बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने बुधवार और गुरुवार को नीतीश सरकार को एक के बाद एक मुद्दों पर घेरा. बिहार में बढ़ रहे अपराध और सीबीआई से मिलीभगत के मुद्दे पर उन्होंने विधान परिषद में सीएम नीतीश कुमार को लाजवाब कर दिया. राबड़ी देवी ने कहा कि अपराध बिहार में हो रहा है और बिहार के मुख्यमंत्री इंग्लैंड और अमेरिका के अपराध की बात करते हैं. राबड़ी देवी के ऐसे तेवर के बाद बुधवार को नीतीश कुमार को बैकफुट पर आना पड़ा और कहना पड़ा, ‘आप हमारी भाभी हैं हम आपको कुछ नहीं बोल सकते.’
इससे पहले मंगलवार को आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और दोनों बेटों, तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव की अनुपस्थिति में आरजेडी विधायक दल की बैठक का नेतृत्व किया. न सिर्फ उनकी मौजूदगी रही बल्कि कार्यकर्ताओं में जोश भी भर दिया. जाहिर है राबड़ी देवी एक घरेलू महिला के आवरण को उतार फेंकने में कामयाब रही हैं और एक परिपक्व राजनीतिज्ञ बन गई हैं.
दरअसल बीते दो दशक से राबड़ी देवी बिहार की राजनीति का ऐसा नाम हैं जिनकी पहचान कोई एक सीमा में नहीं बांधा जा सकता. वह लालू प्रसाद यादव की अर्धांगिनी होने के साथ प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री हैं और बिहार विधान परिषद में प्रतिपक्ष की नेता भी हैं .
राबड़ी देवी के बारे में जानने वाले कई लोग उस दौर को याद करते हैं जब एक घरेलू और भदेस महिला बिहार की मुख्यमंत्री बनीं थीं. 25 जुलाई, 1997 को जब उन्होंने सीएम पद की शपथ ली थी तो लोग लालू प्रसाद के राजनीतिक चातुर्य की तारीफ जरूर करते थे. लेकिन साथ ही राबड़ी देवी को सीएम बनाने को लेकर तंज भी कसते थे.
हालांकि अब आलोचकों की जुबान बंद है. आज राबड़ी देवी न सिर्फ नीतीश कुमार को ही नहीं बल्कि पीएम मोदी तक को अपने निशाने पर लेने से नहीं डरतीं. कैसे भी हालात क्यों न हों उन्हें सीबीआई, ईडी या फिर पीएम मोदी से भी डर नहीं लगता है.
एक सामान्य घरेलू महिला का सीएम बन जाना एक आश्चर्य जरूर था, लेकिन राबड़ी देवी का वर्तमान अंदाज हैरान नहीं करता है. उनके बयानों में गुस्सा ‘सियासत की गॉडमदर’ की तरह दिखता है और जब यदाकदा उन्हें गुस्सा आता है तो फिर ज्वालामुखी फटता है.
दरअसल जब-जब पार्टी को उनकी जरूरत पड़ी है वह लीडरशिप की रोल में सामने आती रही हैं. जब पहली बार लालू यादव को चारा घोटाला मामले में जेल जाना पड़ा था तो वह सीएम बनी थीं. 2017 में आरजेडी अध्यक्ष के जेल जाने के बाद वह एक बार फिर अपनी भूमिका में लौट आईं. अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने वाली नेत्री बनकर उभरी हैं तो अपने बेटों की मार्गदर्शन भी करती हैं.
दरअसल 2017 में जब तेजस्वी यादव को आरजेडी की कमान सौंपे जाने की बात शुरू हुई तो पार्टी के वरिष्ठों में बेहद नाराजगी थी. उन सबको एकजुट रखने की चुनौती के बीच तेजस्वी यादव की लीडरशिप को स्थापित करने की चुनौती एक साथ थी. लालू यादव की अनुपस्थिति में राबड़ी देवी ने ये काम बखूबी निभाया भी है. हालांकि बिहार की राजनीति को जानने वाले इसे अलग नजरिये से भी देखते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार इंद्रजीत सिंह कहते हैं कि जब भी लालू प्रसाद नहीं रहते हैं तो वह मेंटर के रोल में एक्टिव हो जाती हैं. इनकम टैक्स, ईडी और सीबीआई के एक्शन के बीच लालू एंड फैमिली अभी अधिक परेशान हैं. हालांकि यह एक पहलू है.
हाल में बिहार में कानून व्यवस्था की स्थिति बेहद खराब हो गई है. ऐसे में वह अपनी पार्टी के लिए पॉलिटिकल स्कोर भी करना चाहती हैं. बकौल इंद्रजीत सिंह नीतीश कुमार ने जिस लालू-राबड़ी के जंगलराज को मुद्दा बनाया था, वह उसी का बदला लेने के अंदाज में भी अग्रेसिव हैं. बिल्कुल जैसे को तैसे वाले अंदाज में.
लालू एंड फैमिली को करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेल्लारा कहते हैं कि राबड़ी देवी जिस अंदाज में आक्रामक तरीके से सामने आई हैं वह स्वाभाविक भी है. वह इस कोशिश में हैं कि जनता यह समझ जाए कि नीतीश कुमार और सुशील मोदी ने मिलकर ही लालू एंड फैमिली को फंसाया है और उनका परिवार बेकसूर है. यह कवायद इसलिए कि दोनों बेटों की राजनीति में उनकी जाति और समर्थक जमात का सपोर्ट मिलता रहे.
ऐसे भी तेजप्रताप तलाक प्रकरण से परिवार की साख को बेहद नुकसान पहुंचा है. लालू प्रसाद भी जेल में हैं और आरजेडी में भी खेमेबाजी का अंदेशा है. तेजप्रताप यादव का अगला रुख क्या होगा इसपर भी सबकी नजरें हैं. लेकिन इतना साफ है कि राबड़ी देवी पार्टी और परिवार, दोनों के लिए मेंटर हैं.
बीते दो दशक में जो लोग राजनीतिक रूप से राबड़ी देवी की क्षमताओं पर संदेह करते थे, वे गलत साबित हुए हैं. वह लालू यादव की अनुपस्थिति में परिवार के मुखिया होने की भूमिका का आनंद उठा रही हैं.