के बाद वीज़ा मंत्री जी आज बेगूसराय आ गए हैं और आते ही उन्होंने कहा है कि बेगूसराय तो मेरा ननिहाल है। हमें तो पहले ही पता था कि मंत्री जी को बेगूसराय पहुँचते ही नानी याद आ जाएगी। ?? बता दें कि गिरिराज अपने संसदीय क्षेत्र नवादा से टिकट काटे जाने को लेकर नाराज चल रहे थे। हालांकि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से बातचीत के बाद आखिरकार वे मान गए और बेगूसराय से चुनाव लड़ने को राजी हो गए।

गिरिराज सिंह का कहना कि बेगूसराय तो मेरा घर है, मैंने तो अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपनी बात कही। बता दें कि बेगूसराय का बीहट इलाका वामपंथियों का गढ़ है। गिरिराज सिंह नेशलन हाइवे पर अपनी गाड़ी से उतरे और लगभग एक किमी पैदल चलकर मंदिर पहुंचे। बीहट बाजार होते हुए उनका हुजूम मंदिर पहुंचा। ये इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि बीहट के इलाके में ही सीपीआई उम्मीदवार कन्हैया कुमार का भी घर है। मंदिर में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने पहली बार कन्हैया की कथित आजादी वाले नारे पर तंज कसा। कार्यकर्ताओं ने इस दौरान हमें चाहिए लाल झंडे से आजादी, हमें चाहिए भ्रष्टाचार से आजादी के नारे लगाए। बेगूसराय पहुंचने से पहले गिरिराज ने बिहार के सीएम नीतीश कुमार से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि मैंने अपने और बेगूसराय के सम्मान का प्रश्न उठाया था।

इधर गिरिराज सिंह के बेगूसराय से चुनाव लड़ने को लेकर उठे विवाद पर सीपीआई उम्मीदवार और जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने कई बार चुटकी भी ली। कन्हैया ने कहा कि गिरिराज यहां आ तो गए, लेकिन मंत्री रहते हुए उन्होंने यहां के लिए क्या किया। बेगूसराय अतिथियों का हमेशा स्वागत करता रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि ये धर्म के नाम पर समाज को बांटने वाले अपने को राष्ट्र भक्त कहते हैं। देश की सेना के कामों को अपना काम बताते हैं। वहीं गिरिराज सिंह ने कन्हैया का नाम नहीं लेते हुए कहा कि बेगूसराय में हमारी लड़ाई राष्ट्रवाद बनाम विकृत मानसिकता से है। कुल मिलाकर बेगूसराय की लड़ाई काफी दिलचस्प होने वाली है। आरजेडी के तनवीर हसन यहां पर लड़ाई को त्रिकोणीय बनाते हैं। हालांकि कन्हैया ने कहा कि उनकी लड़ाई गिरिराज से है, आरजेडी कहीं लड़ाई में नहीं है।

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