राफेल लड़ाकू विमान डील की जांच को लेकर एक ओर जहां सुप्रीम कोर्ट में बहस जारी है, वहीं बुधवार को अंग्रेजी अखबार ‘द हिंदू’ में छपी एक रिपोर्ट से सौदे में एक नया खुलासा हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी सरकार ने फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट एविएशन को कुछ ऐसी छूट दी है, जो यूपीए सरकार में प्रस्तावित सौदे में नहीं थी। इस छूट के तहत राफेल निर्माता कंपनी दसॉल्ट एविएशन को सौदे के लिए बैंक गारंटी नहीं देने की छूट दी गई, जिसके बाद इस सौदे में कोई बैंक गांरटी नहीं दी गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंक गारंटी नहीं लेने के कारण मोदी सरकार की राफेल विमानों की डील यूपीए सरकार में शुरू हुई डील की अनुमानित कीमत से करीब 2000 करोड़ रुपए ज्यादा महंगी है।
द हिंदू ने जुलाई 2016 में सरकार की निगोशिएटिंग टीम (सौदा करने वाली टीम) की फाइनल रिपोर्ट का हवाला दिया है। यह रिपोर्ट फ्रांस और भारत सरकार के बीच हुए 36 राफेल विमानों की खरीद के समझौते के दो महीने पहले दाखिल की गई थी। अखबार के अनुसार मोल-भाव करने वाली भारतीय टीम ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि एक समानांतर सौदेबाजी से भारत का पक्ष कमजोर हुआ। रिपोर्ट के अनुसार भारतीय टीम ने राफेल डील की बैंक गारंटी 574 मिलियन यूरो (करीब 45,75,39,41,220 रुपये) आंकी थी और इस गारंटी के नहीं मिलने से मोदी सरकार का 36 राफेल विमानों का सौदा यूपीए सरकार में शुरू हुई सौदेबाजी की अनुमानित कीमत से 246.11 मिलियन यूरो महंगा हो गया।
गौरतलब है कि ‘द हिंदू’ ने दावा किय़ा है कि उसने निगोशिएटिंग टीम की फाइनल रिपोर्ट देखी है। इसी के आधार पर वरिष्ठ पत्रकार एन राम ने अपनी खबर में कहा है कि फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट एविएशन जब भारत से 126 विमानों के सौदे की बात कर रही थी तो वह बैंक गारंटी देने को तैयार थी, लेकिन मोदी सरकार के साथ हुए सौदे में उसने बैंक गारंटी देने से इनकार कर दिया। इसके साथ ही फ्रांस ने इस सौदे में कोई संप्रभु गारंटी (सोवरीन गारंटी) देने से भी इनकार कर दिया, जबकि दिसंबर 2015 में कानून मंत्रालय ने इस गारंटी को अहम बताया था। सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी ने बैंक गारंटी की शर्त को खत्म कर दिया था। कमेटी ने सिर्फ ‘लेटर ऑफ कम्फर्ट’ को मान लिया, जिसकी कोई कानूनी वैधता नहीं होती।