बिहार की 40 में से कम से कम सात संसदीय सीटों पर निर्दलीय या छोटे दलों के उम्मीदवार मुकाबले का तीसरा कोण बना रहे हैं। आने वाले दिनों में इनकी संख्या बढ़ भी सकती है। उधर, सुपौल में महागठबंघन के उम्मीदवार के खिलाफ राजद ही खुलकर खड़ा दिख रहा है।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो नेता बागी बने थे। अशोक अग्रवाल ने कटिहार से नाम वापस ले लिया। जबकि, प्रदेश उपाध्यक्ष पुतुल कुमारी बांका से चुनाव लड़ रही हैं। वे मुकाबले में हैं भी। पार्टी ने उन्हें निकाल दिया है।
सबसे दिलचस्प तस्वीर मधेपुरा की है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के टिकट पर सांसद बने पप्पू यादव अपनी जन अधिकार पार्टी के टिकट पर लड़ रहे हैं। मुकाबले में राजद के शरद यादव और जदयू के दिनेश चंद्र यादव हैं। ये तीनों कभी आपस में बेहद करीबी रहे हैं। पप्पू यादव ने राजनीति में किसी को गुरु नहीं माना। मगर, शरद और दिनेश के बीच गुरु शिष्य का रिश्ता रहा है। कोसी में शरद के चार-पांच भरोसेमंद लोगों में दिनेश यादव का नाम था।
पप्पू की मधेपुरा की उम्मीदवारी का खामियाजा उनकी पत्नी और कांग्रेेस सांसद रंजीत रंजन को सुपौल में भुगतना पड़ रहा है। राजद ने कांग्रेस के बदले एक निर्दलीय को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है। यहां त्रिकोणीय संघर्ष अंत तक रहेगा।
देवेंद्र प्रसाद यादव लोकसभा में पांच बार झंझारपुर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। फिलहाल अपनी पार्टी सजद के उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव लड़ रहे हैं। वे समाजवादी पार्टी में सक्रिय थे। महागठबंधन से टिकट मिलने की संभावना थी। बात बनी नहीं तो अपनी पार्टी से मैदान में उतर गए। देवेंद्र यादव की पहचान है। उनकी दावेदारी को खारिज नहीं किया जा सकता है। राजद के विधायक गुलाब यादव लोकसभा के उम्मीदवार हैं। जदयू ने प्रखंड प्रमुख रामप्रीत मंडल को उम्मीदवार बनाया है।
महाराजगंज के लिए भाजपा के विधान परिषद सदस्य सच्चिदानंद राय ताल ठोक रहे हैं। भाजपा ने मौजूदा सांसद जनार्दन सिंह सीग्रीवाल को उम्मीदवार बनाया है। राजद के रणधीर सिंह हैं। राय का कहना है कि निर्दलीय लड़ेंगे। जीत गए तो भाजपा में शामिल हो जाएंगे। हार की हालत में भी भाजपा से अलग नहीं होंगे। वैसे, पार्टी की मर्जी, वह कार्रवाई कर सकती है।
किशनगंज में कांग्रेस और जदयूू उम्मीदवारों के बीच मुकाबले का तीसरा कोण एआएमआइएम के उम्मीदवार अख्तरूल इमान बना रहे हैं। हाल के दिनों में सीमांचल सीमांचल इलाके में इस संगठन की सक्रियता बढ़ी है। जीत-हार के बारे में कुछ नहीं कहा जा रहा है, लेकिन इमान पूरी मुस्तैदी से चुनाव लड़ रहे हैं।
पश्चिमी चंपारण में भी राजन तिवारी के आने से त्रिकोणीय संघर्ष की तस्वीर बन सकती है। तिवारी राजद में थे। टिकट को लेकर इत्मीनान में भी थे। तालमेल में यह सीट राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के हिस्से चली गई। तिवारी ने पहले निर्दलीय चुनाव लडऩे का फैसला किया था। नई खबर यह है कि वे बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे।
वाल्मीकिनगर के मौजूदा सांसद सतीश चंद्र दुबे बेटिकट हो गए हैं। उनके समर्थक निर्दलीय चुनाव लडऩे के लिए दबाव बना रहे हैं। लड़ गए तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के अधिकृत उम्मीदवार वैद्यनाथ प्रसाद महतो को परेशानी में डाल सकते हैं।