लोकसभा चुनाव-2019 के हॉट सीट में से एक सीट बेगूसराय की भी है. इस संसदीय सीट पर सभी की नजरें हैं. यहां भाजपा के दिग्गज गिरिराज सिंह, गठबंधन के उम्मीदवार तनवीर हसन और जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और सीपीआई के युवा नेता कन्हैया कुमार के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है. इन तीनों ही उम्मीदवारों ने पर्चा दाखिल कर दिया है. मंगलवार कन्हैया कुमार के रोड शो में गुजरात से विधायक जिग्नेश मेवाणी, शेहला रशीद, स्वरा भास्कर, गुरमेहर कौर और नजीब की मां अम्मा फातिमा नफीस सहित कई लोग बेगूसराय पहुंचे, इतना ही नहीं, कन्हैया के समर्थन में सड़कों पर बड़ा जनसैलाब देखने को मिला. इसमें कई चेहरे ऐसे भी थे, जो कन्हैया के लिए काफी दिनों से प्रचार में जुटे हैं. कन्हैया के चुनाव प्रचार के लिए जेएनयू, दिल्ली यूनिवसिर्टी और जामिया मिलिया के स्टूडेंट्स बेगूसराय पहुंचे हुए हैं. इसके अलावा कई अन्य राज्यों से भी स्टूडेंट विंग ने मोर्चा संभाल लिया है.
अल्पसंख्यक समुदाय के वोटर्स के बीच कन्हैया कुमार के लिए जामिया मिलिया से पीएचडी कर रहे शाहनवाज चुनाव प्रचार का काम देख रहे हैं. वह भी बेगूसराय के ही रहने वाले हैं. 257 पंचायत वाली बेगूसराय सीट पर शाहनवाज की टीम मुस्लिम वोटर्स के बीच प्रचार करती है. दरअसल, बेगूसराय सीट पर मुस्लिम वोटर्स काफी कुछ तय करते आए हैं. इस समुदाय के वोटर्स को साधने के लिए सभी दल गणित बैठाते हैं. डीयू से पढ़ाई करने के बाद पीएचडी में दाखिले के लिए जुटे सूरज कुमार ने बताया कि वह नामांकन के कुछ दिन पहले तक कन्हैया के साथ उनके कैंपेनिंग में लगे थे. सूरज का कहना है कि पूरे बिहार में बुनियादी मुद्दों पर सिर्फ बेगूसराय में चुनाव लड़ा जा रहा है. हम शिक्षा, रोजगार और किसानों की समस्या का ही मुद्दा लोगों के बीच ले जा रहे है. हम किसी से वादा नहीं कर रहे हैं, सिर्फ साथ मांग रहे हैं. सूरज ने बताया कि दिल्ली से करीब 80 स्टूडेंट्स प्रचार के दौरान एक्टिव हैं, जो हर पंचायत में जा रहे हैं. ये सभी अपने खर्च पर यहां आए हैं.
बेगूसराय संसदीय क्षेत्र में 7 विधानसभा आता है. 90 के दशक से लेफ्ट के सबसे मजबूत गढ़ में सेंध लगनी शुरू हो गई थी. 1995 तक यहां की 7 में से 5 सीटें वामदलों के पास थीं,लेकिन बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव के एंट्री के बाद सवर्णो जातियों के खिलाफशुरु हुए आंदोलन ने बिहार में जातीय समीकरण की रूपरेखा तैयार कर दी, जिससे लेफ्ट का गढ़ बेगूसराय भी नहीं बच पाया.बता दें कि तेघड़ा विधानसभा सीट पर 1962 से लेकर 2010 तक लेफ्ट का कब्जा रहा है. 2010 के चुनाव में बीजेपी यहां से जीती थी. अब रही लोकसभा चुनाव की बात तो पहले बेगूसराय और बलिया दो अलग-अलग लोकसभा क्षेत्र रहा है. बेगूसराय में 1967 में सीपीआई ने कांग्रेस को हराकर चुनाव जीता था. 2014 में भी सीपीआई ने 1,92,639 वोट लाकर तीसरा स्थान प्राप्त किया था, जबकि 1967 में 1,80,883 वोट लाकर सीपीआई ने चुनाव जीत लिया था. बेगूसराय में 2014 में लेफ्ट उम्मीदवार को लेकर भी मतभेद था, जिसकी वजह से वोट बंट गए थे. बलिया लोकसभा जो पहले बेगूसराय से अलग था वहां सीपीआई तीन बार 1980, 1991 तथा 1996 में लोकसभा चुनाव जीत चुकी है.
एक वक्त था जब बिहार में भूमिहार कांग्रेस के साथ हुआ करते थे, लेकिन कांग्रेस ने लालू यादव को समर्थन देकर चुनावी गणित ही बदल दिया. इस समर्थन के बाद भूमिहार के साथ ओबीसी (गैर यादव) ने नीतीश कुमार और बीजेपी का हाथ थाम लिया. इस लिहाज से समझा जाए तो कन्हैया कुमार खुद भूमिहार हैं. उनको अपनी ही जाति से वोट मिलेगा, ये आज के परिदृश्य में दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है. हां यह तय है कि कन्हैया कुमार गठबंधन के उम्मीदवार होते तो मुकाबला त्रिकोणीय नहीं होता. इधर, उनके समर्थकों का कहना है कि कन्हैया कुमार जनता के बुनियादी जरूरतों के लिए लड़ाई में उतरे हैं. इसलिए हर वर्ग का वोटर उनके साथ है.