प्रियंका-राहुल के बदले अंदाज़ से क्या बदलेगी कांग्रेस की तक़दीर

प्रियंका गांधी में उनकी दादी इंदिरा गांधी का अक्स दिखता है. वो उसी तरह से काम भी करती हैं, बोलती भी वैसे ही हैं और लोगों को उनसे उम्मीद भी है. इसलिए उत्तर प्रदेश का कांग्रेसी उत्साह से लबरेज़ है.”

लखनऊ मेट्रो पुल के नीचे क़रीब दो घंटे से राहुल-प्रियंका के रोड शो के इंतज़ार में खड़े 65 वर्षीय रिटायर्ड फ़ौजी दिनेश नारायण तिवारी फ़तेहपुर से लखनऊ सिर्फ़ प्रियंका गांधी को देखने और उनका भाषण सुनने आए थे.

दिनेश नारायण तिवारी ने तीन दशक से यूपी में कांग्रेस के कथित दुर्दिन के लिए गठबंधन को ही ज़िम्मेदार बताया, “गठबंधन में रहकर अब तक कांग्रेस ने अपना बड़ा नुक़सान किया और पार्टी के कार्यकर्ता पार्टी से ही दूर हो गए. इस बार प्रियंका गांधी इसलिए जीत दिलाएंगी क्योंकि कांग्रेस पार्टी अकेले चुनाव लड़ रही है और अपने ढंग से चुनाव लड़ रही है.”

लखनऊ एअरपोर्ट से कांग्रेस मुख्यालय तक की 15 किमी की दूरी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने ऐसे ही जोशीले कार्यकर्ताओं और नेताओं के नारों और उत्साह के बीच पूरी की.

इस दौरान राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर, ज्योतिरादित्य सिंधिया, संजय सिंह, अनु टंडन जैसे नेता थे तो नीचे बड़ी संख्या में अपने नेताओं का जोश और उत्साह बढ़ानेवाले कार्यकर्ता.

वहां मौजूद हर व्यक्ति की कोशिश यही थी कि प्रियंका गांधी उन्हें कम से कम एक बार देख लें और यदि हाथ मिला लें तो फिर पूछने ही क्या.रास्ते में राहुल गांधी दो मिनट के लिए भाषण देने के लिए रुके, लेकिन प्रियंका गांधी यहां भी बस मूकदर्शक ही बनी रहीं.

हालांकि पार्टी नेताओं को ये उम्मीद थी कि प्रियंका गांधी ने यदि अपने आने की शुरुआत एक ऑडियो मेसेज के साथ की है, तो वो उनके सामने कुछ न कुछ बोलेंगी ज़रूर, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

हुसैनगंज चौराहे के पास राहुल गांधी ने बेहद संक्षिप्त भाषण दिया लेकिन उनके भाषण में आक्रामकता कूट-कूटकर भरी थी और तेवर बेहद तल्ख़ थे.

उन्होंने भाषण की शुरुआत और उसका अंत उसी नारे से किया जो उनके कार्यकर्ता बड़ी देर से दोहरा रहे थे, यानी ‘चौकीदार ही चोर है.’हालांकि राहुल गांधी का ये अंदाज कुछ लोगों को हैरान करने वाला भी लगा.

प्रियंका गांधी के रोड शो से ठीक पहले मीडिया जगत में ये चर्चा भी ज़ोरों पर रही कि आगामी लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन कांग्रेस पार्टी को 15 सीटें देने को तैयार है.

हालांकि इसकी किसी भी स्रोत से पुष्टि नहीं हो पाई लेकिन जानकारों का कहना है कि इसमें पर्याप्त सच्चाई है.

इस बारे में लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान कहते हैं, “देखिए, यही सब ख़ौफ़ है. प्रियंका के आने से सपा और बसपा दोनों की पोल खुलने वाली है. ये उसी का परिणाम है कि अब कांग्रेस को बुलाकर सीटें देने की तैयारी कर रहे हैं. दूसरे, बीजेपी भी हैरान है कि कहीं कांग्रेस गठबंधन के अलावा उसके वोट बैंक में भी सेंध न लगा दे.”

शरद प्रधान का ये भी कहना है कि कांग्रेस अब गठबंधन में शामिल नहीं होगी और यह उसने 2017 का विधानसभा चुनाव बुरी तरह से हारने के बाद ही तय कर लिया था.

अकेले लड़ने की स्थिति में उसे गठबंधन के साथ लड़ने की तुलना में सीटें भी ज़्यादा मिलेंगी और उसके संगठन का ज़मीनी आधार भी एक बार फिर तैयार हो जाएगा.

राहुल गांधी ने रोड शो के अलावा पार्टी दफ़्तर पहुंचने के बाद भी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया. उनकी बातों में किसान, राफ़ेल इत्यादि का ही ज़्यादातर ज़िक्र था. वहीं प्रियंका गांधी की आवाज़ सुनने को लोग बेताब दिखे.

जानकारों के मुताबिक़, यूं तो पूरा उत्तर प्रदेश ही पिछले तीन दशक से कांग्रेस के हाथ से बाहर रहा है लेकिन उसमें भी पूर्वांचल में उसकी स्थिति कहीं ज़्यादा सोचनीय है.

लोरैटो चौराहे पर रोड शो के स्वागत के लिए खड़ी क़ानून की एक छात्रा वैदेही राय से हमने जानना चाहा कि उनकी संसदीय सीट पर कांग्रेस पिछला चुनाव कब जीती थी, तो वैदेही के पास इसका जवाब नहीं था.

लेकिन इस सवाल पर वैदेही की वृद्ध दादी भड़क गईं और बोल पड़ीं, “आप लोगों को पड़रौना, झांसी, बलिया कुशीनगर, ये सब सीटें नहीं दिखतीं. यहां अक्सर हमारे जीतते रहे हैं. 2014 से ठीक पहले हमने 22 सीटें जीती थीं. ठीक उसी तरह आज की स्थिति है.”

जहां तक पूर्वांचल का सवाल है, तो प्रियंका गांधी के सामने गांधी-नेहरू की विरासत के अलावा पंडित कमलापति त्रिपाठी, श्रीपति मिश्र, वीरबहादुर सिंह जैसे पुराने कांग्रेसी नेताओं की विरासत को संजोने के अलावा उन्हें एक बार फिर अपने पक्ष में करने की चुनौती होगी.

गोरखपुर के रहने वाले गौरव दुबे कहते हैं, “प्रियंका गांधी के आने से सपा-बसपा गठबंधन में थोड़ी हलचल ज़रूर है लेकिन उन्हें इससे डरने की ज़रूरत नहीं है. हां, बीजेपी की सीटें कुछ ज़रूर बढ़ जाएंगी..”

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास इस समय लोकसभा की मात्र दो सीटें हैं जिनमें से एक अमेठी राहुल गांधी के पास है और दूसरी रायबरेली सोनिया गांधी के पास.

इसके अलावा विधानसभा में महज़ सात सीटें आई हैं. 2017 में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था और बताया जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी की बुरी हार के लिए पार्टी की ये रणनीति भी काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार थी.

मैं समझता हूं कि चोरी अब एक ‘सम्मानित पेशा’ बन चुका है। इस बारे में हमें ही नहीं, चोरों को भी अपने पुराने खयालातों को बदलना चाहिए और इसे सम्मानित पेशे का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष करना चाहिए। चोरों को अगर चोर कहा जाए तो इसे अपना निरादर नहीं, सम्मान मानना चाहिए।इसे विनम्रतापूर्वक, मुस्कुराकर सम्मानपत्र या अभिनंदन ग्रंथ की तरह ग्रहण करना चाहिए और इसके लिए इस सम्मान से नवाजने वालों का आभार मानना चाहिए।

इस विशेषण से संबोधित करने वालों से न तो चिढ़ना चाहिए, न उनके विरुद्ध विषवमन करना चाहिए, न दूसरों को चोर बताकर यह सिद्ध करने की कोशिश करनी चाहिए कि वह नहीं, उनके विरोधी चोर हैंं। ऐसा करना सम्मानित बन चुके पेशे का स्वयं द्वारा अपमान है। मेरे मित्रों का तो सुझाव है कि अगर संविधान संशोधन की जरूरत पड़े तो करके इस पेशे की बेकद्री करने वालों को राष्ट्रविरोधी घोषित कर देने की हद तक जाना चाहिए।

अच्छा चलिए, मैं तर्कपूर्ण तरीके से अपनी बात को समझाने की कोशिश करता हूं। जिसे समझ में आ जाए उसका भी भला और जिसे समझ में न आए, उसका भी भला।

हां तो जो स्वयंसिद्ध है, उसे भी सिद्ध करके मुझे यह बताना है कि चोरी क्यों अब एक ‘सम्मानित पेशा’ है? वैसे मैं विद्यार्थी कभी अच्छा नहीं रहा, इतिहास और समाजशास्त्र का तो बिल्कुल नहीं, इसलिए पहले के जमाने में इस पेशे को किस रूप में देखा जाता था, इसकी विशेष जानकारी मुझे नहीं है मगर मेरा अनुमान है कि इसे सम्मान की नजरों से देखा नहीं जाता होगा।

कारण यह है कि मैं जब छोटा था और फिर युवा हुआ, तब तक भी इस पेशे के प्रति सम्मान का भाव नहीं था। चोर को तब पुलिस मुस्तैदी से पकड़ा करती थी और उसे पकड़वाने में जनता भी मदद करती थी। इससे बचपन से ही मेरी यह समझ बनी कि चोरी करना पाप है और सबकुछ करना चाहिए मगर चोरी नहींं करना चाहिए। चोर को हम तब बहुत गलीज इनसान समझा करते थे बल्कि उसे इनसान समझते थे, इसमें शक है।

लेकिन आज समय बदला है, सदी बदली है, ट्रेंड बदला है। अब चोर को पकड़ने की बजाय चोर और चौकीदार दोनों से लोगों को डरना पड़ता है। पुलिस चोरी की एफआईआर दर्ज करने वाले को ही अक्सर धर लिया करती है और चोर को सलाह देती है कि तू भी इसके खिलाफ एक एफआईआर दर्ज कर दे, इसके विरुद्ध मानहानि का मुकदमा भी दायर कर दे। फिर देखना, हमने इसके बारह नहीं बजा दिए तो कसम से अपनी मूंछ मुड़वाकर जेब में रख लेंगे। और ऊपर से हरी झंडी मिल गई- जो कि मिल ही जाती है, तो फिर तो हम इसकी बारह, तेरह, चौदह, क्या पंद्रह, सोलह, सत्रह सब बजा देंगे।

इसी बीच बड़े से बड़े नेता का फोन भी पुलिस के पास पहुंच जाता है कि ‘ओए, देखना भई, ये हमारा अपना खास बंदा है, इसका खूब ख्याल रखना। इसे किसी किस्म की परेशानी नहीं होनी चाहिए और हुई तो तुझे कमाई की जगह से हटवा कर ऐसी जगह पटकवा देंगे कि जहां तू लहरेंं गिनकर भी एक धेला नहीं कमा पाएगा। तेरी ये ऊपरी कमाई से आई जो चमाचम कार है न, इसे कबाड़ी भी हमारे डर से नहीं खरीदेगा। महंगे स्कूल-कालेज में तेरे बेटे-बेटी की जो पढ़ाई चल रही है, वह धरी की धरी रह जाएगी और तू जो ये मस्ती मार रहा है न आजकल, सब हवा हो जाएगी। तुझे ऐसा जोरदार सबक सिखाऊंगा कि तेरी चार पीढ़ियां तक याद रखेंगी। समझा न, अभी तो हिंदी में ही समझा रहा हूं वरना अंग्रेज़ी में समझाना शुरू किया तो तू इधर-उधर भागता नजर आएगा और कहीं कोई ठिकाना नहीं मिलेगा।’

तो भाइयों-बहनों, सीन अब तेजी से बदल रहा है। अब चोर वह नहींं, जो घर में सेंध लगाता है या पर्स या मोबाइल चुराकर भाग जाता है। ये तो अब निम्न कोटि के क्षम्य अपराध हैं बल्कि ये काम हैं, अनौपचारिक क्षेत्र के रोजगार की श्रेणी में आते हैं। लोग एफआईआर महज इसलिए करवाते हैं ताकि नया एटीएम कार्ड या डेबिट-क्रेडिट कार्ड या आधार कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस बिना किसी झंझट के बन जाए। यह सोचकर लोग रिपोर्ट नहीं करवाते हैं कि इससे उनका खोया हुआ सामान मिल जाएगा। इस बात को पुलिस भी अच्छी तरह जानती है और जनता भी।

तो चोर तो वह होता है, जिसके पास इतनी दौलत होती है, जिसका इतना रसूख होता है कि उसे चोर कहना अपनी ऐसी-तैसी करवाना है। अगर किसी ने उसे गलती से चोर कह दिया तो चोर, उसकी इधर से उधर तक, ऊपर से नीचे तक, दांए से बांए तक ऐसी-तैसी कर और करवा देगा कि वह भागता ही फिरेगा।

दरअसल ऐसा चोर देश या प्रदेश के संविधान सम्मत चौकीदार का घनिष्ठतम मित्र होता है, जिसे चौकीदार ‘भाई’ के संबोधन से संबोधित करता है। उदाहरण के लिए- मेहुल भाई। असली चौकीदार चोर का इतना घनघोर मित्र और हितैषी होता है कि उसे नेक सलाह देता है कि “ऐसा कर भैया जब तक मैं ड्यूटी पर हूं, तू सम्मानपूर्वक इस देश-प्रदेश से जो भी, जहां भी ले जाना हो, खुशी-खुशी ले जा, मैं सब निबट-समझ लूंगा। और जहां तक चोरी के माल के आपसी बंटवारे का प्रश्न है, तो अपन बाद में इसे प्रेमपूर्ववक, भाईचारे के वातावरण में निबटा लेंंगे। तुझे भाई कहा है तो भाई का कर्तव्य भी निबाहना होगा न! तूने चौकीदार पद पर मेरी नियुक्ति के समय साथ दिया था तो अब पगले, तुझे भूल थोड़े ही जाऊंगा।”

या फिर ये कहता है, “भाई, सुना है, आजकल तू ‘घाटे’ में चल रहा है, यह तो बड़े दुख की बात है। कल रात यह खबर सुनकर मुझे नींद नहीं आई थी कि मेरा भाई इतनी मुसीबत में है! खैैर,अब तू ऐसा कर उस घाटेवाली कंपनी को अच्छे से डुबो दे, दिवालिया हो जा और फिर मैं तुझे युद्धक विमान के पुर्जे बनाने का कारखाना खुलवा दूंगा। फिर सरकारी माल डकार कर उसे भी डुबा देना। तेरे जैसे भाइयं-बहनों की सेवा के लिए ही तो हमने इतने सरकारी बैंक खुलवा रखे हैं। लो दनादन कर्ज, खुद भी खाओ और हमें भी खिलाओ। मैं चौकीदार हूं तो देश का प्रधानसेवक भी तो हूं। मुझे देश का विकास भी तो करना है, इसलिए तू ऐसा कर कि इंपोर्ट-एक्सपोर्ट कर,फर्जी बिल पर बिल बनवाता जा और इस तरह देश सेवा में मेरा सहयोगी बना रह। ये देश अपना है भई, इसे पराया मत समझ!”

निष्कर्ष यह कि उसे चोरी कहो, डकैती कहो, आजकल अत्यंत सम्मानित नागरिकों का पेशा बन चुका है। इस पेशे में चोर भी चाहिए और चौकीदार का सहयोग भी। चौकीदार के संपूर्ण सहयोग के बगैर इस धंधे में संपूर्ण सफलता मिलना नामुमकिन है। ऐसा भी होता है, जैसा आजकल हो रहा है कि चौकीदार चोरी करवाता भी है और खुद भी करता है। इसलिए मैं देशवासियों से अपील करता हूं कि पुराने माइंडसेट से निकलकर चोरी को सम्मानित पेशे का स्थान देंं और चोर भी अपने दिमाग से यह बात निकाल देंं कि यह कोई घटिया काम है और चोर को चोर कहना उस फलती-फूलती बिरादरी का अपमान है। वैसे चौकीदारी तो हमेशा से सम्मानित पेशा रहा है और जब चौकीदार खुद चोर से अपनी निगरानी में चोरी करवाता है तो इस पेशे का सम्मान इतना अधिक बढ़ जाता है कि ऐसे आदमी को अगर रत्न-पुरस्कार मिल जाए तो भी आश्चर्य नहीं, प्रसन्नता व्यक्त करनी चाहिए।

समीरात्मज मिश्र,
(बीबीसी से साभार)

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