पंकज कुमार श्रीवास्तव
5दिसम्बर,1974 को जब रवीश कुमार का जन्म ग्राम-जितवारपुर, मोतिहारी,जिला-पूर्वी चंपारण(बिहार) में हुआ होगा,तब मैं ए एन कालेज का विद्यार्थी था।तब बिहार आन्दोलन,जेपी आंदोलन या संपूर्ण क्रांति आंदोलन अपने पूरे शबाब पर था,और उसकी सबसे तेज तपिश पटना में महसूस की जा रही थी।पत्रकारिता जगत के तमाम नामचीन पत्रकार-धर्मयुग के धर्मवीर भारती, साप्ताहिक हिन्दुस्तान के मुरली मनोहर जोशी,अज्ञेय, रघुवीर सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी,कादम्बिनी में राजेन्द्र अवस्थी, लक्ष्मी नारायण लाल, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,अपनी बौद्धिकता और कलम के तेवर से इस आन्दोलन को अपना-अपना समर्थन दे रहे थे।महादेवी वर्मा,अमृतलाल नागर,अमृत राय और हरिवंशराय बच्चन की कलम थकी नहीं थी।यह समझना मुश्किल था कि बाबा नागार्जुन और फणीश्वरनाथ रेणु सरीखे लोग साहित्यकार पत्रकार हैं या आन्दोलनकारी।अंग्रेजी में इंडियन एक्सप्रेस में एस.मुलगांवकर,अजीत भट्टाचार्य,कुलदीप नायर,स्टेट्समैन के एस.सहाय आदि को मैं पढ़ा करता था।हरिवंश,उदयन शर्मा,सुरेन्द्र प्रताप सिंह,एम जे अकबर आदि उभरते हुए पत्रकार थे।1983में जनसत्ता के शुरू होने पर प्रभाष जोशी भी उसी श्रेणी के श्रद्धेय पत्रकार रहे।1974-77 के दौर में वह इंडियन एक्सप्रेस के लिए क्रिकेट की रिपोर्टिंग करते थे।ये सभी महारथी प्रिंट मीडिया से जुड़े थे।
1990के दशक के बाद समाचार-विचार पढ़ने का नहीं देखने की विषय वस्तु हो गई।इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जमाने में वैसी ही श्रद्धा और विश्वास रवीश कुमार ने अर्जित की है।अपने प्राइम टाइम में आम मीडिया के नजरों से ओझल मुद्दों पर रवीश कुमार जितनी इन डेप्थ प्रस्तुति देते हैं,वह काबिल-ए-गौर है।2दिसंबर,2019 को डालटनगंज से दिल्ली के लिए निकला,तो इस संकल्पके साथ कि दिल्ली प्रवास के दौरान रवीश कुमार से मिलकर ही लौटूंगा।रवीश को भी व्हाट्स ऐप इस आशय का संदेश दिया और उन्होंने 8दिसंबर,2019को 3बजे का समय निर्धारित किया।निर्धारित समय पर मैं रवीश के स्टूडियो/कार्यालय में सपत्नीक उपस्थित हो जाता हूं।
मुझे रवीश कुमार से इन तथ्यों पर बात नहीं करनी थी कि उनका जन्म बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के मोतीहारी में हुआ। हालांकि,उन्होंने लोयोला हाई स्कूल, पटना, से उनकी हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के तथ्य से आत्मीयता का एक एहसास तो रहा ही है।
दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने भारतीय जन संचार संस्थान से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त किया।मुझे यह सूचना भी रही है कि अपने छात्र जीवन में वह आईएएस बनना चाहते थे।1996में रवीश एनडीटीवी से बतौर रिपोर्टर जुड़े वर्तमान में एनडीटीवी इंडिया के मैनेजिंग एडिटर हैं.गंभीर, प्रभावशाली एवं मुद्दों पर अच्छी पकड़ रखने वाले प्रस्तोता(एंकर) हैं.
मीडिया का ऐसा वातावरण जिसमें सरकार का हस्तक्षेप है,जो कट्टर राष्ट्रवाद के हिमायतियों के कारण विषाक्त है,जिसमें ट्रोल एवं ‘फर्जी खबर’ फैलाने वाले लोग हैं और जहां बाजार की रेटिंग की प्रतियोगिता के चलते ‘मीडिया हस्तियों’ को कीमत चुकानी पड़ रही है, जहां खबरों को सनसनीखेज बनाया जा रहा है, ऐसी स्थिति में, रवीश इस बात पर जोर देने में मुखर रहे हैं कि गंभीर, संतुलित और तथ्य आधारित रिपोर्टिंग के पेशेवर मूल्यों को जिंदा रखना होगा.
रवीश कुमार ऐसे छठे पत्रकार हैं, जिन्हें रैमन मैग्सेसे सम्मान मिला है.इससे पहले अमिताभ चौधरी (1961),बीजी वर्गीज(1975),अरुण शौरी(1982), आरके लक्ष्मण (1984)और पी.साईंनाथ(2007) को यह पुरस्कार मिल चुका है.इस पुरस्कारसे सम्मानित लोगों में जयप्रकाश नारायण,अण्णा हजारे,महाश्वेता देवी,सत्यजीत रे,अरविंद केजरीवाल और किरन बेदी भी शामिल हैं.
रवीश ने कुछ पुस्तकें लिखी हैं:इश्क में शहर होना,
देखते रहिये,रवीशपन्ती।लेकिन उनके दिल के करीब और उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के अनुरूप उनकी पुस्तक है-बोलना ही है:लोकतंत्र,संस्कृति और राष्ट्र के बारे में।अंग्रेजी में यह पुस्तक-‘द फ्री वॉइस:ऑन डेमोक्रेसी,कल्चर एंड द नेशन’ नाम से आई है।कन्नड़, मराठी और नेेपाली भाषा में भी इसका अनुवाद हो चुका है।रैमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त करने के अवसर पर मनीला में दिया गया उनका भाषण भी संकलित हैं।
मुलाकात के दौरान गोदी मीडिया द्वारा फैलाए जा रहे फर्जी सूचनाओं पर वह चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं-एक सभ्य,सूसंस्कृत समाज सूचनाओं से मजबूत बनता है.फर्जी सूचनाएं राष्ट्र और समाज के लिए बहुत बड़ा संकट हैं।ये समाज की जिज्ञासाओं की निर्मम हत्या करती हैं।
वह कहते हैं-आज सत्ता समाज में नागरिक को भीड़ बनाने में जुटी है.जब किसी समाज में रहने वाले लोगों के बीच विश्वास कमज़ोर होने लगे या सुनियोजित तरीके से स्टेट के जरिए कमज़ोर किया जाने लगे तो सबसे पहले जो चीज़ खतरे में आती है वो है-‘नागरिकता’.जीवंत, जाग्रत लोकतंत्र में सभ्य, सुसंस्कृत,सजग,सचेत नागरिक की अपनी प्रासंगिकता है,जो सवाल करने से डरता न हो,अपने आस पास होने वाली घटनाएं उसे बैचेन करती हों और एक नागरिक के तौर पर अपनी भूमिका निभाने को प्रेरित करती हो.जब एक भीड़ तैयार होकर किसी अख़लाक, तबरेज़ अंसारी या सुबोध कुमार सिंह को मार देती है तब हम क्यों नहीं बोलते.हम फर्ज़ी सूचनाओं से एक रोबो-पब्लिक में तबदील होने लगे हैं,जो विवेकशून्य है.
पिछले कुछ सालों में एक सूचनाविहीन समाज के निर्माण की कोशिश हो रही है जो अपने साथ कई गंभीर खतरे लिए हुए है.देश सही सूचनाओं से बनता है.फेक न्यूज,प्रौपगेंडा और झूठे इतिहास से हमेशा भीड़ बनती है.’
भाजपा के लव जेहाद अभियान पर टिप्पणी करते हुए रवीश कहते हैं-‘इश्क हमें इंसान बनाता है. जिम्मेदार बनाता है और पहले से थोड़ा-थोड़ा अच्छा बनाता है.जो समाज प्रेम के खिलाफ है वो एक बंद और कुंद समाज है.जहां बेहतरीन से बेहतरीन संभावनाएं दम तोड़ देती है.प्रेम की वकालत करने वाले रवीश ने नयना दासगुप्ता से प्रेम-विवाह किया है।
वर्तमान मीडिया पर टिप्पणी करते हुए रवीश कहते हैं-‘मुख्यधारा की मीडिया एक सूचनाविहीन समाज बना रही है,उसके सिलेबस में जनसरोकार के मुद्दे है ही नहीं.बस, वो दिन रात लोगों के मन में डर का माहौल बनाने में लगी है.ये डर सांप्रदायिकता के सहारे बनाया जा रहा है.हर रात मुख्यधारा की मीडिया लोगों को गलत सूचनाओं से कमज़ोर कर रही है.उसकी लोक होने की संभावनाओं को कुचल रही है.ये सब एक प्रायोजित तरीके से किया जा रहा है,जिसे स्टेट का सहारा मिला हुआ है.अब पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ नहीं रह गया है,बल्कि वो राजनीतिक दल का पहला खंभा हो चला है.मुख्यधारा की मीडिया के कमज़ोर होते चले जाने पर एक नए तरह की वैकल्पिक मीडिया ने जन्म लेना शुरू कर दिया है.जो काम मीडिया को करना चाहिए था,वो अब नागरिक कर रहे हैं जिसे नागरिक पत्रकारिता कहते हैं.
हम इन खतरों के प्रति सजग रहें और लोकतंत्र में एक बेहतर नागरिक बनने की हमारी लड़ाई जारी रह सके शायद यही रवीश का मूल उद्देश्य है.
लगभग आधा घंटा समय रवीश के साथ बिताकर मैं सपत्नीक विदा लेता हूं,तो एक सजग,सचेत नागरिक और जिम्मेदार पत्रकार के रूप में उनके दृष्टिकोण से अभिभूत महसूस कर रहा था।
2016 में “द इंडियन एक्सप्रेस” ने अपनी ‘१०० सबसे प्रभावशाली भारतीयों’ की सूची में उन्हें भी शामिल किया था।
पुरस्कार
हिन्दी पत्रिका’रंग’ में गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार 2010 के लिये राष्ट्रपति के हाथों (2014 में प्रदान किया गया).
पत्रिका रंग में रामनाथ गोयंका पुरस्कार-2013
इंडियन टेलिविजन पुरस्कार-2014-उत्तम हिन्दी एंकर
कुलदीप नायर पुरस्कार-2017-पत्रकारिता में योगदान
रेमन मैगसेसे पुरस्कार-अगस्त,2019-पत्रकारिता क्षेत्र में यह कहकर उनको सम्मानित किया गया कि उन्होंने गरीबों की आवाज सार्वजनिक मंच पर उठाई।