विशेष प्रतिनिधि द्वारा
सुपौल. बिहार के सुपौल में कोसी (Kosi River) तटबंध के अंदर बालू और पानी से भरी हुई किसानों की रैयती जमीन बिहार सरकार के नाम से होने का अंदेशा मिलते ही इलाके के किसानों में खलबली मच गई है. इसके खिलाफ किसान गोलबंद होकर आंदोलन को उतारू हो गए हैं. कोसी तटबंध के भीतर के किसानों ने आज सदर प्रखंड के रामपुर गांव में महापंचायत बुलाकर बिहार सरकार के इस फैसले पर अपना विरोध जताया है. साथ ही आंदोलन की भी चेतावनी दी है.
दरअसल, सरकारी नियम के अनुसार, कोसी जिस भी इलाके से बहती है वो जमीन इस बार होने वाले सर्वे में बिहार सरकार के नाम से होने का अंदेशा किसानों को लगा है. इसके बाद से ही जिन लोगों की जमीन पर से कोसी बहती है उन किसानों में इस बात को लेकर बैचेनी बढ़ गई है. उन्हें लग रहा है कि सरकार उनकी जमीन को हड़पने वाली है.
किसानों का कहना है कि 1955 में जब कोसी बराज बना तो उससे पूर्व इलाका काफी खुशहाल था. उस वक्त देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने सुपौल के बेरीयामंच आकर किसानों से श्रमदान करने को कहा और वादा किया था कि उनकी एक आंख कोसी तटबंध के भीतर रहेगी.
वहीं, किसानों का कहना है कि उसके बाद जितनी भी सरकारें आई उन्होंने कोसी की तरफ झांकना तक मुनासिब नहीं समझा, जिसकी वजह से सैकड़ों एकड़ जमीन वाले किसान भी अन्न के दाने के लिए तरसने लगे. इतना ही नहीं सरकार हर साल उन जमीनों का राजस्व भी उन किसानों से वसूलती रही है. लेकिन इस बार होने वाले सर्वे में कोसी नदी की धारा बदलने के कारण रैयतों की जमीन आने लगी है.
सरकार के नियम के हिसाब से अगर खतियान और नक्शा निर्माण के समय यदि क्षेत्र में नदी हो तो खाता बिहार सरकार के नाम से खुलेगी. इसके विरोध में किसानों का कहना है कि कोसी नदी धारा बदलने के लिए जानी जाती है और इससे पूर्व भी उनकी जमीन बिहार सरकार की चुकी है. इस बार फिर नदी ने धारा बदल कर उनकी रैयती जमीन पर बहना शुरू कर दिया है तो ऐसे में अगर उनकी जमीन जाती है तो क्या खाएंगे.