News Agency : बेगूसराय में चुनाव से एक दिन पहले जब दिग्विजय सिंह ने ताल ठोकर कहा कि वो कन्हैया कुमार के समर्थक हैं और वो प्रचार के लिए भोपाल भी आ रहे हैं, तो राजनीतिक विश्लेषकों के लिए यह सोचने का विषय बन गया। इतना ही नहीं दिग्विजय कई कदम आगे बढ़कर ये तक कह गए कि लालू यादव की पार्टी ने कन्हैया को समर्थन न देकर बड़ी गलती कर दी है। दिग्गी राजा के दोनों बयानों में दो रिस्क फैक्टर शामिल हैं। एक तो कन्हैया को लाकर वे साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और बीजेपी के हाथों में उन्हीं का एजेंडा थमा रहे हैं, दूसरा बिहार में कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन के लिए मुश्किलें भी खड़ी कर रहे हैं। सवाल उठता है कि राजनीति के इतने दिग्गज दिग्गी राजा जानबूझकर ऐसे रिस्क ले क्यों रहे हैं?
भोपाल में कांग्रेस के उम्मीदवार दिग्विजय सिंह के खिलाफ बीजेपी ने मालेगांव धमाकों की आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को पार्टी में शामिल कराकर उनके खिलाफ टिकट दिया तभी साफ हो गया था कि भाजपा यहां दिग्विजय सिंह को ‘हिंदू आतंकवाद’ या ‘भगवा आतंकवाद’ के मुद्दे पर घेरने की कोशिश करेगी। बीजेपी की रणनीति का मकसद साफ है कि राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दे पर दिग्विजय के खिलाफ ध्रुवीकरण के लिए प्रज्ञा ठाकुर से ज्यादा अच्छा विकल्प नहीं हो सकता। ऐसे में अगर कन्हैया कुमार भी उनके पक्ष में आ जाएंगे, तो बीजेपी के आक्रमण को तो और धार ही मिलेगा।
क्योंकि, पार्टी ने बेगूसराय में ही नहीं देश के बाकी हिस्सों में भी विरोधियों को घेरने के लिए ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ का मुद्दा लगातार उठाया है। लेकिन, दिग्विजय राजनीति के इतने कच्चे खिलाड़ी तो हैं नहीं। उन्होंने कन्हैया की तारीफ में कसीदे पढ़े हैं, तो जरूर उनके दिमाग में कुछ न कुछ खिचड़ी जरूर पक रही है। कन्हैया का समर्थन लेने पर दिग्विजय के लिए दूसरा रिस्क ये था कि इससे बिहार में आरजेडी के साथ उनकी पार्टी के तालमेल में दिक्कत आ सकती है। वैसे ही कुछ सीटों पर आरजेडी और कांग्रेस समर्थकों के बीच जबर्दस्त विरोध देखने को मिल रहा है। सुपौल में तो यह लड़ाई सतह पर आ चुकी है।
वहां कांग्रेस की उम्मीदवार रंजीत रंजन के खिलाफ आरजेडी के विधायक और समर्थक ताल ठोक रहे हैं और हर हाल में उन्हें हराने की बात कह रहे हैं। ऐसे में कन्हैया को भोपाल बुलाने से पहले दिग्विजय ने उनका बेगूसराय में समर्थन करने का जोखिम क्यों लिया? जबकि, वहां आरजेडी के टिकट पर तनवीर हसन महागठबंधन के घोषित उम्मीदवार हैं। हालांकि, इस मामले में जताई जा रही आशंका सच साबित हुई और सोमवार को बेगूसराय में चुनाव से पहले ट्वीट करके दिग्विजय को अपनी भूल को सुधार कर बिहार में आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन को विजय बनाने की अपील करनी पड़ गई। गौरतलब है कि कन्हैया का बीजेपी के गिरिराज सिंह के साथ-साथ आरजेडी के तनवीर हसन के साथ भी मुकाबला है।
दरअसल, इतने जोखिमों को जानते हुए भी दिग्विजय सिंह ने सीपीआई के कन्हैया कुमार को भोपाल में अपने लिए प्रचार करने के लिए इसलिए बुलाया है, क्योंकि वो उनके जरिए यहां तकरीबन दो लाख वोटरों को साधना चाहते हैं। ये वो वोटर हैं, जिनकी जड़ें उत्तर प्रदेश या बिहार से जुड़ी हुई हैं। भोपाल में ऐसे भी युवा काफी संख्या में हैं, जो यूपी-बिहार से आकर यहां पढ़ाई कर रहे हैं और पढ़ाई पूरी होने पर यहीं नौकरी भी कर रहे हैं। इसमें से भी काफी तादात फर्स्ट टाइम वोटरों की है। दिग्विजय खेमे को लगता है कि बिहार और जेएनयू से जुड़े होने के कारण उन मतदाताओं को कन्हैया कुमार आसानी से कंविंस कर सकते हैं। वैसे भी कन्हैया की पार्टी सीपीआई और लेफ्ट के नेताओं के साथ दिग्विजय के गहरे ताल्लुकात हैं।
कन्हैया की पार्टी तो क्षेत्र में दिग्विजय को सपोर्ट भी कर रही है। दिग्विजय सिंह इतना बड़ा चुनावी रिस्क तब ले रहे हैं, जब अपने खिलाफ प्रज्ञा सिंह ठाकुर की उम्मीदवारी के बावजूद उन्होंने आक्रामक रणनीति अपनाने से परहेज किया है। दिग्विजय बार-बार ये भी सफाई दे चुके हैं कि उन्होंने कभी ‘हिंदू आतंकवाद’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया। उल्टे वो इसके लिए बीजेपी के आरा से मौजूदा सांसद और पूर्व गृह सचिव आरके सिंह पर इसका दोष मढ़ रहे हैं। क्योंकि, उन्हें पता है कि अगर बीजेपी की चली तो यही चीजें दिग्विजय सिंह पर भारी पड़ सकती हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि जिस तरह से उन्होंने एक दिन बाद ही बिहार में आरजेडी को लेकर अपनी लाइन बदली है, वैसे ही कहीं कन्हैया कुमार को भोपाल बुलाने पर भी फिर से सोचने के लिए मजबूर न हो जाएं?