पिछले क़रीब एक साल से जब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु का दौरा किया, लगभग हर बार “गोबैक मोदी” जैसे हैशटेग सोशल मीडिया में ट्रेंड करने शुरू हो गए. इस कारण सवाल पूछे जा रहे हैं कि क्या नरेंद्र मोदी को तमिलनाडु में पसंद नहीं किया जाता और अगर नहीं तो क्यों?
कुछ विश्लेषक तो यहां तक दावा करते हैं कि नरेंद्र मोदी जितने अलोकप्रिय तमिलनाडु में हैं, शायद ही किसी और राज्य में होंगे.स्थानीय पत्रकारों की मानें तो ये हैशटैग्स अप्रेल 2012 में सबसे पहले दिखे. नरेंद्र मोदी राज्य में डिफेंस एक्सपो के उद्घाटन के लिए आए थे और विपक्षी दलों ने कावेरी जल प्रबंधन प्रधिकरण में केंद्र सरकार की कथित देरी के ख़िलाफ़ काले झंडे लहराए थे. इस देरी को कर्नाटक चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा था.
उसके बाद नरेंद्र मोदी ने कई बार तमिलनाडु का दौरा किया है और लगभग हर बार सोशल मीडिया पर ऐसे ही ट्रेंड्स दिखे हैं.तमिलनाडु में भाजपा बहुत मज़बूत तो नहीं पर पार्टी समर्थकों ने जवाब में ‘तमिलनाडु वेलकम्स मोदी’ जैसे हैशटैग्स चलाए.अमरीकी थिंकटैंक एटलांटिक काउंसिल की डिजिटल फोरेंसिक लैब ने पाया कि दोनो पक्षों के हैशटैग्स के ट्रेंड होने में बॉट्स या फ़ेक अकाउंट्स का भी हाथ था.
‘गोबैक मोदी’ जैसे हैशटैग्स को ट्रेंड करानेवालों में चेन्नई की सोनिया अरुण कुमार प्रमुख हैं. सोनिया अरुणकुमार के ट्विटर पन्ने पर जाते ही श्रीलंका के चरमपंथी गुट एलटीटीई प्रमुख प्रभाकरन की तस्वीर नज़र आती है, जिन्हें वो “प्यार” करती हैं.
सोनिया कहती हैं, “हम उन्हें (नरेंद्र मोदी को) ऐसे प्रधानमंत्री की तरह देखते हैं जो विदेश चले जाते हैं, जिन्हें देश की असली समस्याओं से सरोकार नहीं है, जो ग़रीबों के साथ नहीं हैं. और जो हिंदुत्व गुटों के लिए काम करते हों.”
सोनिया नोटबंदी, रफ़ाल, बीफ़ पर प्रतिबंध जैसे मुद्दों पर ट्वीट करती हैं. ऐसे हैशटैग्स को ट्रेंड करवाने वाले लोगों में डीएमके कार्यकर्ता, सोशल ऐक्टिविस्ट के अलावा आम लोग भी होते हैं.
केंद्रीय चेन्नई की भीषण गर्मी से बचने के लिए हम एक पार्क में पहुंचे जहां उन्होंने मुझे बताया, “हमारा मक़सद है लोगों का, उत्तर भारतीयों का, अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींचना और लोगों तक मुद्दों की सच्चाई को पहुंचाना.”
तमिलनाडु में नरेंद्र मोदी से नाराज़गी के कई कारण गिनाए जाते हैं. जब तमिलनाडु के किसान दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे थे तब वो उनसे मिलने क्यों नहीं गए, वो तमिलनाडु पर कथित तौर पर उत्तर भारतीयता और हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान की सोच थोपना चाहते हैं, उन्होंने गजा तूफ़ान से प्रभावित लोगों की कथित तौर पर सुध नहीं ली, उनकी सरकार तमिलनाडु पर कई सौ करोड़ की लागत से बनने वाले न्यूट्रीनो प्रोजेक्ट को लादना चाहती है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक़ इस न्यूट्रीनो प्रोजेक्ट का मक़सद है पार्टिकल फ़िजिक्स में रिसर्च को आगे बढ़ाना, लेकिन कुछ स्थानी लोगों को डर है कि इससे इलाक़े की बायोडाइवर्सिटी या जैव-विविधता के अलावा आम लोगों को नुक़सान पहुंच सकता है.
भारतीय जनता पार्टी प्रवक्ता नारायणन तिरुपति के मुताबिक़ ऐसे आरोप इसलिए सामने आ रहे हैं क्योंकि नोटबंदी से तमिलनाडु के भ्रष्ट लोग तिलमिलाए हुए हैं.वो पूछते हैं कि जब किसानों का ऋण माफ़ करना राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी थी तो उन्हें दिल्ली जाकर प्रदर्शन करने की क्या ज़रूरत थी.
तिरुपति का आरोप है कि विरोधी तमिलनाडु सरकार को अस्थिर करना चाहते हैं और “मैं गर्व से कहता हूं कि मैं एक तमिल हूं और एक भारतीय भी. नाराज़गी का एक और प्रमुख कारण है मेडिकल कॉलेजों के लिए होने वाली नीट परीक्षा यानि नेशनल एलिजिबिल कम एंट्रेंस टेस्ट का लागू होना.
साल 2017 में तमिलनाडु के अरियलूर के एक गांव में रहने वाली अनीता की आत्महत्या ने नीट को बड़ा मुद्दा बना दिया था. 18 साल की अनीता का सपना था डॉक्टर बनकर सरकारी अस्पताल में ग़रीबों की मदद करना. स्थानीय लोगों ने बताया कि छह से सात हज़ार की आबादी वाले इस गांव में एक डॉक्टर भी नहीं है.
12वी क्लास में बेहतरीन नंबर लाने के बावजूद एक ग़रीब दलित किसान की बेटी अनीता नीट परीक्षा क्लीयर नहीं कर पाईं और आत्महत्या कर ली. तमिलनाडु में पहले 12वीं कक्षा के नंबरों के आधार पर मेडिकल कॉलेज में एडमिशन हो जाता था लेकिन अब 12वीं के बाद नीट परीक्षा क्लियर करनी पड़ती है.
पिता शणमुगम बताते हैं कि नीट नहीं क्लीयर कर पाने के कारण वो डिप्रेशन में चली गई थी क्योंकि उन्होंने बेटी की पढ़ाई में ढेरों ख़र्च किया था. अनीता ने परिवार में किसी को भी इसकी भनक नहीं लगने दी.
अनीता ने स्कूल में जो कुछ पढ़ा था, नीट परीक्षा में वो नहीं पूछा गया. आत्महत्या के दो दिन पहले हुई बातचीत में शणमुगम ने बेटी का हौसला बढ़ाने के लिए उससे कहा था कि वो जानवरों की डॉक्टर बन जाए या वो उसे नीट की परीक्षा की कोचिंग के लिए बाहर भी भेज सकते हैं, लेकिन वो ग़रीब पिता पर और बोझ नहीं डालना चाहती थीं. उन्होंने आत्महत्या कर ली.
अनीता के पिता शणमुगम कहते हैं, “अगर केंद्र में कांग्रेस की सरकार होती तो तमिलनाडु में नीट लागू नहीं होता. नरेंद्र मोदी और एआईएडीएमके ने उसे यहां लागू किया. हमने नीट का विरोध किया था लेकिन नरेंद्र मोदी उसे यहां लेकर आए.”
लेखक और डॉक्टर मारियानो एंटो ब्रूनो मैस्केरेनाज़ बताते हैं कि कोचिंग के बिना नीट क्लियर करना आसान नहीं और महंगी कोचिंग पर क़रीब दो लाख का ख़र्च आता है. उसके अलावा रहने, आने-जाने और खाने पीने का ख़र्च अलग.
अनीता की याद में चंदा इकट्ठा करके एक लाइब्रेरी बनाई गई है. यहां बाबा साहब आंबेडकर, मार्क्स, मणिशंकर अय्यर की किताबों के अलावा प्रतियोगिता परीक्षा से जुड़ी किताबें रखी हुई हैं. जानकार बताते हैं कि अनीता की आत्महत्या के बाद आम लोगों में संदेश गया कि नरेंद्र मोदी सरकार तमिलनाडु विरोधी हैं और उन्हें आम लोगों और राज्य के हितों की चिंता नहीं है.
राज्य के कई हलक़ों में नीट का विरोध जारी है. विपक्षी कांग्रेस और डीएमके नेताओं ने नीट परीक्षा को ख़त्म करने की बात कही है. नीट समर्थकों के मुताबिक़ अनीता की मौत के लिए नीट को ज़िम्मेदार ठहराना सही नहीं है और ये यूपीएससी, ज्वाइंट एंट्रेंस इग्ज़ामिनेशन की तरह एक ऐसा सिस्टम है जो सभी को बराबरी का मौक़ा देता है और तमिलनाडु में बाक़ी भारत से अलग व्यवस्था क्यों लागू हो.
उधर मैस्केरेनाज़ का तर्क है कि तमिलनाडु में सबसे ज़्यादा एमबीबीएस और सुपर स्पेशलीज़ सीटें हैं और उन्हें पूरे देश के छात्रों के लिए खोल देने से तमिलनाडु के छात्रों को नुक़सान होता है. वो कहते हैं, “अगर आप उत्तर प्रदेश के छात्र हैं और डॉक्टर बनना चाहते हैं तो ऐसी सरकार चुनिए जो वहीं आपको ढेर सारे मेडिकल कॉलेज बनाकर दे.”
भाजपा के नारायणन तिरुपति के मुताबिक़ लोगों की भावनाओं से राजनीति की जा रही है. वो कहते हैं, “कांग्रेस नीट लेकर आई थी और सुप्रीम कोर्ट ने (लागू करने का) आदेश दिया. पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के अनुरोध पर ये भाजपा सरकार थी जिसने (नीट के लागू होने में) एक साल की छूट दी.
अगले साल जब ये छूट फिर देना चाहते थे तो सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया. और वहीं समस्या है. वो बहुत सारी चीज़ों का वायदा कर रहे हैं लेकिन ये नहीं होगा. ये झूठे वायदे हैं.”डॉक्टर मैस्केरेनाज़ के मुताबिक़ सुप्रीम कोर्ट का दिया फ़ैसला अंतरिम था और मामला अभी भी जारी है. सात चरणों के इस चुनावी त्योहार में सोशल मीडिया की जंग अभी और तेज़ होगी.
विनीत खरे
बीबीसी से साभार