राजनीतिक संवाददाता द्वारा
रांची. पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनावी नतीजे आ गए हैं और इनमें भारतीय जनता पार्टी का शानदार प्रदर्शन रहा है. पंजाब को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में उसी की सरकार बन रही है. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में तो उसने शानदार सफलता हासिल की है और मणिपुर में भी उसे अकेले दम बहुमत मिल गया है. गोवा में भी उसने बहुमत का आंकड़ा लगभग छू लिया है.
यह ऐसी जीत है, जिसकी भाजपा को 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से तलाश थी, क्योंकि उस चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी एक के बाद एक राज्य हारती आ रही थी. असम के अपवाद और बिहार को छोड़कर उसने सारे चुनाव हारे थे. झारखंड में भी 2019 के अंतिम महीनों में चुनाव हुए थे और वहां भी भाजपा को भारी पराजय का सामना करना पड़ा था. तब के मुख्यमंत्री रघुबर दास तक चुनाव हार गए थे.
लेकिन भारतीय जनता पार्टी अपनी हार को भी जीत में बदलने के लिए विख्यात हो गई है. पांच साल पहले हुए चुनाव में वह मणिपुर और गोवा में हार गई थी. उसके बावजूद उसने वहां सरकार बनाई. कर्नाटक और मध्यप्रदेश में तो उसने बनी बनाई सरकारों को गिराकर अपनी सरकार बना ली. भारी पैमाने पर दोनों राज्यों में दलबदल करवाया गया. दलबदल कानून के तहत सदस्यता गंवाकर विधायकों ने प्रलोभन में दल बदले और फिर चुनाव लड़कर दोबारा विधायक बने. उनमें एकाध बार चुनाव लड़ने के क्रम में हार भी गए थे.
जो खतरा मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार और कर्नाटक की कुमारस्वामी सरकार को हुआ, वही खतरा अब झारखंड की हेमंत सरकार पर भी मंडरा रहा है. कर्नाटक और मध्यप्रदेश में कांग्रेसी विधायकों को ऑपरेशन लोटस के तहत दल बदल कराया गया. झारखंड में भी दल बदल कराया जा सकता है. और इसके लिए भारतीय जनता पार्टी के पास आरपीएन सिंह के रूप में एक ऐसा नेता है, जो पिछले कई सालों से झारखंड कांग्रेस के प्रभारी थे. जब 2019 में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे, तो उस समय वे ही कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी थे और झारखंड के कई विधायकों को उन्होंने ही टिकट दिए और दिलवाए थे.
झारखंड कांग्रेस के विधायकों और विधायकों के बाहर के नेताओं से भी आरपीएन सिंह का सीधा संबंध रहा है. उत्तर प्रदेश की जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी आरपीएन सिंह को झारखंड के मोर्चे पर लगा सकती है और भारी पैमाने पर दलबदल कराकर हेमंत सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है.
इस समय कांग्रेस के पास 16 प्लस 2 विधायक हैं और दलबदल विधेयक से बचने के लिए 12 विधायकों की जरूरत भाजपा को पड़ सकती है. यदि 12 की संख्या जुटाने में भाजपा सफल हो जाती है, तो फिर वहां ऑपरेशन लोटस की जरूरत भी नहीं पड़ेगी, जिसके तहत विधायकों से विधानसभा से इस्तीफे दिलवाकर फिर से चुनाव लड़ाए जाते हैं.
हेमंत सरकार अपने अस्तित्व के लिए कांग्रेस के 18 विधायकों पर टिकी हुई है. यदि उनमें से 12 क्या, यदि 9 विधायक भी टूटे तो सरकार अल्पमत में आ जाएगी.
अब भारतीय जनता पार्टी अपने मिशन में कामयाब हो पाएगी या नहीं, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन इससे झारखंड कांग्रेस के नेताओं और खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पेशानी पर शिकन तो आ ही जाएगा
इसके साथ-साथ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रेस सलाहकार श्री अभिषेक प्रसाद उर्फ पिंटू के छोटी मानसिकता के कारण मौजूदा परिस्थिति में सत्ताधारी कांग्रेस और झामुमो के कुछ विधायक बगावत के मूड में नजर आते दिख रहे हैं।जिनमें कांग्रेस के 7 विधायक और झामुमो के 6 विधायक हैं। झारखंड राज्य में 81 विधानसभा सीट पर सरकार बनाने के लिए 41 सीटें चाहिए। अगर आंकड़ों की माने तो भाजपा के 26 विधायक, झारखंड लोकतांत्रिक के 5 विधायक, कांग्रेस के 7 विधायक व झामुमो के 6 विधायक। कुल 44 विधायक मिलकर झारखण्ड की मौजूदा सरकार को गिरा सकते हैं।सूत्रों की मानें तो फिलहाल सत्ताधारी मोर्चा के विधायकों के बगावत में प्रदेश के मंत्री तक शामिल हैं।लगता है कि हेमंत सोरेन अभिमन्यु की तरह चारों तरफ से घिरते जा रहे हैं और अब बस हेमंत सोरेन की सरकार गिरने का इंतजार कर रहे हैं !ऐसे तो इन बातों को झारखंड मुक्ति मोर्चा को सोचना होगा कि हेमंत सोरेन सरकार को गिरने दें या बचा लें !