News Agency : उन्हें जल्दी-जल्दी दो घड़े पानी भरकर लौटना है ताकि घर का बाकी काम कर सकें.दिन में तीन बार क़रीब दो किलोमीटर दूर स्थित मीठे पानी के नल से पानी भरना उनका रोज़ का काम है. गर्भावस्था में भी उन्हें इससे फ़ुरसत नहीं मिल सकी है.उत्तर प्रदेश के मथुरा ज़िले के गोवर्धन इलाक़े के कई गांवों में पीने के पानी की समस्या है. नीम गांव भी इनमें से एक है.सिर्फ़ गर्भवती नीतू ही नहीं इस गांव की बच्चियां, महिलाएं और बूढ़ी औरतें पानी ढोने के लिए अभिशप्त हैं.यहां ज़मीन के नीचे का पानी खारा है. इसे न पिया जा सकता है और न ही इससे नहाया धोया जा सकता है.ममता पंद्रह साल पहले नीम गांव में ब्याही थीं. रोज़ पानी ढोना उनकी भी नियति बन गई है.वो कहती हैं, “एक ही नल है, खारो पानी है सबरो. पीने कू, लत्तन कू, कपड़न कू, भैसन कू यहीं ते ले जावें, बहुत दिक्कत है.अपने घर ते काम, बालकन को छोड़ ते यहां आवें. दो-दो किलोमीटूर दूर आनो पड़ै है. यहां पानी भरने के लिए एक-एक, डेढ़-डेढ़ घंटा बैठना पड़ै है. “”पानी ढोत-ढोत सर के बाल उड़ गए. हम औरतन की न प्रधान सुनै न सरकार सुनै, कोई न सुनै.”
गांव में सिंचाई के लिए आई एक संकरी नहर के पास एक कुंआ और एक नल है. कुएं पर गांव के लोग नहाते धोते हैं और नल से महिलाएं घर के लिए भानी भर ले जाती है.कभी-कभी यहां इतनी भीड़ हो जाती है कि मारपीट की नौबत तक आ जाती है. आठ हज़ार की आबादी के इस गांव में आज तक सरकारी पानी की टंकी नहीं पहुंच सकी है.वो कहती हैं, “ये नीम गांव है, यहां पानी की प्यासी दुनिया मरती है. परदेसी मरते हैं इस गांव में पानी के प्यासे. यहां की बेटियां पानी ढोते-ढोते मर जाएंगी. लेकिन यहां पानी की सुविधा नहीं दिखेगी.”
केंद्र सरकार की कई योजनाएं गांव तक पहुंची हैं. यहां बिजली भी आती है और पक्की सड़क भी गुज़रती है. मुफ़्त में सरकारी गैस सिलेंडर मिलने की योजना के बारे में भी यहां की महिलाओं को जानकारी है.एक महिला कहती है, “सरकार हमें सिलेंडर दे न दे फ़र्क नहीं पड़ेगा. पानी दे दे बहुत फ़र्क पड़ेगा. पानी की ज़रूरत तो मुर्दों को भी होती है. जब इंसान मरता है तो उसके मुंह में सिलेंडर या गैस नहीं डालते. पानी ही डालते हैं. हम पानी की बूंद-बूंद को तरस रहे हैं.”गांव में पानी के संकट का सबसे ज़्यादा बोझ भी महिलाओं पर ही पड़ा है. ये पूछने पर कि पुरुष पानी भरने क्यों नहीं आते एक महिला कहती है, “अगर आदमी पानी भरने आएंगे तो परिवार का पेट भरने के लिए काम कौन करेगा.”