News Agency : पिछले हफ्ते कांग्रेस संसदीय दल (सीपीपी) की बैठक में सोनिया और राहुल गांधी की टिप्पणियों ने मुझे अपने पहले के आकलन को सुधारने के लिए बाध्य किया है। अब मुझे लग रहा है कि कांग्रेस इच्छा मृत्यु के लक्षणों को प्रकट कर रही है!बेशक राहुल ने निर्भीक, निडर और अनथक तरीके से प्रचार किया और कुछ ऐसे मुद्दे उठाए, जिसके बारे में उन्हें लगता था कि वे मतदाताओं को दिलोदिमाग को आंदोलित करते हैं-भारत और राष्ट्रीय संस्थानों पर हमला, सांप्रदायिक विभाजन और असहिष्णुता, गायों पर निगरानी और भीड़ हत्या, नोटबंदी के दुष्प्रभाव, जीएसटी का गलत तरीके से क्रियान्वयन, अर्थव्यवस्था का लचर प्रदर्शन, बेरोजगारी और किसानों के संकट में वृद्धि, राफेल सौदे में अनिल अंबानी को मोदी का उपहार इत्यादि।दुर्भाग्य से उनका सबसे उत्तम प्रयास भी मोदी को हराने के लिए पर्याप्त नहीं था, जिन्होंने कांग्रेस को करारी मात दी। राहुल को वही करना चाहिए, जो उन्होंने अपनी पार्टी के चुने हुए सदस्यों को करने की सलाह दी है कि ‘आत्मनिरीक्षण करें, और समझने की कोशिश करें कि क्या गलत हुआ और पार्टी का कायाकल्प करने की कोशिश करें।’यदि वह ऐसा करते हैं, तो निम्नांकित विचार उनके दिमाग में आ सकते हैं-पहला, उनका जोरदार संदेश मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर पाया। क्यों, क्या उनका संदेश गलत था? या संदेशवाहक ने खुद को उसके लिए तैयार नहीं किया? उन्होंने जितने मुद्दे उठाए, उनमें से अधिकांश प्रासंगिक थे, लेकिन उन मुद्दों के बारे में लोगों में नकारात्मकता उतनी नहीं थी, जितना वह बता रहे थे। उन्होंने मोदी पर सामने से वार किया-चौकीदार चोर है। इस नारे ने उन्हें अरविंद केजरीवाल का कैरीकेचर बना दिया। कई लोगों ने इसे उस व्यक्ति के लिए अनुपयुक्त बताया, जो एक दिन खुद प्रधानमंत्री बनना चाहता है।
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