कथित औद्योगिक नगरी टंडवा का एक आदिवासी परिवार
भोलेपन व निरक्षरता का फ़ायदा उठाकर बिचौलियों ने की ठगी।
ना राशन ना पेंशन, दीवार की ओट में कैसे कटेगी इस बरसात की जिंदगी
टंडवा/चतरा से संवाददाता कुन्दन पासवान
देश के विकास में अरबों रुपए के राजस्व का योगदान देने वाले विरोधाभाषी कथित औद्योगिक नगरी टंडवा में निचले पायदान पर रहने वाले वैसे तो दर्जनों लोगों की हालात अब भी बद से बदतर दिखाई देती है। जिनमें ऐसे लोग भी मिलते हैं जिन्हें राज्य सरकार के बहुचर्चित आपकी सरकार आपके द्वार कार्यक्रम में उनके दरख़्वास्त और फरियादों की अबतक सुध किसी ने नहीं लिया जिससे वैसे जरुरतमंद तंगहाली में गुजर बसर करते दिखाई देते हैं।
ऐसे हीं एक फरियादी प्रखंड क्षेत्र के शिवपुर के रहने वाले माघो गंझू पिता झोतर गंझू व उसके भाई तुलेश्वर गंझू की दास्तान से हम आपको रुबरु करायेंगे, जिसको सुनकर मेरा दावा है आप यहां की स्थिति जानकर घोर विस्मय में पड़ जायेंगे! लोगों की मानें तो मजदूरी और खेतीबारी से कभी स्वाभिमान की जिंदगी जीनेवाला व्यक्ति लाखों रुपए की अपनी पैतृक भू-संपदा सीसीएल और रेलवे को देकर भी अब दो जून की रोटी के लिए मोहताज है। गुमनामी व तंगहाली में वो किसी तरह जीर्ण-शीर्ण बगैर खपड़ा वाले मिट्टी के दीवार की ओट में गुजर- बसर कर रहा है। बरसात के दिनों में उसका दिन कैसे कटेगा इस सवाल का जबाव वो भगवान के भरोसे टाल देता है। ना सरकारी पेंशन और ना हीं मिलता है उसे राशन! एक बेटी है जिसका विवाह हो जाने के बाद वो भूल बिसर सी गई है। कहता है दो साल पहले हीं पत्नी की असामयिक मौत हो गई।बचपन से पूरी जवानी वो मेहनत मजदूरी के लिए दूर- दूर कई राज्यों में प्रवासी श्रमिक बनकर रहा, अब शरीर उसका साथ नहीं देता। बताया जाता है कि जमीन के बदले मिलने वाले लाखों रुपए को उसके निरक्षरता और भोलेपन का फ़ायदा उठाकर कुछ बिचौलियों ने उड़ा लिये।उसकी बेटी भी उसके हालातों को नहीं समझती वो मिले मुआवजे के पैसों की मांग करती है।दर्द, दास्तान के हकीकत को वो झूठ समझने से उसे भूल बिसर गई है। यहां तक की सीसीएल, रेलवे व प्रखंड के सरकारी बाबू तथा जनप्रतिनिधि तक उसकी सुध नहीं लेते। उसकी बदतर हालात कोई कुछ दे जाता है। स्थिति को देखकर शिवपुर पिकेट में रहने वाले सीआइएसएफ के सुरक्षाबलों ने सुध लेते हुवे भूख लगने पर उसे खाना देने का भरोसा दिये हैं।