हरियाणा और पंजाब के बाद दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी (AAP) के साथ कांग्रेस के गठबंधन में पेच फंसने के एक नहीं बल्कि अनेक कारण हैं। सबसे बड़ी वजह तो यही है कि AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल को कांग्रेस नेता बिल्कुल भी भरोसेमंद नहीं मानते। इसके अलावा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित और पूर्व अध्यक्ष अजय माकन के बीच 36 का आंकड़ा भी एक अहम कारक कहा जा सकता है।
वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के मुताबिक आप एक क्षेत्रीय पार्टी से इतर अपनी जगह बना ही नहीं पाई है, इसलिए लोकसभा के स्तर पर वह कहीं मुकाबले में नहीं ठहरती। दिल्लीवासी इससे भी भली भांति परिचित हैं कि प्रधानमंत्री कांग्रेस या भाजपा से ही बनना है। ऐसे में अगर दिल्ली में वे आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों जीता भी देंगे तो वह कुछ नहीं कर पाएंगे।
दूसरी तरफ पार्टी नेता AAP के सहयोग से 2013 में 49 दिन के लिए दिल्ली में बनी कांग्रेस की गठबंधन सरकार के कार्यकाल को भी बेहतर अनुभव नहीं मानते। एक पेंच यह भी सामने आया है कि गठबंधन होने की स्थिति में सबसे अधिक फायदा नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से संभावित प्रत्याशी अजय माकन को होता नजर आ रहा है।
दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी उस पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट को छोड़ने के लिए भी तैयार नहीं है जहां से 10 साल तक शीला दीक्षित के सुपुत्र संदीप दीक्षित सांसद रहे थे। शीला को यह दोनों ही चीजें गंवारा नहीं है। पिछले दिनों विधानसभा सत्र में रखे गए पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी से भारत रत्न वापस लेने संबंधी प्रस्ताव ने भी कांग्रेस नेताओं को गठबंधन के खिलाफ बड़ा मुद्दा दे दिया है।
AAP की घटती विश्वसनीयता और गिरते ग्राफ का तर्क भी दिया जाता रहा है। गठबंधन के खिलाफ शीला का यह तर्क भी राहुल के लिए दरकिनार करना मुश्किल रहा है कि, हम दिल्ली में दोबारा से अपने पांव पर खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं। अगर AAP के साथ गठबंधन किया गया तो इस कोशिश पर पानी फिर जाएगा। कुछ ही महीने बाद हमें विधानसभा चुनाव भी लड़ना है, इसलिए हमें अपने दम पर ही चुनाव लड़ना चाहिए।
AAP के साथ गठबंधन नहीं होने की सूरत में दिल्ली कांग्रेस के बड़े नेता चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा भी कर सकते हैं। ऐसे नेताओं का तर्क है कि पार्टी फिलहाल अपने दम पर जीतने की स्थिति में नहीं है और हारने के लिए चुनाव लड़ना कोई समझदारी नहीं है। वह भी तब जब चुनाव का खर्च करोड़ों रुपये बैठता हो।