गंगा नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित उत्तर बिहार के बेगूसराय को ‘बिहार के लेनिनग्राद’ व ‘लिटिल मॉस्को’ जैसे नामों से भी जाना जाता है और एक बार फिर से यह देश का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है, क्योंकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने आगामी लोकसभा चुनाव में अपने फायरब्रांड नेता कन्हैया कुमार को इस सीट से चुनाव मैदान में उतारा है. वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने शीर्ष भूमिहार नेता व केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को उनके खिलाफ टिकट दिया है.इन सब के बीच, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) व महागठबंधन के उम्मीदवार तनवीर हसन ज्यादा मीडिया का ध्यान आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन उनकी मौजूदगी ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है. हसन ने साथ ही भाजपा विरोधी वोटों को हासिल करने के कन्हैया के मौके पर भी पानी फेर दिया है. हसन के मैदान में उतरने से भाजपा विरोधी वोट राजद और भाकपा के बीच बंट सकते हैं. कन्हैया कुमार को सबसे ज्यादा इसी बात का नुकसान उठाना पड़ सकता है यानी बीजेपी विरोधी वोटों के विभाजन का.
एक विश्लेषण बताता है कि अगर मुकाबला दो के बीच होता तो कन्हैया के पास भाजपा को चौंका देने का एक अच्छा मौका था.युवा नेता के रूप में कन्हैया के उभरने से भाकपा को उसके प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ आशा जगी थी और पार्टी ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया था. जेएनयू घटना के बाद कन्हैया के साथ कथित ‘देशद्रोही’ का तमगा चिपका हुआ है और हो सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने गिरिराज सिंह को मैदान में उतारने का फैसला इसी कारण किया है, जबकि सिंह नवादा से फिर से चुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके थे.
गिरिराज सिंह नवादा से चुनाव लड़ने की जिद कर रहे थे, लेकिन राजग सहयोगियों के बीच सीट बंटवारे में यह सीट लोजपा के खेमे में जाने से उन्हें बेगूसराय से लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.2014 में भाजपा के भोला सिंह ने तनवीर हसन को 58 हजार से ज्यादा मतों से शिकस्त देकर सीट पर कब्जा जमाया था. भोला सिंह पूर्व भाकपा नेता थे, जो भाजपा में शामिल हो गए थे.34.31 फीसदी वोट हिस्सेदारी के साथ हसन को करीब 370,000 वोट मिले थे, जबकि भोला सिंह को 39.72 फीसदी वोट हिस्सेदारी के साथ 428,000 वोट हासिल हुए थे. भाकपा के राजेंद्र प्रसाद सिंह को 17.87 फीसदी वोटों के साथ करीब 200,000 वोट मिले थे.
अनुमान के मुताबिक, बेगूसराय के 19 लाख मतदाताओं में भूमिहार मतदाता करीब 19 फीसदी, 15 फीसदी मुस्लिम, 12 फीसदी यादव और सात फीसदी कुर्मी हैं. भूमिहार वोट यहां की मुख्य कड़ी हैं और इस बात का सबूत है कि पिछले 16 लोकसभा चुनावों में से कम से कम 11 में नौ बार भूमिहार सांसद बने हैं.2009 में अंतिम परिसीमन से पहले बेगूसराय जिले में दो संसदीय सीटें बेगूसराय और बलिया सीट थीं. तब उन दोनों को मिलाकर बेगूसराय कर दिया गया और बलिया सीट खत्म हो गई. बेगूसराय जिले की सात विधानसभा सीटों में से पांच बलिया में आती हैं.
गिरिराज और कन्हैया दोनों ही भूमिहार हैं और अब देखना यह होगा कि कौन अपनी जाति से अधिकतम समर्थन हासिल कर पाता है.गिरिराज सिंह की भूमिहार, सवर्णो, कुर्मी और अति पिछड़ा वर्ग पर अच्छी पकड़ है, जबकि राजद मुस्लिम, यादव और पिछड़ी जाति के वोटरों को अपने खेमें में किए हुए है.
भाकपा को आशा थी कि राजद कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगा, जिससे कन्हैया की जीत हो सकती थी. लेकिन पार्टी ने हसन को उम्मीदवार के रूप में टिकट दे दिया. वर्तमान हालात में कन्हैया को असंभव कार्य करना होगा. अगर वह भूमिहार वोट में सेंध लगाने में कामयाब रहते हैं तो इसका सीधा फायदा हसन को होगा.लेकिन राजद के लिए यह इतना आसान नहीं होगा. बेगूसराय में उद्योगों की भारी मौजूदगी व ट्रेड यूनियन आंदोलन ने इलाके में राजनीतिक माहौल गर्मा दिया है और भाकपा की यहां पकड़ अच्छी है.कन्हैया बेगूसराय में बीते दो महीने से आक्रामक प्रचार कर रहे हैं और प्रत्येक जाति व समुदाय से समर्थन मांग रहे हैं. बेगूसराय में लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में मतदान होना है, जो कि 29 अप्रैल को होगा. नतीजों की घोषणा 23 मई को की जाएगी.