आखिर बीजेपी क्यों नहीं दिखा रही 2004 जैसा जोश?

News Agency : 15 साल पहले अटल बिहारी वाजपेयी सरकार पूरे विश्वास के साथ चुनावों में उतरी थी और संदेश यह दिया जा रहा था कि जीत तो पक्की है। लेकिन जब नतीजे आए तो न सिर्फ मीडिया बल्कि मध्य वर्ग भी बीजेपी की हार से भौंचक रह गया था। हालांकि उस वक्त भारत उदय यानी इंडिया शाइनिंग का नारा जोर-शोर से उछाला गया था। इस नारे को लेकर बीजेपी को इतना भरोसा था कि जीत तो पक्की ही है। 2019 में ऐसा नहीं है। कई लोगों को बीजेपी के…

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आज के समय में भारत के लिए बेरोजगारी है सबसे ज्वलंत मुद्दा

News Agency : दुनिया भर के शासक एवं सत्ताएं अपनी उपलब्धियों का चाहे जितना बखान करें, सच यह है कि आम आदमी की मुसीबतें एवं तकलीफें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। इसके बजाय रोज नई-नई समस्याएं उसके सामने खड़ी होती जा रही हैं, जीवन एक जटिल पहेली बनता जा रहा है। विकसित एवं विकासशील देशों में महंगाई बढ़ती है, मुद्रास्फीति बढ़ती है, यह अर्थशास्त्रियों की मान्यता है। पर बेरोजगारी क्यों बढ़ती है? एक और प्रश्न आम आदमी के दिमाग को झकझोरता है कि तब फिर विकास से…

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भय, भूख और भ्रष्टाचार से त्रस्त है झारखंड – मोदी सरकार के खिलाफ गुस्सा

News Agency : कई ऑटो-टैक्सी वाले मिलेंगे जो कहेंगे कि, “रांची में तो कई मुद्दा है ही नहीं। पक्की सड़कें हैं सब तरफ, गरीबों को मकान मिले हैं, नौकरी मिली है, पानी मिला है। उन्हें तो यही सब चाहिए। यह सब बीजेपी सरकार ने ही किया है।” ये सब सुनकर आप सोचते हैं कि क्या वाकई ऐसा है?बिहार में तो लोग अपनी राजनीतिक राय खुलकर सामने रखते हैं, लेकिन झारखंड में ऐसा क्यों नहीं दिखता? दरअसल यहां शहरी और देहाती फर्क साफ नजर आता है। लोगों को डर है कि…

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मोदी के अपराध मुक्त राजनीति के वादे का क्या हुआ?

What happened to Modi's promise of crime free politics?

नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले बिना भेदभाव के एक साल के अंदर जिस संसद को अपराध मुक्त बनाने का वादा किया था वह पांच साल बाद भी पूरा नहीं हुआ. इस दौरान उनकी पार्टी के कई सांसदों और मंत्रियों पर कई गंभीर आरोप लगे मगर आपराधिक मुकदमा चलाने की बात तो दूर, उन्होंने सामान्य नैतिकता के आधार पर किसी का इस्तीफ़ा तक नहीं लिया. पांच साल पहले 7 अप्रैल, 2014 को भाजपा ने अपना घोषणा-पत्र जारी किया था और उसमें चुनाव सुधार की बात करते हुए कहा था…

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नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव मैदान में क्यों नहीं उतरीं प्रियंका गांधी?

Why did Priyanka Gandhi not contest the election against Narendra Modi?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी में ख़ुद को ‘गंगा पुत्र’ बताते हैं, वहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी जब फूलपुर जाती हैं तो उनका स्वागत ‘गंगा की बेटी’ कहकर किया जाता है. दोनों एक-दूसरे को चुनावी रैलियों में निशाने पर लेते हैं और कयास भी लगाए जा रहे थे कि दोनों एक-दूसरे से चुनावी मैदान में भिड़ेंगे. लेकिन गुरुवार को जब कांग्रेस ने वाराणसी के लिए अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा की तो इन सभी कयासों पर विराम लग गया.पार्टी ने नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ प्रियंका गांधी के बजाय स्थानीय नेता…

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लोकसभा चुनाव में पीएम और सत्ताधारी पार्टी के आगे तमाशबीन बना चुनाव आयोग

In the Lok Sabha elections, the EC and the Election Commission, ahead of the ruling party

News Agency : निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है और इसलिए उससे यह उम्मीद करना उचित है कि वह सिर्फ न्याय करेगा ही नहीं, बल्कि न्याय करता दिखेगा भी। लेकिन इस चुनाव में वह जिस तरह की कार्रवाई कर रहा है, उससे लगता यही है कि वह बड़े पदों पर बैठे कुछ लोगों से डरा-सहमा सा है। इससे चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल उठना लाजमी है। लोकसभा चुनाव के प्रचार में अनुचित भाषा के प्रयोग पर चुनाव आयोग ने बीएसपी अध्यक्ष मायावती, एसपी के पूर्व मंत्री आजम खान, पंजाब के…

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क्या दूसरी बार भी चलेगा नरेंद्र मोदी का तिलिस्म?

Will Narendra Modi's Tselism run for the second time?

फ़रवरी की एक सर्द रात को श्रीनगर के आम लोग घने काले आसमान में उड़ते जेट फ़ाइटर की आवाज़ से जग गए थे. कई लोगों को ये आशंका हुई कि युद्ध महज एक धमाके भर की दूरी पर रह गया है. भारत प्रशासित कश्मीर के लोग अपने यहां खाने-पीने का सामान जमा करने लगे. पेट्रोल पंप के सामने लोगों की लाइन लगने लगी तो पेट्रोल पंप पर पेट्रोल कम पड़ने लगा. अस्पताल के डॉक्टरों को दवाइयों का भंडार रखने को कहा गया. घबराये हुए लोग अपने बगीचों में बंकर बनाने…

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नर्मदा किनारे बसे नाम के नागरिक

सड़क के दोनों तरफ़ खड़ी तेंदू, टीक और साल के पेड़ों की लंबी क़तारें यह बताने के लिए काफ़ी हैं कि अब हम ‘सतपुड़ा के घने जंगलों’ में प्रवेश कर चुके हैं. दिल्ली से तक़रीबन हज़ार किलोमीटर दूर, मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल ज़िले अलिराजपुर में जैसे-जैसे गाड़ी ज़िला मुख्यालय से ककराना बस्ती की ओर बढ़ने लगती है, सायं-सायं करती पहाड़ी हवा में महुए की गंध घुलने लगती है. हर किलोमीटर के साथ ‘शहरी’ सभ्यता पीछे छूटती जा रही है. इसका पहला संकेत मिलता है मोबाईल फ़ोन के सिग्नल ग़ायब…

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आदिवासी लिंचिंग पीड़ितों ने कहा, पीटने वाले जय श्रीराम के नारे लगा रहे थे

झारखंड के गुमला ज़िले में बीते 10 अप्रैल को गोहत्या के शक में भीड़ ने कुछ आदिवासियों पर हमला कर दिया था. इसमें एक आदिवासी की मौत हो गई थी, जबकि तीन अन्य घायल हो गए थे. 10 अप्रैल 2019 को झारखंड में गुमला के डुमरी ब्लॉक के जुरमु गांव के रहने वाले 50 वर्षीय आदिवासी प्रकाश लकड़ा को कथित तौर पर गोहत्या के शक में पड़ोसी जैरागी गांव के लोगों की भीड़ ने पीट-पीट कर मार दिया. भीड़ के हमले में घायल तीन अन्य पीड़ित- पीटर केरकेट्टा, बेलारियस मिंज और…

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मॉब लिंचिंग क्यों नहीं बना झारखंड में चुनावी मुद्दा?

जुरमू गांव के प्रकाश लकड़ा अब इस दुनिया में नहीं हैं. बीती 10 अप्रैल को एक उन्मादी भीड़ ने उनकी पीट-पीटकर हत्या कर दी. यह भीड़ उनके ही पड़ोसी गांव जैरागी से आयी थी. भीड़ को शक़ था कि वे और उनके साथी गाय का मांस काट रहे हैं. जबकि, जुरमू के ग्रामीणों का कहना है कि प्रकाश और उनके तीन साथी मरे हुए बैल का मांस काट रहे थे. बैल के मालिक ने उनसे उसकी खाल (चमड़ा) उतारने के लिए कहा था. बहरहाल, प्रकाश लकड़ा का नाम अब झारखंड…

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