News Agency : “इस इलाके के तो हिंदू भी बीजेपी को वोट नहीं देंगे। हम तो हमेशा भाईचारे के साथ रहते आए हैं, उस घटना के बाद भी हम एक-साथ रहे। वे लोग हमेशा हमारी मदद को सामने आए। एक राजनीतिक दल कब तक नफरत और जीतने की बातें करता रहेगा, कब तक मासूमों के खून पर राज करता रहेगा?” यह बातें मरियम खातून ने हमें बताईं। मरियम खातून अलीमुद्दीन अंसारी की विधवा हैं, जिन्हें झारखंड के रामगढ़ में कथित गौरक्षकों ने गाड़ी से खींचकर पीट-पीटकर मार डाला था।
यूं तो यह घटना 2017 में हुई थी, लेकिन इस घटना का खौफ और असर आज भी इस इलाके में देखा जा सकता है। तपती दोपहरी में मरियम के घर की तरफ जाने वाली सड़क सुनसान है। इंदिरा आवास योजना के तहत मरियम को घर मिला था। यहां अच्छी खासी आबादी है, लेकिन चहल-पहल नहीं दिखती। सभी घरों ने बाहर वालों के लिए अपने दरवाजे बंद कर लिए हैं। जबकि महज 300 मीटर दूर मेन रोड पर शोर-शराबा सुनाई देता है।
मरियम खातून बताती हैं कि, “इस इलाके में बीजेपी से कोई नहीं आया। आखिर किस मुंह से वह अपना चेहरा दिखाएंगे। कांग्रेस के गोपाल साहू आए थे अभी तीन दिन पहले, और उनका बेटा भी हमारे घर आया था। बस इसके अलावा यहां कोई प्रचार करने नहीं आता। कांग्रेस में जोश नहीं दिख रहा है। आखिर वे भी क्या संदेश देना चाहते हैं?”
मरियम का घर हजारीबाग लोकसभा सीट के तहत आता है, जहां 5 मई को मतदान होना है। इस सीट से यशवंत सिन्हा के बेटे और मोदी सरकार में मंत्री जयंत सिन्हा उम्मीदवार हैं। जयंत सिन्हा ने अलीमुद्दीन के हत्यारोपियों का माला पहनाकर स्वागत-सत्कार किया था। उनका मुकाबला कांग्रेस के गोपाल साहू से है, लेकिन लगता है, कांग्रेस इस सीट पर बेदिली से चुनाव लड़ रही है।
इस 29 जून को अलीमुद्दीन की हत्या को दो साल हो जाएंगे। अलीमुद्दीन की हत्या में नामजद 12 में से सिर्फ एक मुख्य अभियुक्त दीपक मिश्रा ही जेल में है, बाकी को जमानत मिल गई है और वे खुलेआम घूम रहे हैं। इस मामले में एक नाबालिग भी आरोपी था, उसका मामला जुवेनाइल कोर्ट कोर्ट में है। इस मामले में बीजेपी नेता नित्यानंद महतो का नाम भी है, जिसे जिला अदालत ने उम्रकैद सुनाई थी, लेकिन वह भी जमानत पर छूट चुका है।
मरियम कहती हैं, “जैसे ही मेरे बच्चे बाहर जाते हैं, मुझे चिंता होने लगती है। मेरा छोटा बेटा कम्प्यूटर क्लास के लिए रामगढ़ गया है। जब तक वह वापस नहीं आएगा, मैं परेशान रहूंगी। अगर ये लोग मेरे पति पर हमला कर सकते हैं, तो अब तो कुछ भी, कभी भी हो सकता है। मेरी बेटी भी बाहर जाती है तो मैं परेशान होती हूं।”
अलीमुद्दीन की हत्या के बाद से मरियम की जिंदगी बेहद मुश्किल हो गई है। अभी चार महीने पहले ही उसके 23 साल के बेटे शहजाद अंसारी की अचानक सिर में दर्द के बाद मौत हो गई। उसे तो सरकारी नौकरी मिलने वाली थी। मरियम के परिवार को उससे काफी उम्मीदें थीं। मरियम के दो और बेटे और तीन बेटियां हैं। एक बेटी की शादी पश्चिम बंगाल के मालदा में हो चुकी है।
बाकी दो में से एक बेटी ने दसवीं के बाद स्कूल छोड़ दिया, क्योंकि घर की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी। छोटी बेटी अभी 9वीं में पढ़ती है। एक बेटा मदरसे में पढ़ता है और छोटा बेटा 9वीं में है। उसे राजीव गांधी फाउंडेशन की अमन बिरादरी की तरफ से स्कॉलरशिप भी मिली है। सरकारी नौकरी की उम्मीद में पढ़ाई के साथ ही वह कम्प्यूटर कोर्स भी कर रहा है।
मरियम के परिवार की कोई स्थाई आमदनी नहीं है। घर का खर्च पड़ोसियों, दोस्तों और खानदान की मदद से चलता है। मरियम बताती हैं, “मैंने सोचा था मैं काम करूंगी, लेकिन मेरी तबियत खराब रहने लगी है। मेरे सिर में लगातार दर्द रहता है। कई डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अब मैं जड़ी-बूटी से इलाज कर रही हूं, जिससे कुछ राहत है।”
मरियम के परिवार ने ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क की मदद से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाकर अलीमुद्दीन की हत्या के सभी दोषियों को जमानत दिए जाने के झारखंड हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है।
मरियम कहती हैं, “हमें इंसाफ की उम्मीद है। मैं सिर्फ अदालत से ही इंसाफ की उम्मीद कर सकती हूं। हम इसके आगे कर भी क्या सकते हैं। गरीबों के पास इसके अलावा और कोई रास्ता भी तो नहीं होता।”