देवबंद से गठबंधन की हुंकार के बाद आज कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी व कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी पश्चिम उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के लिए उतर रहे हैं. दोनों नेता आज उसी सहारनपुर लोकसभा क्षेत्र से अपने प्रचार का आगाज कर रहे हैं, जहां रविवार को सपा-बसपा और आरएलडी के महागठबंधन की पहली साझा रैली हुई और उसमें बसपा सुप्रीमो मायावती ने खुलेआम सहारनपुर के मुस्लिमों से वोट न बांटने की अपील करते हुए कांग्रेस को खुली चुनौती दी. ऐसे में अब तक गठबंधन के प्रति नरम रवैया अपनाने वाले राहुल व प्रियंका जब सहारनपुर की धरती पर पहुंचेंगे तो किस अंदाज में मायावती के मुस्लिम कार्ड का जवाब देंगे, ये देखना भी दिलचस्प होगा.
पश्चिम यूपी की जिन आठ सीटों पर पहले चरण के तहत 11 अप्रैल को मतदान हो रहा है, उनमें कांग्रेस को सहारनपुर में अपनी स्थिति सबसे मजबूत नजर आ रही है. इसकी वजह 2014 के चुनाव नतीजे हैं, जब मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस के प्रत्याशी इमरान मसूद बीजेपी के विजयी प्रत्याशी राघव लखनपाल से महज 65 हजार वोट पीछे रह गए थे. दरअसल, सहारनपुर लोकसभा क्षेत्र में करीब 38 फीसदी मुस्लिम हैं, जिन पर कांग्रेस की एक बार फिर नजर है और बीएसपी को मुस्लिम वोट बैंक के बंटने का खतरा सता रहा है, क्योंकि हाजी फजलुर्रहमान के रूप में गठबंधन ने भी मुस्लिम प्रत्याशी को मैदान में उतारा है.
ऐसी ही स्थिति बिजनौर लोकसभा सीट पर दिखाई दे रही है, जहां कांग्रेस ने यूपी की सियासत के बड़ा चेहरा माने जाने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी को उतारा है. बिजनौर लोकसभा सीट पर भी करीब 38 फीसदी मुस्लिम हैं और यहां से बसपा ने मलूक नागर को प्रत्याशी बनाया है. यानी मुस्लिम प्रत्याशी के रूप में एकलौते नसीमुद्दीन सिद्दीकी चुनौती दे रहे हैं. यही वजह है कि कांग्रेस को इस सीट पर मुस्लिम वोटरों का समर्थन मिलने की उम्मीद है और राहुल व प्रियंका गांधी दोनों बिजनौर में भी जनसभा करने जा रहे हैं.
दोनों नेताओं की आज (सोमवार) एक और जनसभा पहले चरण की कैराना लोकसभा सीट पर भी होनी है. जाट और मुस्लिम बाहुल्य कैराना सीट से कांग्रेस ने पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक को उतारकर दोनों समुदाय के मतों को साधने की रणनीति अपनाई है.
हालांकि, कांग्रेस की यह रणनीति कितनी कारगर साबित हो पाती है, यह भी बड़ा सवाल है. क्योंकि 2014 के चुनाव में पहले चरण की इन सभी 8 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी. जबकि अब सपा-बसपा और आरएलडी के एक साथ जाने से समीकरण एकदम बदल गए हैं. ऐसे में मुसलमान मतदाताओं के कांग्रेस को समर्थन मिलने से बीजेपी के जीतने की जो आशंका देवबंद की रैली से मायावती ने जताई है, क्या वैसा कोई समर्थन हासिल करने में राहुल व प्रियंका सफल हो पाएंगे, इसका जवाब मिलना अभी बाकी है.
बता दें कि सपा-बसपा के खिलाफ राहुल गांधी अब तक सॉफ्ट रुख अपनाते हुए ये कहते रहे हैं कि उनकी लड़ाई बीजेपी से है और गठबंधन की लड़ाई भी बीजेपी के खिलाफ ही है. ऐसे में अब जबकि मायावती के खुले तौर पर कांग्रेस को घेरना शुरू कर दिया है तो क्या राहुल की रणनीति में कोई बदलाव देखने को मिलेगा, ये भी बड़ा सवाल है.