राजनीतिक संवाददाता द्वारा
रांची. गिरीडीह के मधुवन में कांग्रेस का तीन दिवसीय चिंतन शिविर चल रहा है. चिंतन शिविर देश की लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का एक हिस्सा है और पार्टियां इस तरह का आयोजन करती रहती हैं. खासकर कांग्रेस में तो इसकी लंबी परंपरा रही है।. लेकिन मधुवन में चल रहा 3 दिवसीय चिंतन शिविर कोई सामान्य शिविर नहीं है. जिस पृष्ठभूमि में यह शिविर चल रहा है, वह पृष्ठभूमि इसे विशेष बना रही है.
दरअसल पिछले पखवाड़े राहुल गांधी ने झारखण्ड के विधायकों से मुलाकात की थी और उन सबसे निजी ताल्लुकात बढ़ाते हुए उनके गिले शिकवे भी सुने थे. उस मुलाकात में कांग्रेसी विधायकों ने जमकर अपनी भड़ास निकाली और उसके बाद ही मधुवन के इस शिविर की योजना बनाई गई. जाहिर है, राहुल गांधी को लगा होगा कि विधायकों को यूं ही असंतुष्ट नहीं छोड़ा जा सकता. इसलिए उन्हें एक शिविर में रखकर उन्हें थोड़ी और भड़ास निकालने का मौका दिया जाना चाहिए.
झारखंड के विधायकों की राहुल गांधी से मुलाकात भी एक विशेष पृष्ठभूमि में कराई गई थी. कुछ दिन पहले कांग्रेस के नेता आरपीएन सिंह कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे. आरपीएन सिंह हैं, तो उत्तर प्रदेश के, लेकिन पिछले कुछ सालों से वे कांग्रेस के झारखंड प्रभारी थे. इसके कारण उनके झारखंड के कांग्रेसी विधायकों से गहरी जान पहचान बनी हुई थी. अनेक तो उन्हीं के कारण विधायक बने थे, क्योंकि टिकट वितरण में आरपीएन सिंह की प्रमुख भूमिका थी. लिहाजा आरपीएन सिंह के कांग्रेस छोड़ने के बाद इस बात का डर बना कि कहीं झारखंड के कांग्रेसी विधायक एक मुश्त बीजेपी में शामिल न हो जाएं.
यह डर हवा हवाई नहीं था, बल्कि इसके ठोस आधार थे. यही कारण है कि राहुल गांधी एकाएक हरकत में आए और सभी विधायकों को दिल्ली बुला डाला. उनकी शिकायतें सुनी. उनका दर्द जाना. टूटने का खतरा भी शायद उन्होंने महसूस किया होगा. इसलिए उन्हें एकजुट रखने के लिए चिंतन शिविर का आयोजन करवा दिया. दरअसल यह चिंतन शिविर नहीं, बल्कि कांग्रेसी विधायकों टूटने की चिंता से आयोजित एक चिंता शिविर है.