News Agency : केन्द्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद जीवन में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। वे अभी तक राज्यसभा के ही सदस्य रहे हैं। 2018 में भाजपा ने उन्हें लगातार चौथीबार राज्यसभा में भेजा था। पटना साहिब सीट पर उनका मुकाबला कांग्रेस के शत्रुघ्न सिन्हा से है।रविशंकर प्रसाद अपने पिता ठाकुर प्रसाद की तरह एक चर्चित वकील और सफल राजनीतिज्ञ हैं।
रविशंकर प्रसाद का जन्म पटना में हुआ है। उनके पिता ठाकुर प्रसाद जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में एक थे। वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के समर्पित कार्यकर्ता थे। ठाकुर प्रसाद पटना हाईकोर्ट में वकालत करते थे। उनकी गिनती पटना के बड़े वकीलों में होती थी। रविशंकर प्रसाद ने पटना विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की। फिर पटना लॉ कॉलेज से एलएलबी की डिग्री हासिल की। उसके बाद वे 1980 से पटना हाईकोर्ट में वकालत करने लगे। बहुत जल्द ही उनकी गिनती काबिल वकीलों में होने लगी। रविशंकर प्रसाद अपने छात्र जीवन में अखिल विद्यार्थी परिषद के सदस्य रहे। पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के सहायक महासचिव पद पर भी रहे। जेपी के छात्र आंदोलन में शामिल रहे। 1995 में भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद के सदस्य चुने गये।
1996 में चारा घोटला का मामला सामने आने के बाद सरयू राय, सुशील कुमार मोदी और शिवानंद तिवारी पटना हाईकोर्ट में एक लोकहित याचिका दाखिल की और उसकी जांच सीबीआइ से कराने की मांग की। इन तीनों ने रविशंकर प्रसाद को अपना वकील बनाया। बिहार सकार इस मामले की जांच वित्त विभाग के अफसर से करा रही था लेकिन उस जांच पर किसी को भरोसा नहीं था। रविशंकर प्रसाद ने चारा घोटला से जुड़े अहम दस्तावेज और जानकारियां कोर्ट के सामने रखीं। उस पर जिरह की। लालू यादव के खिलाफ कानून का शिकंजा लगातार कसने लगा। इस दरम्यान वकील रविशंकर प्रसाद की भी खूब चर्चा हुई। पटना हाईकोर्ट ने आखिरकार इस मामले की जांच सीबीआइ से कराने की मंजूरी दे दी। सीबीआइ के संयु्क्त निदेशक उपेननाथ विश्वास की सटीक जांच, पटना हाईकोर्ट की निगरानी के कारण चारा घोटला के छह में से चार मामलों में लालू यादव आज दोषी करार दिये जा चुके हैं। इस केस ने रविशंकर प्रसाद को एक कामयाब वकील की ख्याति दिलायी। फिर वे 2000 में सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील बन गये।
भाजपा ने रविशंकर प्रसाद को सन 2000 में पहली बार बिहार से राज्यसभा का सदस्य बनाया। उस समय केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। 2001 में उन्हें वाजपेयी मंत्रिपरिषद में कोयला और खान मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया। फिर 2002 में उनको विधि मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार दिया गया। 2003 में रविशंकर प्रसाद का कद कुछ और बढ़ा। उनको सूचना और प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेवारी दी गयी और स्वतंत्र प्रभार वाला राज्यमंत्री बनाया गया। 2006 में रविशंकर प्रसाद फिर राज्यसभा का सदस्य बने। 2012 में वे तीसरी बार राज्यसभा गये। 2014 में जब नरेन्द्र मोदी सरकार बना तो उनको पहले से बड़ी जिम्मेदारियां दी गयीं। उनको कानून और न्याय मंत्रालय का कैबिनेट मंच्री बनाया गया। इसके अलावा उनको संचार मंत्रालय और इलेक्ट्रोनिक्स एंड इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय की भी जिम्मेवारी दी गयी। रविशंकर प्रसाद ने प्रधानमंत्री मोदी के डिजिटल इंडिया के अवधारणा को जमीन पर उतारा है।
सफल वकील और केन्द्रीय मंत्री होने के नाते रविशंकर प्रसाद की अपनी हैसियत है। लेकिन इस चुनाव में वे जनता से जुड़ने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। मंत्री के रुतबे से दूर वे अहले सुबह मॉर्निंग वाक से ही अपना चुनाव प्रचार शुरू कर देते हैं। वे बारी-बारी से उन पार्कों में जाते हैं जहां लोग सुबह की सैर करने आते हैं। बुजुर्गों और नौजवानों से मिलते हैं। बात करते हैं। उनसे घुलते मिलते हैं। मुहल्ले-मुहल्ले जा कर लोगों से मिलते हैं। उनका लो प्रोफाइल चुनाव प्रचार लोगों को प्रभावित कर रहा। रविशंकर प्रसाद की पत्नी माया शंकर पटना विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। छात्रों और शिक्षकों को वे भी अपने स्तर पर भाजपा की तरफ गोलबंद कर रही हैं। सबसे बड़ी बात रविशंकर प्रसाद के पास भाजपा, एबीवीपी कार्यकर्ताओं की समर्पित टीम है जो जी-जान से चुनाव प्रचार कर रही है। दूसरी तरफ कांग्रेस के शत्रुघ्न सिन्हा को अपने स्टरडम पर भरोसा है। लोगों से घुलने मिलने में वे उतने सहज नहीं हैं जितने रविशंकर प्रसाद हैं। भाजपा के सांसद रहते शत्रुघ्न सिन्हा अपने चुनाव क्षेत्र से गायब ही रहते थे। रविशंकर प्रसाद शालीन हैं जब कि शत्रुघ्न सिन्हा कई बार बड़बोलेपन से स्थिति को असहज कर देते हैं। जब से उनकी पत्नी पूनम सिन्हा लखनऊ में सपा का उम्मीदवार बनी हैं शत्रुघ्न सिन्हा के लिए परेशानियां बढ़ गयी हैं। कांग्रेस में उनको लेकर पशोपेश पैदा हो गया है। कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ता उनके साथ नहीं हैं।