जम्मू से श्रीनगर जा रहे थे लालूचक भट्ठा रोड निवासी और सीआरपीएफ 45वीं बटालियन के कांस्टेबल रतन कुमार ठाकुर पुलवामा के पास आतंकी हमले की चपेट में आ गये. लालूचक में किराये के मकान पर रह रहे कांस्टेबल रतन के पिता रामनिरंजन ठाकुर ने बताया कि लोग घर पर आकर बेटे के शहीद होने की सूचना दे रहे हैं. यह कहते ही पिता की आंखों से आंसू बहने लगे. उन्होंने दहाड़ मारकर रोना शुरू कर दिया. फिर अपने को संभालते हुए गुस्से में कहा कि हम अपने दूसरे बेटे को भी पाकिस्तान से लड़ने भेजेंगे. अगर जरूरत पड़ी, तो मैं भी जाउंगा. पाकिस्तान से बेटे की मौत का बदला जरूर लेंगे. भारतीय फौज पाकिस्तान में ऐसी तबाही मचाये कि वहां एक मवेशी भी ना बचे.
पिता ने रोते-बिलखते हुए कहा कि आतंकी घटना के बाद श्रीनगर से 4.30 बजे सीआरपीएफ सीओ और कंपनी कमांडर ने दो बार फोन किया और बेटे का नंबर मांगा, तब मेरे मन में शंकाएं घिरने लगी. जब मैंने टीवी पर न्यूज देखा, तब पुलवामा में हादसे की जानकारी मिली. दोबारा फोन आने पर मैंने बेटे की सूचना ली. अधिकारियों ने बताया कि अब तक कंफर्म नहीं हो रहे हैं, कुछ सूचना होगी, तो जरूर बता देंगे. उसके बाद से अब तक अधिकारियों का मोबाइल फोन ऑफ है. कंपनी ने मुझे अंधेरे में रखा. मेरे बेटे के साथ क्या घटना हुई है, यह जरूर बताना चाहिए.
कहा, फेरी और मजदूरी कर बेटे-बेटियों को पढ़ाया
सन्हौला के अमंडडा थानाक्षेत्र के रतनपुर गांव के निवासी पिता राम निरंजन ने बताया कि 2011 में रतन की नौकरी सीआरपीएफ में लग गयी. 2014 में उसकी शादी बौंसी के दलिया टोला में राजनंदिनी से हुई. कृष्णा के जन्म के बाद 2018 में इसके पढ़ाई के लिए हम भागलपुर आ गये. राजनंदिनी भी पार्ट टू की छात्रा है. मेरा छोटा बेटा मिलन कुमार ठाकुर भी यहां रहकर बच्चे का पालन पोषण और अपनी पढ़ाई कर रहा है. बड़ी बेटी सोनी भी बिहार पुलिस में ज्वाइन कर गयी. जब जिंदगी आसान लग रही थी. तब भगवान ने मेरे ऊपर दु:ख का पहाड़ गिरा दिया. मां तारा और बाबा बासुकीनाथ से यही प्रार्थना है कि रतन की खबर झूठी निकले. शहीद के भाई मिलन ने बताया कि रतन ने कहलगांव के एसएसवी कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस में ऑनर्स किया. वह नौकरी ज्वाइन करने के लिए कड़ी मेहनत करता था.
मां की मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारी उठा ली
पिता ने बताया कि रतन की मां भी हमें छोड़कर चली गयी. मां की जान बचाने के लिए रतन ने पैसे को पानी की तरह बहाया. बेहतर इलाज के लिए उसे वेल्लोर भी ले गया. लेकिन, रतन की मां नहीं बच पायी. इस घटना के बाद रतन ने पूरे परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधे पर उठा ली. लगने लगा कि अब जिंदगी अच्छे से कटेगी. लेकिन, इस हादसे से सारे शौक अधूरे रह गये.