विशेष संवाददाता द्वारा
रांची. राज्यसभा चुनाव में भले ही देरी हो, पर राजनीतिक बिसात अभी से बिछनी शुरू हो गई है. संख्या बल की गणित को अपने पक्ष में करने को लेकर दावेदार पार्टियों ने अभी से ही अपने मोहरे सेट करने शुरू कर दिये हैं. थर्ड फ्रंट का गठन कुछ इसी ओर इशारा करता है. लेकिन जेएमएम की माने तो ये फ्रंट सिर्फ पैसे उगाही के लिए बना है, क्योंकि इसकी बागडोर आजसू के हाथों में है.
झारखण्ड के राज्यसभा चुनाव का इतिहास हॉर्स ट्रेडिंग से कलंकित रहा है. शायद यही वजह है कि झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा के गठन को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. वर्तमान सत्ताधारी दल जेएमएम का कहना है कि राज्यसभा चुनावों में अभी देरी है, लेकिन इस बार होने वाले राज्यसभा चुनाव में पार्टी की एक सीट तो कन्फर्म है. क्योंकि संख्या के हिसाब से 28 की जरूरत होती है जबकि जेएमएम के 30 विधायक हैं. वहीं दूसरी सीट के लिए आगे रणनीति बनाई जाएगी.
झारखण्ड लोकतांत्रिक मोर्चा को लेकर आजसू पर हमला करते हुए जेएमएम के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि आजसू अवसरवादी पार्टी है और हर 2 साल पर पैसे ऐंठने को लेकर कुछ न कुछ करती रहती है. झाखण्ड लोकतांत्रिक मोर्चा का गठन इसी परिपेक्ष्य में किया गया है.
आजसू पार्टी ने जेएमएम के इस बयान को लेकर आपत्ति जाहिर की है और कहा कि इस तरह की भाषा ओछी राजीनीति का परिचायक है. पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज सिंह का कहना है कि जिन मुद्दों को लेकर जेएमएम ने सत्ता की सीधी चढ़ी, आज वो उन मुद्दों को भूल गई है. राज्यभर में आजसू के कार्यकर्ता सड़क पर उन मुद्दों को लेकर जनता की आवाज बने हुए हैं. जिस कारण जेएमएम बौखलाहट में इस तरह का बयान दे रही है.
इधर, बीजेपी का कहना है कि राज्यसभा चुनाव को लेकर केंद्रीय नेतृत्व रूप रेखा तय करने का काम करती है और जो भी शीर्ष नेतृत्व तय करेगी उसी के अनुसार प्रदेश में रणनीति तैयार होगी. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने थर्ड फ्रंट के गठन पर गोल-मोल जवाब देते नजर आए.
झारखण्ड में जून माह में राज्यसभा की दो सीटों के लिए चुनाव होने है. दोनों सीट से फिलहाल बीजेपी के सांसद है. लेकिन वर्तमान में बीजेपी के पास संख्या बल की कमी है. ऐसे में दोनों सीटों को बचा पाना संभव नहीं. एक सीट के लिए बीजेपी को किसी न किसी को अपने पाले में लाना होगा. ऐसे में तीसरा मोर्चा किसको खुशी और किसको गम देगा, ये देखना दिलचस्प होगा.
इधर राज्यसभा चुनाव में मोर्चे में शामिल पांचों विधायकों के निर्णय से जीत- हार पर असर पड़ना तय है. राज्यसभा चुनाव में एक- एक वोट का अपना अंक गणित होता है. सियासी जानकार इसे झारखंड में ऑपरेशन कमल के हिडेन एजेंडा से जोड़कर भी देख रहे हैं. मोर्चा में शामिल 5 विधायक में से 4 एनडीए से कभी ना कभी नाता रखने वाले हैं.
बीजेपी के राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार का कहना है कि लोकतांत्रिक मोर्चे में 5 में से 4 विधायक एनडीए खेमे के हैं. आने वाले समय में उनकी क्या भूमिका होगी, ये देखने वाली बात होगी. राज्यसभा चुनाव एक जरूर मुद्दा हो सकता है, पर इस बात को भी स्पष्ट करने की जरुरत है कि वो एक साथ दो मोर्चे में क्या करेंगे और उनकी क्या भूमिका होगी.
झारखंड की राजनीति में कभी भी कुछ भी संभव है. ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि झारखंड का राजनीतिक इतिहास कह रहा है. इससे पहले भी निर्दलीय विधायकों ने G- 5 का गठन किया था. तब किसी को कुर्सी गवानी पड़ी थी और किसी को राज सिंहासन पर बैठाया गया था. अगर ऐसा कुछ भी चल रहा है तो ऑपरेशन कमल से इनकार नहीं किया जा सकता है. ऑपरेशन कमल का जिक्र होते ही सबकी नजर कांग्रेस की तरफ जाती है. शायद राजनीति में सबसे कमजोर कड़ी के तौर पर फिलहाल कांग्रेस को ही आंका जा रहा है.
राजनीति में हर निर्णय को भविष्य के साथ जोड़ कर देखा जाता है. खासकर तब जब बड़े नेताओं का जुटान या मोर्चा बंदी हो. झारखंड में लोकतांत्रिक मोर्चा की दिशा और दशा क्या होगी, ये तो भविष्य के गर्भ में है, पर एक बात जरूर है कि चैन की नींद सो रहे सियासतदारों को तीसरे मोर्चे ने सोचने पर मजबूर जरूर कर दिया है.