पंकज कुमार श्रीवास्तव
चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश सहित 5राज्यों के विधानसभा चुनाव के कार्यक्रमों की विस्तृत घोषणा कर दी है।पांचों राज्यों को मिलाकर कुल 690सीटों पर चुनाव होंगे इसमें से 403सीटें सिर्फ उत्तर प्रदेश की हैं और जो 18.34 करोड़ मतदाताओं को मताधिकार का प्रयोग करना है,उसमें 15.02करोड़ सिर्फ उत्तर प्रदेश के हैं।भारतीय राजनीति का एक प्रसिद्ध जुमला है-दिल्ली(केन्द्र)की सत्ता की राह
उत्तर प्रदेश से होकर गुजरती है।इसलिए,सबकी निगाहें उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तरफ टिकी हैं।
उत्तर प्रदेश में 7चरणों में चुनाव होंगे।10फरवरी को पहले चरण के वोट डाले जाएंगे और 7मार्च को अंतिम चरण का।मतगणना 10मार्च को होगी और परिणाम उसी दिन मिल जाने की आशा है।14फरवरी को जिस दिन उत्तर प्रदेश में दूसरे चरण के वोट डाले जाएंगे,उसी दिन पंजाब और उत्तराखंड में एक दिन में पूरे प्रदेश में मतदान हो जाएंगे। उत्तराखंड पहले उत्तरप्रदेश का ही हिस्सा था और पिछले एक वर्ष से ज्यादा समय से चल रहे किसान आन्दोलन की तपिश सबसे ज्यादा पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में महसूस की गई है,सो पंजाब और उत्तराखंड की चुनावी हवा उत्तरप्रदेश के बाकी चरणों को प्रभावित कर सकती है।हालांकि,पहले दो चरणों में ही पश्चिमी उत्तरप्रदेश की 113विधानसभा सीटों पर हो चुके रहेंगे।
चुनाव आयोग की घोषणा के बाद आचार संहिता लागू हो गई है और अब उत्तर प्रदेश का प्रशासन सीधे चुनाव आयोग के नियंत्रण में है।पहले चरण की अधिसूचना 14जनवरी को जारी की जाएगी और 21 जनवरी तक नामांकन दायर किए जा सकें सकेंगे।
लगभग पौने दो महीने तक चलने वाली इस चुनाव प्रक्रिया में उत्तर प्रदेश के मतदाता अपने पुराने विधायकों से उनके द्वारा किए गए वायदों की याद दिलाएंगे उनके द्वारा किए गए कार्यों का मूल्यांकन करेंगे और उसके आधार पर अपने मत निर्णय का फैसला करेंगे।एक गलतफहमी है कि चुनाव सिर्फ मुख्यमंत्री, मंत्रिमंडल और सत्ताधारी विधायकों का मूल्यांकन है।नहीं,स्वस्थ,जीवन्त और जाग्रत लोकतंत्र में विपक्षी दलों की भी अहम भूमिका है और इसीलिए मान्यता प्राप्त विपक्षी दल के नेता का महत्व किसी काबीना मंत्री के समकक्ष माना जाता है।वर्तमान में समाजवादी पार्टी मान्यता प्राप्त विपक्षी दल रही है और स्वाभाविक ही सत्ताधारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ,उनके मंत्रिमंडल और उनकी पार्टी भाजपा के विधायकों के कार्यों के मूल्यांकन के साथ-साथ समाजवादी पार्टी के विधायकों के कार्यों और भूमिकाओं का भी मूल्यांकन इस चुनाव में होगा।
2014में राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के प्रवेश के बाद जितने भी विधानसभा चुनाव हुए उन सभी चुनाव में भाजपा ने सिर्फ मोदी जी के चेहरे के आधार पर चुनाव लड़ने की हरचंद कोशिश की है। ‘मोदी है तो मुमकिन है’-इस जुमले ने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों को नेपथ्य में धकेला है।लेकिन,एबीपी-सी वोटर के सर्वे के मुताबिक 8% लोग भी नहीं मानते इस बार मोदी का चेहरा काम आ पाएगा। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में मोदीजी ने 403सीटों में से 118 सीट पर रैलियां की थी और 102सीट जीतने में कामयाब हुए थे यानी कि उनका स्ट्राइक रेट 86% था मोदीजी ने पिछले 3महीने में उत्तरप्रदेश के 13 दौरे किए हैं।लेकिन,वह जलजला पैदा नहीं कर पाए जो 2017 में हुआ करता था।5जनवरी को फिरोजपुर (पंजाब)में अपनी रैली को मोदीजी ने जिस कारण भी रद्द किया हो,लेकिन संदेश यह गया है कि 70000कुर्सियों में से 700कुर्सियां भी नहीं भरी थी। और यह संदेश यह बताने के लिए काफी है कि उत्तर प्रदेश में पिछले 13दौरों में मोदीजी ने जो भीड़ जुटाई है वह उत्तरप्रदेश के प्रशासनिक महकमे के प्रयासों का नतीजा रहा है और इस बार मोदी जी के नाम का सिक्का नहीं चलने वाला।वह तो भला हो,कोरोना की लहर का-जिसकी आड़ में चुनाव आयोगने रैलियों, जुलूस,साइकिल रैली इत्यादि पर 15जनवरी तक प्रतिबंध लगा दिया है और कोरोना लहर को देखते हुए इस प्रतिबंध को आगे भी बढ़ाए जाने की उम्मीद की जा रही है।यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि इस चुनाव प्रक्रिया के दौरान मोदीजी अपनी रैलियों में कितनी भीड़ खींच पा रहे हैं।
डीबी लाइव के सर्वे के मुताबिक कुछ खास मुद्दों पर 40,000से ज्यादा मतदाताओं पर एक सर्वेक्षण किया गया जिसके नतीजे चौंकाने वाले हैं।71% लोगों ने विकास के मुद्दे पर योगी सरकार का परफॉर्मेंस अच्छा नहीं माना,वहीं रोजगार सृजन के मुद्दे पर 75% लोगों ने योगी सरकार के परफॉर्मेंस को अच्छा नहीं माना। विकास के मुद्दे पर सरकारी विज्ञापनों में जिस प्रकार कोलकाता के मां फ्लाईओवर की तस्वीर को योगी आदित्यनाथ के फोटो के साथ प्रसारित प्रसारित किया गया या फिर जेवर हवाई अड्डे के शिलान्यास के अवसर पर बीजिंग हवाई अड्डे की तस्वीरों को प्रचारित प्रसारित किया गया या श्रीशैलम के निकट कृष्णा नदी पर बने डैम बुंदेलखंड के लिए प्रचारित प्रसारित किया गया वह अपने आप में यह बताने के लिए काफी है कि विकास के मुद्दे पर योगी सरकार के पास बताने-कहने के लिए कुछ भी नहीं है और जब विकास हुआ ही नहीं तो रोजगार सृजन स्वाभाविक ही संभव नहीं दिखता।कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों की जो स्थिति सामने आई है उसने रोजगार सृजन के मुद्दे पर योगी आदित्यनाथ के दावों को पोल खोली है।
60%लोग नहीं मानते कि भ्रष्टाचार के मामले में योगी आदित्यनाथ सरकार का परफॉर्मेंस अच्छा है।अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण समिति के द्वारा भूमि-क्रय में करोड़ों के घोटाले के जो दस्तावेजी साक्ष्य सामने आए हैं,वह योगी आदित्यनाथ सरकार की भ्रष्टाचार के मुद्दे पर किसी दावे को सही नहीं ठहरा सकती।
63% लोग नहीं मानते योगी आदित्यनाथ की सरकार के दौरान कानून व्यवस्था की स्थिति अच्छी रही है। उन्नाव और हाथरस रेप केस, या फिर आगरा में बाल्मिकी समाज के साथ दुर्व्यवहार की जो घटना सामने आई हैं,इन लोगों की राय को सही ठहराती है। गोरखपुर में जिस प्रकार कानपुर के व्यवसायी की हत्या पुलिस अधिकारियों द्वारा की गई वह प्रशासनिक महकमे को रक्षक के ही भक्षक बन जाने की स्थिति पेश करती है।
योगी सरकार के कार्यकाल के दौरान किसानों की स्थिति बद से बदतर हुई है और 1वर्ष से ज्यादा समय तक चले किसान आंदोलन ने किसानों के बीच योगी आदित्यनाथ की अलोकप्रियता को स्थापित करता है।बिना संसद अथवा कैबिनेट के अप्रूवल के 19नवंबर,2021 को प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा काले कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की एकतरफा घोषणा किसानों को मनाने के प्रयास के रूप में परिभाषित किया गया।लेकिन,एमएसपी पर कमेटीका नहीं बनाने की भाजपा की वादाखिलाफी की कीमत उत्तर प्रदेश चुनाव में चुकानी पड़ेगी।
पिछले 15वर्षों में उत्तरप्रदेश ने मायावती,अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ को क्रमशः पांच-पांच वर्षों तक शासन करते देखा है।डीबी लाइव के सर्वे के मुताबिक,उत्तरप्रदेश के मतदाताओं ने किसानों की समस्याओं पर संवेदनशीलता,विकास और रोजगार सृजन के मुद्दे पर अखिलेश यादव की सरकार को योगी आदित्यनाथ की सरकार से बेहतर माना है। कानून व्यवस्था के मुद्दे पर मायावती को भी इस सर्वे में योगी आदित्यनाथ की सरकार से बेहतर माना गया है योगी आदित्यनाथ की सरकार का सबसे खराब परफॉर्मेंस लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन के मुद्दे पर माना गया है।90% से ज्यादा लोग मानते हैं कि योगी आदित्यनाथ असहमति के स्वर को प्रशासनिक स्तर से कुचलने का अलोकतांत्रिक प्रयास करते रहे हैैं।
कोरोना की तीसरी लहर ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कुव्यवस्था और कुप्रबंध की याद ताजा कर दी है और यह योगी सरकार की अलोकप्रियता का सबब बनेगी।महंगाई और बेरोजगारी भी योगी आदित्यनाथ को अलोकप्रिय स्थापित करेगी।
अयोध्या में श्रीराममंदिर निर्माण और काशी में विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन के बाद भाजपा ने मथुरा के मुद्दे को भी उठाया है।यह दिखलाता है कि आगामी चुनाव में भाजपा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को अपना मुख्य हथियार बनाएगी।योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में सांप्रदायिक उन्माद की घटनाएं लगातार बढ़ी है,यह नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से भी स्थापित हुआ है।पूरा भाजपा महकमा मुसलमानों को हाशिए पर धकेलने की कोशिश में जुटा हुआ है। लेकिन,भाजपा को सफलता मिलती नहीं दिख रही है और यह भाजपा के चिंता का सबब बना हुआ है।
प्रियंका गांधी ने महिलाओं को 40% टिकट देने और लड़कियों को स्कूटी देने का वादा करके चुनाव को जाति और संप्रदाय से ऊपर उठकर लैंगिक समस्याओं पर केंद्रित करने की कोशिश की है।प्रयाग में मोदी जी द्वारा महिलाओं का आयोजन से बात बनती नहीं दिख रही है और प्रियंका गांधी इस मुद्दे पर कम से कम बढ़त बनाती हुई दिख रही है।