इच्छा मृत्यु की राह पर चल पड़ी है कांग्रेस

इच्छा मृत्यु की राह पर चल पड़ी है कांग्रेस

News Agency : पार्टी की उम्मीद कहे जा रहे युवा अध्यक्ष राहुल गांधी ने पद से इस्तीफ़ा दे चुके हैं और कार्यसमिति के सामने इस्तीफ़ा सौंपने के पचास दिन के बाद भी नए नेतृत्व का चुनाव नहीं हो पाया है.उधर लगातार प्रदेश इकाइयों से कांग्रेस के लिए बुरी ख़बरें आ रही हैं. कर्नाटक में वह जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) के साथ अपनी गठबंधन सरकार बचाने के लिए संघर्ष कर रही है और गोवा में उसके दो तिहाई विधायकों ने रातोंरात भाजपा का पटका पहन लिया है. मध्य प्रदेश में भी मुख्यमंत्री कमलनाथ की बड़ी ऊर्जा विधायकों को एकजुट रखने में ख़र्च हो रही है.कांग्रेस की ऐसी हालत का ज़िम्मेदार कौन है, क्या पार्टी ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के सपने की ओर बढ़ चली है और इससे उबरने का क्या कोई रास्ता नज़र आता है?इन्हीं सवालों के साथ बीबीसी संवाददाता कुलदीप मिश्र ने कांग्रेस की सियासत पर नज़र रखने वाले दो वरिष्ठ पत्रकारों विनोद शर्मा और स्वाति चतुर्वेदी से बात की.कांग्रेस मुक्त भारत’ का सपना नरेंद्र मोदी और अमित शाह नहीं, बल्कि ख़ुद कांग्रेस पार्टी साकार कर रही है. ऐसा लगता है कि उन्होंने ख़ुद इच्छामृत्यु का फ़ैसला कर लिया है.मैं एक पत्रकार हूं और चुनाव नतीजे आने के पहले ही मैंने लिखा था कि भाजपा यह चुनाव जीतती है तो कांग्रेस की तीनों प्रदेश सरकारें ख़तरे में आ जाएंगी. एक पत्रकार को अगर ये बात पता है तो कांग्रेस के नेता किस दुनिया में रह रहे हैं.कर्नाटक की वह तस्वीर याद करिए जब मुंबई में कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार सरकार बचाने की कोशिश में कितने अकेले नज़र आ रहे थे. जब यह बात ट्विटर पर आ गई तो हाल ही में मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा का बयान आया कि उन्होंने डीके शिवकुमार से फोन पर बात कर ली है. क्या आज कल कांग्रेस नेता शक्तिप्रदर्शन और समर्थन फोन पर करने लगे हैं?मध्य प्रदेश में ये हाल है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एक-एक मंत्री को दस-दस विधायकों पर नज़र रखने की ज़िम्मेदारी दी है ताकि वे टूटे नहीं. ऐसे सरकार कैसे चलेगी?ये हाल तब है, जब हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में इसी साल चुनाव होने हैं. यहां सीधे भाजपा और कांग्रेस की टक्कर है. एक ज़माने में कांग्रेस की हाईकमान बड़ी शक्तिशाली समझी जाती है जो अब लगता है कि बिल्कुल ख़त्म ही हो गई है.राहुल गांधी को इस्तीफ़ा दिए पचास दिन हो गए. वो दो दिन पहले अमेठी गए. अच्छा होता कि वो मुंबई जाते और वहां कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार के बगल में खड़े होते, अपनी मुंबई इकाई को बुलाते, उनके पास तीन पूर्व मुख्यमंत्री हैं, उन्हें बुलाते और एक संदेश देते.राजनीति सड़कों पर होती है, सोशल मीडिया पर नहीं. पर आज कल ऐसा लगता है कि कांग्रेस राजनीति करना ही नहीं चाहती.

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