News Agency : बिहार में पांचवे चरण के चुनाव में 6 मई को पांच लोकसभा सीटों पर मतदान होना है। पांचों सीटों पर मुकाबला एनडीए बनाम महागठबंधन तो है ही लेकिन इस दौर में क्षेत्रीय दलों का काफी कुछ दांव पर लगा है। सीतामढ़ी और हाजीपुर में तो सीधा मुकाबला क्षेत्रीय दलों के बीच ही है। बाकी बची 3 सीटों पर भी क्षेत्रीय दल सब कुछ बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। मधुबनी सीट पर शकील अहमद के निर्दलीय उतरने से लड़ाई त्रिकोणीय बन गई है। लेकिन इसके बावजूद गठबंधन की राजनीति में एक-एक सीट का महत्व इतना ज्यादा बढ़ गया है कि सीतामढ़ी में जहां बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को रैली करनी पड़ी वही मुजफ्फरपुर में रैली की कमान खुद पीएम मोदी ने संभाली.
सीतामढ़ी– सीता मैया की जन्मस्थली सीतामढ़ी में पिछली बार उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा को जीत हासिल हुई थी। कुशवाहा पिछली बार एनडीए में शामिल थे लेकिन इस बार वो महागठबंधन का हिस्सा है। महाठबंधन में यह सीट आरजेडी के खाते में चली गई है और लालू यादव की पार्टी की तरफ से यहां से अर्जुन राय चुनावी मैदान में है। एनडीए में सीतामढ़ी सीट जेडी-यू के खाते में है। नीतीश कुमार ने पहले यहां से वरुण कुमार को टिकट दिया लेकिन बाद में उन्होने उम्मीदवार बदल कर यहां से पूर्व विधायक सुनील कुमार उर्फ पिंटू को चुनावी मैदान में उतार दिया। वास्तव में जेडी-यू ने इस सीट से बीजेपी नेता को ही खड़ा कर दिया है। इस सीट पर 19 फीसदी यादव, 17 फीसदी मुस्लिम, 17 फीसदी सवर्ण, 15 फीसदी वैश्य मतदाता जीत-हार में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
हाजीपुर – राम विलास पासवान का गढ़ हाजीपुर संसदीय क्षेत्र इस बार भी एनडीए गठबंधन में लोजपा को ही मिला है। हालांकि इस बार एनडीए उम्मीदवार के तौर पर यहां से रामविलास पासवान की बजाय उनके छोटे भाई पशुपतिनाथ पारस चुनाव लड़ रहे हैं। उनका मुकाबला आरजेडी के शिव चंदर राम से है। पशुपति पारस के लिए अपने भाई की राजनीतिक विरासत को बचाए रखना एक बड़ी चुनौती है। जातीय समीकरण की बात करे तो इस सीट पर पासवान, यादव, राजपूत, भूमिहार, कुशवाहा के अलावा पिछड़े मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है या यूं कहा जाए कि यही मतदाता जीत-हार जय करते हैं। दलित वोटों के सहारे ही राम विलास पासवान यहां से लगातार जीतते रहे हैं।
मुजफ्फरपुर – संसदीय क्षेत्र के नाम पर सबसे ज्यादा बाहरियों को संसद भेजने का रिकॉर्ड दर्ज है। शाही लीची के लिए मशहूर उत्तर बिहार की आर्थिक राजधानी मुजफ्फरपुर से बीजेपी ने एक बार फिर से अपने वर्तमान सांसद अजय निषाद को ही चुनावी मैदान में उतारा है। जबकि महागठबंधन की तरफ से यह सीट वीआईपी यानी विकासशील इंसान पार्टी के खाते में चली गई है। इस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश साहनी जो अपने आपको सन ऑफ मल्लाह कहते हैं पहले खुद चुनावी मैदान में उतरे थे लेकिन बाद में उन्होने यहां से पार्टी के दूसरे नेता डॉ राजभूषण चौधरी निषाद को उम्मीदवार बनाने की घोषणा कर दी। मुजफ्फरपुर में निषाद वोटों की संख्या 3.5 लाख से ज्यादा है लेकिन दोनो ही मुख्य गठबंधनों ने निषाद उम्मीदवार को उतारकर लड़ाई को रोचक बना दिया है हालांकि यह सीट एनडीए का मजबूत गढ़ मानी जाती है। निषाद के अलावा भूमिहार, यादव, वैश्य, मुस्लिम और कुशवाहा मतदाताओं की अच्छी-खासी तादाद इस सीट पर है।
मधुबनी – मिथिला पेंटिंग के लिए मशहूर मधुबनी संसदीय क्षेत्र से बीजेपी ने इस बार अपने 5 बार के सांसद हुकुमदेव नारायण यादव की बजाय उनके बेटे अशोक यादव को चुनावी मैदान में उतारा है। महागठबंधन की तरफ से वीआईपी के बद्री कुमार पूर्वे जो कि आरजेडी के ही नेता रहे हैं, यहां से चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर विरोधी दलों के महागठबंधन में दरार पड़ गई है। टिकट न मिलने से नाराज कांग्रेस नेता शकील अहमद पार्टी से बगावत कर यहां से निर्दलीय चुनाव लड़ रहें हैं। शकील अहमद ने इस चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है। आरजेडी नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अली अशरफ फातमी भी टिकट बंटवारे से नाराज है और उन्होने अपना नाम वापस लेकर शकील अहमद को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है। इस सीट पर मुस्लिम, यादव और ब्राह्मण मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं लेकिन 15 फीसदी अतिपिछड़ी जातियों के मतदाता भी कई बार गेमचेंजर की भूमिका निभा जाते हैं।
सारण– राज्य को 6 मुख्यमंत्री देने वाले सारण क्षेत्र में इस बार चौका लगाने और खाता खोलने की लड़ाई है। एनडीए और महागठबंधन के बीच जोरदार मुकाबला देखने को मिल रहा है। एनडीए की तरफ से बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री और वर्तमान सांसद राजीव प्रताप रूडी चौका लगाने यानी चौथी बार जीत हासिल करने के लिए फिर से चुनावी मैदान में हैं। वहीं महागठबंधन की तरफ से आरजेडी उम्मीदवार चंद्रिका राय पहली बार लोकसभा पहुंच कर इस सीट को बीजेपी से छीनकर राबड़ी देवी की हार का बदला लेना चाहते हैं और सारण को लालू परिवार को गिफ्ट भी करना चाहते हैं। चंद्रिका राय लालू परिवार के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव के ससुर है। इन्ही को टिकट देने से नाराज तेजप्रताप ने अलग मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ने का भी ऐलान कर दिया था लेकिन परिवार के दबाव के कारण बाद में तेजप्रताप नरम पड़ गए। जेपी, राजेन्द्र बाबू और भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर के सारण में सबसे ज्यादा मुस्लिम और वैश्य वोटर है वहीं यादव और राजपूत मतदाता भी जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण के बल पर लालू यादव यहां से 4 बार चुनाव जीते हैं वहीं राजपूत-वैश्य वोटों के सहारे बीजेपी के राजीव प्रताप रुडी 3 बार सांसद चुने गए हैं।