News Agency : यहां उसकी शुरुआत साल 2004 में हुई थी. राज्य में सरकार बनाने, दूसरी सरकारों को गिराने और अन्य राजनीतिक जोड़-तोड़ की रणनीति और खेल यहां येदियुरप्पा ही बनाते रहे हैं.इसलिए कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए कि जो बीजेपी 75 साल से बड़े-बुजुर्गों को सत्ता से दरकिनार करती रही है उसके पास इसी उम्र के येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है.इसकी वजह यह है कि यह सारा राजनीतिक खेल येदियुरप्पा का रचा हुआ है. साल 2004 में जब कर्नाटक विधानसभा त्रिशंकु हुई थी तो उस वक़्त कई तरह के प्रयोग हुए थे.कांग्रेस और जेडीएस की सरकार बनी थी, फिर विफल हुई, इसके बाद फिर से जेडीएस और बीजेपी की सरकार बनी. कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बनाए गए, लेकिन जब बीजेपी को सत्ता सौंपने की बारी आई तो उन्होंने मना कर दिया और इस्तीफ़ा दे दिया. राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था.लेकिन सारा राजनीतिक खेल असल में 2008 से शुरू होता है. इस साल हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बहुमत से महज तीन सीटें कम मिलीं और येदियुरप्पा ने सरकार बनाने का दावा किया.राज्यपाल ने उनका यह दावा मंजूर कर लिया और अल्पमत की सरकार बनी और उनका खेल तभी शुरू हो गया था.और बहुत मजे की बात ये है कि उन्होंने जो कुछ भी खेल किया, कैसे कांग्रेस के विधायकों को तोड़ा, कैसे जेडीएस के विधायकों को अपने पाले में लाये, उन सभी के बारे में खुल कर बाद में बात की और स्वीकार किया कि उन्होंने ग़लत किया.दल-बदल क़ानून 1985 में लागू हुआ था. येदियुरप्पा ने इस क़ानून का भी तोड़ निकाल लिया और चोर दरवाजे से दूसरे पार्टी के विधायकों को अपने पाले में लाने के लिए पहले इस्तीफ़ा दिलवाया और फिर बाद के उपचुनाव में खड़ा कर जीत दिलवा दी.2008 में येदियुरप्पा की पार्टी ने कांग्रेस और जेडीएस के कुल सात विधायकों को तोड़ा था, जिसमें से पांच उपचुनाव जीते थे.स तरह येदियुरप्पा की सरकार बच गई और सदन में बहुमत हासिल करने में वे सफल रहे. लेकिन राज्य में बीजेपी के जो पहली सरकार बनी वो सबसे भ्रष्ट और बदनाम साबित हुई.खनन घोटाला हुआ, जांच हुई, बड़े आरोप लगे और कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में येदियुरप्पा को लोकायुक्त ने संगीन आरोपों में लिप्त पाया. उन्हें इस्तीफ़ा तक देना पड़ा. इस्तीफ़ा तो बीजेपी ने लिया लेकिन इससे येदियुरप्पा बहुत नाराज़ हुए.
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