News Agency : सातवें और आखिरी चरण के चुनाव के तहत बिहार में 19 मई को 8 लोकसभा सीटों पर मतदान होने जा रहे हैं। इनमें से छह सीटों पर पुराने योद्धा ही चुनाव लड़ रहे हैं। एक तरफ वो उम्मीदवार है जो जीत के रिकॉर्ड को बनाए रखने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं तो दूसरी तरफ वो उम्मीदवार है जो 2014 की चुनावी हार का बदला लेने के लिए फिर से मैदान में उतरे हैं । इन 8 में से सिर्फ 2 ही सीटें- नालंदा और पटना साहिब ऐसी है जिस पर दोनों ही गठबंधनों से उम्मीदवार पहली बार आपस में टकरा रहे हैं।
सासाराम – सबसे पहले बात करते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय सीट वाराणसी से सटे बिहार के सासाराम लोकसभा क्षेत्र की। सासाराम अमेठी या रायबरेली की तरह मशहूर भले ही ना हो लेकिन नेहरू-इंदिरा के दौर में पूर्व उपप्रधानमंत्री जगजीवन राम के यहां से 8 बार सांसद चुने जाने के कारण इसे बिहार की वीआईपी सीटों में गिना जाता है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सासाराम से एक बार फिर कांग्रेस की मीरा कुमार और बीजेपी के छेदी पासवान एक दूसरे के आमने-सामने है। यूपीए सरकार के कार्यकाल में लोकसभा स्पीकर की जिम्मेदारी संभाल चुकी मीरा कुमार को 2014 में बीजेपी के छेदी पासवान से हार का सामना करना पड़ा था। मीरा कुमार वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के खिलाफ भी सर्वोच्च पद के लिए चुनाव लड़ चुकी हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में लगभग 63 हजार वोटों से हारने वाली मीरा कुमार को इस बार आरजेडी, हम, रालोसपा, वीआईपी जैसे विपक्षी दलों का समर्थन हासिल है वहीं जेडीयू के साथ आ जाने से उत्साहित छेदी पासवान फिर से जीत का दावा कर रहे हैं। 35 फीसदी के लगभग कुशवाहा मतदाता वाले सासाराम में यादव, राजपूत और दलित वोटर भी चुनावी जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
पाटलिपुत्र – बिहार की इस चर्चित सीट से राज्यसभा सांसद होने के बावजूद लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती लोकसभा का चुनाव लड़ रही हैं। मीसा भारती 2014 की चुनावी हार का बदला लेने के लिए ही इस बार चुनावी मैदान में उतरी हैं । 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर आरजेडी के ही पूर्व नेता रामकृपाल यादव ने मीसा भारती को चुनावी मैदान में लगभग 40 हजार वोटों से पटखनी दे दी थी । मीसा के लिए राहत की बात यह है कि पिछले चुनाव में 51 हजार से ज्यादा वोट हासिल करने वाले माले ने इस बार अपना उम्मीदवार नहीं उतार कर मीसा को समर्थन का ऐलान कर दिया है और महागठबंधन के साथी के तौर पर मीसा को कई दलों का समर्थन भी मिल रहा है। दूसरी तरफ बीजेपी जेडीयू के साथ आने से इस सीट पर जीत तय मान कर चल रही है। यहां यादव और भूमिहार वोटों की संख्या 5-5 लाख के लगभग है। हालांकि 2009 में लालू यादव को भी यहां से चुनावी हार का सामना करना पड़ा था।
बक्सर – लोकसभा सीट पर एक बार फिर केन्द्रीय मंत्री अश्विनी चौबे और आरजेडी के दिग्गज नेता जगदानंद सिंह आमने-सामने है। चौबे 2014 की तरह चुनावी जीत हासिल करना चाहते हैं वहीं आरजेडी के दिग्गज नेता और लालू यादव के करीबी जगदानंद सिंह 2014 की चुनावी हार का बदला लेने के लिए मैदान में उतरे हैं। इस सीट पर यादव और गैर यादव वोटरों के बीच ध्रुवीकरण की राजनीति हो रही है। यादव-मुस्लिम आरजेडी का वोट बैंक माना जाता है इसलिए एनडीए गैर यादव-मुस्लिम वोटरों की गोलबंदी करने में लगा हुआ है।
आरा – संसदीय क्षेत्र में मोदी लहर की वजह से 2014 में पहली बार कमल खिला था। केन्द्र सरकार में गृह सचिव की जिम्मेदारी संभाल चुके आर.के.सिंह ने बीजेपी के टिकट पर यहां से जीत हासिल की थी। बाद में उन्हे मोदी सरकार में मंत्री भी बनाया गया। बीजेपी ने एक बार फिर से उन्ही पर भरोसा करते हुए लोकसभा उम्मीदवार बनाया है। दूसरी तरफ आरजेडी के समर्थन से माले उम्मीदवार राजू यादव 2014 की हार का बदला लेने के लिए फिर से चुनावी मैदान में है। पाटलिपुत्र सीट पर मीसा भारती के लिए समर्थन हासिल करने के मकसद से आरजेडी ने अपने कोटे की इस सीट पर उम्मीदवार न उतार कर माले को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है। आरजेडी के इस कदम ने आरा की चुनावी लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है।
काराकाट – कभी कांग्रेस का गढ़ रही काराकाट लोकसभा सीट पर बाद में समाजवादियों का कब्जा हो गया। समय के साथ यह कब्जा इतना मजबूत होता गया कि पिछले कई चुनावों से यहां क्षेत्रीय दलों का ही दबदबा देखने को मिल रहा है। देश की दोनो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस और बीजेपी यहां सहयोगी दल की भूमिका में ही है। पिछले लोकसभा चुनाव में एनडीए के घटक दल के तौर पर रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा यहां से चुनाव जीते थे। इस बार कुशवाहा महागठबंधन के घटक दल के तौर पर बिहार की दो लोकसभा सीटों– काराकाट और उजियारपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं पिछली बार उपेंद्र कुशवाहा से चुनाव हारने वाले जेडीयू के महाबली सिंह इस बार बदला लेने के लिए फिर से मैदान में है। इस बार जेडीयू एनडीए में शामिल है। उपेंद्र कुशवाहा को कुशवाहा वोटरों के साथ-साथ यादव और मुस्लिम मतदाताओं से भी आस है। वहीं एनडीए के बैनर तले चुनाव लड़ रहे महाबली सिंह अति पिछड़ा वर्ग के अलावा सवर्ण मतदाताओं के समर्थन से जीत का दावा कर रहे हैं।
जहानाबाद – कभी कम्युनिस्टों की धरती रही जहानाबाद ने आगे चलकर समाजवादियों को भी फलने-फूलने का भरपूर मौका दिया। देश की दोनों राष्ट्रीय पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस पिछले कई चुनावों से इस सीट पर सहयोगी दल की भूमिका में ही है और मुख्य मुकाबले में हमेशा क्षेत्रीय दल ही रहे हैं। इस बार भी यहां से पिछली बार रालोसपा से चुनाव जीते अरूण कुमार रालोभसा (सेकुलर) के बैनर तले फिर से चुनावी मैदान में खड़े हैं। वहीं 2014 की हार का बदला लेने के लिए आरजेडी के सुरेन्द्र यादव भी फिर से मैदान में उतरे हैं। एनडीए उम्मीदवार के तौर पर जेडीयू से चंदेशवर चंद्रवंशी लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। 1977 के चुनाव को छोड़ दिया जाए तो इस सीट से भूमिहार या यादव उम्मीदवार ही चुनाव जीतते रहे हैं लेकिन इस बार नया प्रयोग करते हुए एनडीए ने अतिपिछड़ा समुदाय के चंद्रेश्वर प्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया है। साढ़े तीन लाख यादव मतदाता वाले इस संसदीय सीट पर तीन लाख के लगभग भूमिहार मतदाता, 5 लाख के लगभग पिछड़े और एक लाख के लगभग मुस्लिम वोटर भी जीत हार में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
नालंदा – संसदीय क्षेत्र को बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गढ़ माना जाता है। नालंदा विश्वविद्यालय की वजह से प्रसिद्ध इस सीट पर 2014 में भी मोदी लहर बेअसर ही रहा था। दिलचस्प तथ्य तो यह है कि प्राचीन काल से ही मशहूर नालंदा में पिछले कई चुनावों से क्षेत्रीय दलों का ही दबदबा रहा है। इस बार भी यहां मुख्य मुकाबला वर्तमान जेडीयू सांसद कौशलेन्द्र कुमार और मांझी की पार्टी हम के अशोक चन्द्रवंशी के बीच ही है। दोनों पहली बार एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। गया के रहने वाले अशोक चन्द्रवंशी की ससुराल नालंदा में है। पिछली बार कौशलेन्द्र कुमार ने जेडीयू उम्मीदवार के तौर पर लोजपा के सत्यनंद शर्मा को चुनाव हराया था। इस बार जेडीयू और लोजपा दोनों ही एनडीए में बीजेपी के साथ है। जार्ज फर्नाडीस जैसे दिग्गज नेता और खुद नीतीश कुमार यहां से सांसद रह चुके हैं। 24 फीसदी कुर्मी बाहुल्य इस सीट पर 15 फीसदी यादव, 10 फीसदी मुस्लिम और 15 फीसदी अतिपिछड़ी जाति के मतदाता है।
पटना साहिब – संसदीय क्षेत्र से वर्तमान सांसद और फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा इस बार बीजेपी की बजाय कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर यहां से चुनाव लड़ रहे हैं। बीजेपी ने इस बार अपने दिग्गज नेता और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को चुनावी मैदान में उतारा है। इस सीट पर सबकी निगाहें बनी हुई है हालांकि यह रविशंकर प्रसाद और शत्रुघ्न सिन्हा का पहला आपसी मुकाबला है। बिहारी बाबू के नाम से मशहूर शत्रुघ्न सिन्हा बीजेपी के टिकट पर दो बार यहां से चुनाव जीत चुके हैं और इस बार हैट्रिक लगाने के लिए उतरे हैं वहीं रविशंकर प्रसाद जाने माने वकील और बीजेपी के दिग्गज नेता है जिन्हे मोदी सरकार में कानून और आईटी जैसे अहम मंत्रालयों का जिम्मा मिला हुआ है। रविशंकर प्रसाद के पिता ठाकुर प्रसाद जनसंघ के संस्थापकों में से एक थे। मतदाताओं की बात करे तो यहां 5 लाख से ज्यादा कायस्थ ही यह तय करता है कि सांसद कौन बनेगा। कायस्थों के बाद यादव और राजपूत मतदाताओं की भी यहां अच्छी खासी संख्या है। सामान्य तौर पर कायस्थ मतदाता बीजेपी के पक्ष में ही वोट करते हैं लेकिन इस बार दोनों ही दिग्गज उम्मीदवारों के इसी जाति से होने के कारण वोट बंटने के कयास लगाए जा रहे हैं। हालांकि जेडीयू के साथ होने से रविशंकर को कुर्मी और अतिपिछड़े वोटों का लाभ होने जा रहा है।