लोकसभा चुनाव करीब आने के साथ ही राजनीतिक दल चुनाव में जीत की रणनीति बनाने में जुट गए हैं. इन सबके बीच उत्तर प्रदेश की प्रतिष्ठित सीटों में से एक लखनऊ पर सभी पार्टियों की नजर टिकी हुई हैं. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और वर्तमान में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की लोकसभा सीट पर इस बार कांग्रेस अपना परचम लहराना चाहती है. 1991 के बाद से लखनऊ भारतीय जनता पार्टी का गढ़ बन चुका है.
हालांकि इस बार के लोकसभा चुनव में भाजपा की राह आसान नहीं दिख रही हैं. कांग्रेस ने लखनऊ से पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद को मैदान में उतारने की तैयारी कर ली है. सूत्रों का कहना है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा, धौरहरा से जितिन प्रसाद को टिकट देने की तैयारी कर रही हैं. चुनावी रणनीतिकारों के मुताबिक जितिन को अगर लखनऊ के धौरहरा से चुनावी मैदान में उतारा जाए तो समीकरण काफी हद तक बदल सकते हैं.
जितिन प्रसाद एक ब्राह्मण हैं और शाहजहांपुर के एक प्रमुख राजनीतिक परिवार से संबंध रखते हैं. उनके पिता, स्वर्गीय जितेंद्र प्रसाद, कांग्रेस के दिग्गज नेता थे. जितिन ने 2004 में शाहजहांपुर से अपना पहला लोकसभा चुनाव जीता. 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने नवगठित धौरहरा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा और वहां भी जीत दर्ज कराई. हालांकि साल 2014 में उनका जादू नहीं चल सका और वह भाजपा से हार गए.
80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में धौरहरा निर्वाचन क्षेत्र में सातवें चरण में चुनाव होना है. लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस बहुत जल्द जितिन प्रसाद के नाम का ऐलान कर सकती है. सूत्रों के मुताबिक प्रियंका गांधी, जितिन प्रसाद के नाम पर पहले ही मुहर लगा चुकी हैं. News18 को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक जितिन प्रसाद पार्टी आलाकमान के फैसले के साथ जाएंगे. यह देखा जाना बाकी है कि कांग्रेस आखिर जितिन प्रसाद को धौरहरा से ही चुनाव क्यों लड़ाना चाहती है. इसका सबसे बड़ा कारण जो सामने दिखाई दे रहा है वह है मतदाताओं की संख्या का समीकरण. धौरहरा निर्वाचन क्षेत्र में किसी ब्राह्मण चेहरे को मैदान में उतारकर उनका वोट हासिल किया जा सकता है. कांग्रेस इस कदम से पार्टी के भीतर ब्राह्मण नेतृत्व को बढ़ावा देने और उच्च जाति के वोट-बैंक को आकर्षित करने की कोशिश करने का संदेश देना चाहती है. लखनऊ संसदीय क्षेत्र में लगभग 19 लाख मतदाता हैं. इसमें सवर्णों का 33% वोट शेयर है, जिसमें अकेले ब्राह्मणों का 14.5% वोट है. अन्य पिछड़ी जातियां लगभग 19% जनसंख्या, मुस्लिम 17%, अनुसूचित जाति 13% और सबसे पिछड़ी जातियांं लगभग 10% हैं.
सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में लखनऊ और वाराणसी लोकसभा सीट से बीजेपी को हराना किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं होगा. यही कारण है कि सपा-बसपा गठबंधन के बीच कांग्रेस ऐसे उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है जो भाजपा को परेशान कर सके. पार्टी का मानना है कि हो सकता है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में उसे उतना फायदा न भी मिले लेकिन आगे आने वाले समय में ब्राह्मण कार्ड उनके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है.