रवीश कुमार
भारत की टेलिविज़न पत्रकारिता में सवाल पूछने की यात्रा की पहचान विनोद दुआ से बनती है. पूछने की पहचान के साथ उनकी पत्रकारिता जीवन भर जुड़ी रही. आज हमें बताते हुए अच्छा नहीं लग रहा कि हमने भारतीय टेलिविज़न की एक शानदार हस्ती को खो दिया. यह साल उनके लिए बहुत भारी रहा. कोरोना के कारण उन्होंने अपनी जीवनसाथी पदमावती चिन्ना दुआ को खो दिया, उस समय विनोद अस्पताल में ही भर्ती थे. उसके बाद भी उनकी सेहत पटरी पर नहीं लौट सकी और आज दिल्ली में उनका निधन हो गया. विनोद दुआ हमारे चैनल से भी जुड़े रहे हैं और यहां उन्होंने कई शानदार कार्यक्रम किए. ‘ख़बरदार’ और ‘ज़ायका इंडिया’ चंद नाम हैं. गुडमार्निंग इंडिया की यादें हम सबके मन में आज भी ताज़ा हैं जब उस कार्यक्रम के ज़रिए हम जैसे लोग एनडीटीवी में पत्रकारिता के बहुत से अनुशासनों को सीख रहे थे.
क्या बोलना और कैसे बोलना है, इसे लेकर विनोद दुआ के पास जो एकाधिकार था कोई उस स्तर तक नहीं पहुंच सका. भाषा उनके स्वभाव में आसानी से आती थी लेकिन इसके बाद भी वे एक एक शब्द के लिए काफी मेहनत करते थे. अपने शब्दों को काफी सम्मान देते थे और उनके उच्चारण की जगह ख़ास तरीके से तय करते थे. उनकी भाषा माध्यम के हिसाब से सटीक थी, संक्षिप्त थी और शालीन थी. उनकी भाषा में अंग्रेज़ी, पंजाबी, हिन्दी और उर्दू का बेहतरीन समावेश था. उनके पिता विभाजन के बाद पाकिस्तान के डेरा इस्माइल ख़ां से भारत आ गए थे. अपने पुरखों के शहर की पंजाबीयत और उसकी ठाठ तब खूब झलकती थी जब वे पठान सूट पहनते थे. कैमरे के सामने उनकी सहजता लाजवाब थी. टीवी का पत्रकार पत्रकारिता के पैमानों के साथ टीवी के माध्यम के प्रति उसकी समझ और उसके बर्ताव को लेकर भी जाना जाता है. माध्यम के लिहाज़ से विनोद दुआ हमेशा ही श्रेष्ठ प्रस्तोता बने रहे. विनोद दुआ के काम को समझना है तो कैमरे के सामने उनके हाव-भाव को देखिए. ऐसा लगता था कि दर्शक और उनके बीच कोई कैमरा ही नहीं है. दोनों आमने सामने बैठे हैं. किसी बात को कह कर और वहीं छोड़ कर आगे बढ़ जाने का फ़न उन्हें बहुत आसानी से आता था. ज़ायका इंडिया सफल नहीं होता अगर वे खाना खाने, खाना बनाने और खाना खिलाने में माहिर न होते. इस कार्यक्रम में विनोद को चलते फिरते देख आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उन्हे अपने माध्यम की कितनी गहरी समझ है. सब कुछ नपा तुला बोलना और सही जगह पर बोलना. राजनीतिक पत्रकारिता में दखल रखने वाले विनोद दुआ.
मसालों और व्यंजनों पर राजनीतिक और सांस्कृति रूप से इस तरह से बात कर जाएंगे किसी को यकीन नहीं था. अपनी पत्नी के निधन के बाद भी लिखते रहे कि वे वापस लौटेंगे. रिपोर्टिंग करेंगे.
दूरदर्शन के लिए उनका कार्यक्रम ‘जनवाणी’ और ‘परख’ आज भी यादगार माना जाता है. उस कार्यक्रम ने टीवी पत्रकारिता के लिए कई लोगों को प्रशिक्षित किया जो भविष्य में जाकर इस माध्यम का चेहरा बने. आपके इस ऐंकर को भी विनोद दुआ के साथ काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है. इस माध्यम के बारे में उनसे काफी कुछ सीखा है और जाना है. काम के बीच में उनका गुनगुना देना और किसी पुराने गाने को यूं याद कर लेना सबको सहज कर देता था कि सीनियर हैं मगर सहयोगी वाले सीनियर हैं. अपनी पत्नी चिन्ना के साथ उनका गाना और अच्छा गाना उनके दोस्त कभी नहीं भूल सकते हैं. हाल के दिनों तक वे तलत महमूद, बड़े गुलाम अली ख़ां, पंडित जसराज की गायकी पोस्ट करते रहे थे. डॉ प्रणय रॉय और उनकी जोड़ी चुनावी नतीजों के दिन पूरे देश को जगा देती थी और जगाए रखती थी. दोनों ने लंबे समय तक एक दूसरे के साथ काम भी किया. दोनों ने अलग-अलग भी काम किया और एनडीटीवी में भी एक साथ लंबे अर्से तक काम किया. टीवी पत्रकारिता का एक शानदार पन्ना आज अलग हो गया है. वो अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन इस माध्यम में इस कदर हैं कि लगता ही नहीं कि आज नहीं हैं. हाल के दिनों में हिमाचल प्रदेश के भाजपा नेता ने उन पर राजद्रोह का मामला दायर कर दिया. उस मुकदमे का सामना भी विनोद ने उसी निर्भिकता से किया. सुप्रीम कोर्ट ने विनोद के पक्ष में फैसला दिया.
विनोद दुआ हों और कुछ बोल न रहे हों, कुछ सख्त न हो बोल रहे हों तो फिर वे विनोद दुआ नहीं हो सकते. उनकी चाल ढाल में निर्भिकता भरी रहती थी. विनोद दुआ नहीं हैं तो आज वो दिल्ली भी नहीं है जो उनके टीवी पर आने पर पूरे देश की हो जाती थी. पत्रकारिता तो अब वैसी रही नहीं लेकिन विनोद दुआ ता उम्र वैसे ही रहे जैसे थे. बहुत सारे किस्से थे और बहुत सारे किस्से उन्हें लेकर थे.