अरुण कुमार चौधरी,
इस समय लोकसभा चुनाव के छठे राउंड के चुनाव में झारखंड का 4 सीटों पर 12 मई को वोट डाले जाऐंगें। जिसमें सिंहभूम, जमशेदपुर, धनबाद और गिरिडिह में चुनाव होगा। इन चारों सीटों पर भाजपा और महागठबंधन आमने-सामने है, दोनों तरफ से प्रचार चरमसीमा पर पहुंच गया है तथा दोनों तरफ से ताकत चुनाव में झोक दिया है। इस चुनाव में आदिवासी अति पिछड़ीजाति, दलित, ईसाई तथा मुस्लिम वर्ग बहुत ही उग्ररूप से महागठबंधन के साथ दिख रहा है। जबकि शहरी क्षेत्रों में तथा ग्रामीण क्षेत्रों में साहू एवं उच्च वर्ग के लोग भाजपा के साथ खड़े दिख रहे हैं। इस समय आरएसएस के लोग भी कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री रघुवर के गलत नीति के कारण आदिवासी का पूरा का पूरा वर्ग भाजपा से विमुख हो गया है। जिसके कारण आदिवासी लोकसभा क्षेत्र भाजपा के हाथों से खिसकते जा रहा है। जिसके कारण सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी श्री मधु कोड़ा की स्थिति बहुत ही मजबूत लग रहा है।
इसी क्रम में सिंहभूम यानी शेरदिल लोगों की जमीन। झारखंड में यह किसी शहर, गांव का नाम नहीं- एक भूगोल है जो दो संसदीय क्षेत्रों-जमशेदपुर और सिंहभूम को समेटता है। स्टील सिटी जमशेदपुर से सटकर बहने वाली स्वर्णरेखा नदी पर बने पुल को पार करते ही सरायकेला जिला शुरू होता है। फैक्ट्रियों और फ्लैटों से भले ही शहरी क्षेत्र चमचमाता हो लेकिन यहां का ग्रामीण इलाका कुपोषण के मामले में अव्वल है। हालांकि सिंहभूम में कुपोषण मुद्दा नहीं है।
छठे चरण के चार संसदीय क्षेत्र सिंहभूम, जमशेदपुर, धनबाद और गिरीडीह में 12 मई को वोट डाले जाएंगे। इन संसदीय क्षेत्र के शहरों में राष्ट्रवादी रुझान भले ही हावी हो लेकिन इनके आदिवासी इलाके अभी भी जद्दोजहद से जूझ रहे हैं। 2014 में चारों सीटें भाजपा ने जीती थीं। इस बार भाजपा ने गिरीडिह सीट गठबंधन की सहयोगी आजसू को सौंपी है। अब तक झारखंड में अकेले लड़ने वाली भाजपा के लिए गठबंधन का यह पहला प्रयोग है।
सिंहभूम में पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की विरासत पत्नी गीता कोड़ा ने संभाल रखी है। उनकी पार्टी जय भारत समानता पार्टी (जनभासपा) का विलय कांग्रेस में हो चुका है। वे कांग्रेस उम्मीदवार हैं और उनका मुकाबला भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा से है। जनजातीय बाहुल्य सीट पर निर्णायक आदिवासी मतदाता ही हैं। मुकाबला सीधा है और जीत का राज सरायकेला विधानसभा क्षेत्र में छिपा है। क्योंकि क्षेत्र के 1284 बूथों में से 431 अकेले सरायकेला में हैं। गिलुआ ने 2014 में यहीं से 87,524 मतों की बढ़त ली थी। 3.15 लाख मतदाता सरायकेला में हैं।
गिलुआ को भरोसा है कि सरायकेला उनकी नैया पार लगाएगा। गीता और गिलुआ ‘हो’ आदिवासी समुदाय से हैं। 65% आदिवासी आबादी वाले इस क्षेत्र में सर्वाधिक ‘हो’ आदिवासी ही हैं, लिहाजा समाज का मत दोनों के बीच बंटेगा। झामुमो (उलगुलान) से पूर्व सांसद कृष्णा मार्डी भी लड़ रहे हैं, वे संथाल हैं। गिलुवा से लोगों में नाराजगी है। बावजूद इसके पीएम मोदी यहां भी बड़ा फैक्टर हैं। सक्रियता और मिलनसार स्वभाव गीता कोड़ा की ताकत है।
जमशेदपुर सीट पर भाजपा के विद्युतवरण महतो के खिलाफ झामुमो ने झारखंड टाइगर चंपई सोरेन को उतारकर लड़ाई दमदार बना रखी है। झारखंड पीपुल्स पार्टी से पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा और तृणमूल कांग्रेस से अंजना महतो भी हैं। अंजना के पति श्रीकांत महतो प. बंगाल की सालबनी से तृणमूल के विधायक हैं। सामान्य सीट पर झामुमो के आदिवासी प्रत्याशी उतारने को भाजपा हवा दे रही है। उसकी नजर महतो वोट पर है। शहरी वोटर मोदी को एक और मौका देने के पक्ष में हैं तो गांवों में झामुमो की चर्चा है।
जमशेदपुर लोकसभा सीट पर वैसे तो 23 प्रत्याशी मैदान में हैं. लेकिन सीधा मुकाबला बीजेपी के विद्युतवरण महतो और महागठबंधन के तहत जेएमएम प्रत्याशी चंपई सोरेन के बीच है. विद्युतवरण महतो यहां के सीटिंग सांसद हैं. 2014 के चुनाव में उन्होंने जेएमएम का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थामा. और लोकसभा चुनाव में जेवीएम के प्रत्याशी अजय कुमार को हराया. विद्युतवरण जेएमएम के टिकट पर बहरागोड़ा से विधायक रह चुके हैं. उन्होंने अपनी सियासत की शुरुआत जेएमएम से ही की.
जेएमएम प्रत्याशी चंपई सोरेन झारखंड सरकार में दो बार मंत्री रह चुके हैं. वह लगातार सरायकेला से जेएमएम विधायक रहे हैं. हालांकि उन्होंने अपनी चुनावी सफर की शुरुआत निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर 1991 में की थी. 1991 में वह सरायकेला से जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचे थे. चंपई जेएमएम में शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन के बाद तीसरे नंबर के नेता हैं. पार्टी में उनकी मजबूत पकड़ और टाइगर के नाम से जाने जाते हैं. जमशेदपुर और उसके आस-पास के इलाकों में वह मजदूरों के लिए आंदोलन करते रहे हैं.
जमशेदपुर औद्योगिक नगर के रूप में देश प्रसिद्ध है. पारसी व्यवसायी जमशेदजी नशरवान जी टाटा ने यहां 1907 में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (टिस्को) की स्थापना की. उसी के साथ इस शहर की भी नींव पड़ी. यहां पर टाटा घराने की कई कंपनियां स्थापित हैं.
जमशेदपुर सीट पर बीजेपी और कांग्रेस को चार-चार बार और जेएमएम को तीन बार जीत मिली है. 1957 में यहां पहला लोकसभा चुनाव हुआ. इसमें कांग्रेस के मोहिन्दर कुमार घोष जीते. 1962 में कम्यूनिस्ट पार्टी के उदयकर मिश्रा जीतने में कामयाब हुआ. 1967 में कांग्रेस पार्टी के एससी प्रसाद और 1971 में कांग्रेस के ही सरदार स्वर्ण सिंह जीते. 1977 और 1980 में इस सीट से जनता पार्टी के रुद्र प्रताप सारंगी जीते. 1984 में कांग्रेस के गोपेश्वर जीते.
1989 और 1991 में इस सीट से झारखंड मुक्ति मोर्चा के शैलेंद्र महतो जीते. 1996 में बीजेपी के नितिश भारद्वाज जीतने में कामयाब हुए. 1998 और 1999 में बीजेपी के टिकट पर आभा महतो जीतीं. 2004 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुनील महतो जीते. 2007 में हुए उपचुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर ही सुमन महतो जीते. 2009 में इस सीट से बीजेपी के टिकट पर अर्जुन मुंडा जीते. 2011 में हुए उपचुनाव में झारखंड विकास मोर्चा के अजय कुमार जीते. 2014 में बीजेपी के विद्युतवरन महतो जीतने में कामयाब हुए.
इस लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत छह विधानसभा सीटें, बहरागोरा, घाटशिला, पोटका, जुगसलाई, जमशेदपुर पूर्वी और जमशेदपुर पश्चिमी आती हैं. इनमें बहरागोड़ा पर जेएमएम का कब्जा है. बाकी पांच पर एनडीए विधायक हैं. यहां कुल मतदाता 16 लाख 70 हजार 371 हैं. इनमें महिला 8 लाख 14 हजार 481 और पुरुष मतदात 8 लाख 55 हजार 831 शामिल हैं.
झामुमो को पोटका में इस बार परेशानी है। इसकी वजह भूमिज आदिवासी मत हैं। भूमिज एकतरफा वोट करते हैं और इस समय वह भाजपा के साथ हैं। झामुमो को इसका अहसास है लिहाजा चंपई सोरेन गांव में ही डटे हुए हैं। जीत की चाबी शहर की 86 अवैध बस्तियों में छिपी है। इन बस्तियों में मुख्यमंत्री रघुवर दास का खासा प्रभाव है। बस्तियों के लोगों ने खुद को राष्ट्रवाद से जोड़ लिया है। इस समय जमशेदपुर में टाइगर चंपई सोरेन की स्थिति मजबूत है।
धनबाद में भाजपा प्रत्याशी पीएन सिंह और कांग्रेस के कीर्ति झा आजाद के बीच टक्कर है। परसेप्शन में पीएन सिंह आजाद पर भारी हैं लेकिन सिंह मेंशन के सिद्धार्थ गौतम की निर्दलीय उम्मीदवारी उनके लिए सिरदर्द बनी हुई है। गौतम के भाई संजीव सिंह भाजपा विधायक हैं और फिलहाल जेल में हैं। पीएन सिंह ने तीन दशक की चुनावी राजनीति में हार का स्वाद नहीं चखा है। लंबे राजनीतिक सफर के कारण उनके विरोधी भी हैं। पूर्व सांसद रीता वर्मा खफा हैं, लेकिन नमो का नाम आगे कर पीएन गुस्सा शांत करने में जुटे हैं। कीर्ति झा आजाद ब्राह्मण और भूमिहार मतों को साधने में लगे हैं। इस समय धनबाद में पीएन सिंह की स्थिति मजबूत है।
गिरीडिह में दो महतो के बीच सीधी भिड़ंत है। भाजपा ने आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी को उतारा है। भाजपा की नजर बड़े वोट बैंक कुर्मी पर है। भाजपा यह सीट देकर बाकी 13 सीटों पर आजसू के वोटों का ट्रांसफर चाहती है। लिहाजा सांसद रवींद्र पांडेय का टिकट काटकर जोखिम लिया है। झामुमो ने डुमरी विधायक जगरनाथ महतो को उतार स्थिति अपने पक्ष में करने की कोशिश की है। जगरनाथ 2014 में 40 हजार मतों से हारे थे। भाजपा कार्यकर्ता आजसू को सीट देने से निराश हैं। यह निराशा बनी रही तो चौधरी को परेशानी हो सकती है। हालांकि नमो के नाम पर चौधरी को भी वोट मिलेंगे। इस क्षेत्र में दोनों महागठबंधन और बीजेपी में कड़ी टक्कर चल रही है, परंतु कुछ जगह एनडीए के प्रत्याशी श्री चौधरी की स्थिति मजबूत लग रही है।