पानी तकरीबन हर जगह उपलब्ध है और अक्सर हमें मुफ्त में मिल जाता है। इसलिए हम जल संकट की गंभीरता को नहीं समझ पाते। आज भारत में पानी की उपलब्धता 1,867 घन किलोमीटर है। आज की प्रौधोगिकी के आधार पर सिर्फ इतने ही पानी का उपयोग संभव है। लगभग 775 घन किलोमीटर पानी उपयोग से बाहर है। किस प्रकार इस पानी का उपयोग देश की आबादी के लिए मुमकिन हो, यह एक चुनौती है। देश की बढ़ती आबादी और औद्योगिकीकरण के आधार पर वर्ष 2024 तक पानी की अनुमानित आवश्यकता 1,092 घन किलोमीटर हो जाएगी, जो 2050 में बढ़कर 1,445 घन किलोमीटर पर पहुंच जाएगी। यानी पानी का असल संकट 2050 से पहले ही हमें महसूस होने लगेगा, क्योंकि तब उपलब्धता के मुकाबले उसकी मांग काफी बढ़ जाएगी। मांग और आपूर्ति के अंतर को पाटना इस समय देश की बड़ी चुनौती है। उद्योग और उर्जा जैसे क्षेत्रों में भी यह निहायत जरूरी है कि पानी की रिसाइकिल हो। देश को बारिश के रूप में प्रति वर्ष 4,000 घन किलोमीटर पानी मिलता है। देश की संग्रहण क्षमता सीमित है, इसलिए ज्यादातर पानी नदियों से होता हुआ समुद्र में चला जाता है। यानी इस समस्या का समाधान जल संग्रहण में छिपा हुआ है। चूंकि गंभीर जल संकट अब हमसे दूर नहीं है, इसलिए हमें अभी से कोशिश शुरू करनी होगी।
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