News Agency : एक्जिट पोल की खबरों ने विपक्षी दलों का दिल बैठा दिया है। एकाध को छोड़कर सभी कह रहे हैं कि दुबारा मोदी सरकार बनेगी। विपक्षी नेता अब या तो मौनी बाबा बन गए हैं या हकला रहे हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वे अगले तीन-चार दिन कैसे काटें। लेकिन भाजपा गदगद है। यदि एक्जिट पोल की भविष्यवाणियां सत्य सिद्ध हो गईं तो जैसा कि मैंने कल कहा था, भारत में एक मजबूत और स्थिर सरकार अगले पांच साल के लिए आ जाएगी लेकिन यह तो 23 मई को ही पता चलेगा। इसके अलावा एक्जिट पोल करने वाले लोगों को आप बेहद ईमानदार और निष्पक्ष मान लें तो भी उनका अपना रुझान तो होता ही है। जब ठोस तथ्य सामने न हों और आपके अंदाजी घोड़े दौड़ने हों तो वह रुझान आपके नतीजों पर हावी हो सकता है। इसीलिए कोई जिसे 350 सीटें देता है, उसे कोई और 150 में ही निपटा देता है। ऐसी स्थिति में एक्जिट पोल के नतीजों को दिल से लगा बैठना ठीक नहीं है। बहुत सुखी और बहुत दुखी होना ठीक नहीं है। फिर भी एक्जिट पोल और चुनाव के पहले होने वाले सर्वेक्षणों को आप एकदम अछूत भी घोषित नहीं कर सकते हैं। यह एक अनिवार्य मानवीय कमजोरी है। अब से चालीस-पचास साल पहले, जब कोई गर्भवती महिला प्रसूति-घर में जाती थी तो लोग डॉक्टरों से पूछते थे कि लड़का होगा या लड़की ? मतदान के बारे में यह रहस्य हमेशा बना रहेगा, क्योंकि उसका गुप्त रहना बेहद जरूरी है। चुनाव के पहले तरह-तरह की दर्जनों भविष्यवाणियां होती हैं। कई बार तीर फिसल जाता है और तुक्का निशाने पर बैठ जाता है।
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