लोकसभा चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की पूर्व सरकार के दौरान अपर निजी सचिव की भर्ती मामले की सीबीआई जांच करेगी. सीबीआई ने प्रारम्भिक जांच (पीई) दर्ज करके मामले में छानबीन शुरू कर दी है. अपर निजी सचिवों की भर्ती में हुई गड़बड़ियों की शिकायत के बाद जांच एजेंसी ने योगी आदित्यनाथ सरकार से छानबीन की इजाजत मांगी थी. सरकार ने जांच की मंजूर दे दी. सीबीआई ने 19 जून 2018 को जांच के लिए मुख्य सचिव को पत्र लिखा था.
आरोप के मुताबिक इन भर्तियों में न्यूनतम योग्यता न होने के बावजूद 250 लोगों को भर्ती कर लिया गया. भर्ती किए गए ज्यादातर लोग अफसरों के करीबी रिश्तेदार थे. नई दिल्ली स्थित सीबीआई मुख्यालय ने गुरुवार को इस मामले की प्रारंभिक जांच (पीई) दर्ज कर ली. असल में, समाजवादी पार्टी (सपा) सरकार में यूपीपीएससी द्वारा की गई भर्तियों की जांच कर रही सीबीआई को इन भर्तियों में भी बड़े पैमाने पर गड़बडि़यां की शिकायत मिली थी. इसके बाद सीबीआई ने राज्य के मुख्य सचिव को पत्र लिख इस मामले की जांच की अनुमित के लिए अनुरोध किया था. राज्य सरकार ने छह महीने पहले ही इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय से की थी.
यूपी में मायावती की सरकार में 2010 में अपर निजी सचिव की भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई थी. वहीं अखिलेश सरकार में तीन चरणों में इसकी परीक्षा कराई गई. रिजल्ट 3 अक्टूबर 2017 को जारी हुआ और कई लोगों को ज्वॉइन भी कराया गया. इस बीच, सपा सरकार के पांच सालों के दौरान उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) की भर्तियों की जांच सीबीआई से कराने की योगी सरकार ने सिफारिश कर दी और सीबीआई ने केस दर्ज कर लिया. जांच के दौरान सीबीआई को शिकायत मिली कि बसपा सरकार में शुरू हुई अपर निजी सचिव की भर्ती प्रक्रिया में भी गड़बड़ी की गई थी.
यूपीपीएससी के कुछ अधिकारियों ने न्यूनतम अर्हता न पूरी होने के बावजूद तमाम अधिकारियों के रिश्तेदारों को परीक्षा में हेराफेरी कर पास कराया. मुख्यमंत्री कार्यालय में पूर्व में तैनात रहे एक निजी सचिव ने अपने रिश्तेदारों को नौकरी दिलवा दी तो सचिवालय में तैनात एक अधिकारी ने अपने पूरे कुनबे को ही भर्ती करा लिया. इसके बाद सीबीआई ने इस मामले की भी जांच करने का फैसला लिया और राज्य सरकार को सूचित करते हुए इसकी प्रक्रिया पूरी करने को कहा.