News Agency : किसान मार्च में शेखुबाई के साथ हज़ारों किसान पैदल चल रहे थे. इन किसानों की मांग बस ये थी कि उन्हें उस ज़मीन का मालिकाना हक़ दिया जाए जिस पर वो एक लंबे समय से फ़सल उगा रहे हैं.इस मार्च में किसानों के लहूलुहान होते क़दमों की तस्वीरों ने सोशल मीडिया से लेकर राष्ट्रीय राजनीति को हिलाकर रख दिया था.किसानों के इस संघर्ष के एक साल बाद बीती सात जून को शेखुबाई को उनकी ज़मीन पर हक़ मिल गया है.बीते शुक्रवार स्थानीय लेखपाल ने उन्हें उनकी ज़मीन के काग़ज़ दिए गए.हाथों में ज़मीन के काग़ज़ आते ही शेखुबाई ने उस ज़मीन पर सिर रख दिया जिसके लिए उन्होंने ये संघर्ष किया था.बीबीसी मराठी ने बीती अप्रैल में शेखुबाई वागले की ख़बर को प्रकाशित किया था.उस दौरान लोकसभा चुनाव होने वाले थे. तब तक उनके क़दमों के जख़्म ठीक नहीं हुए थे और उन्हें उनकी ज़मीन पर हक़ भी नहीं मिला था.
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