15 साल तक दिल्ली का मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड शीला दीक्षित के नाम है. मुख्यमंत्री बनने से पहले वह कन्नौज से सांसद भी रह चुकी थीं. आम आदमी पार्टी के चुनावी मैदान में उतरने के बाद 2013 में न केवल उनकी पार्टी बल्कि उन्हें भी हार का मुंह देखना पड़ा था. इसके बाद उन्हें केरल का राज्यपाल बना दिया गया.
इसके बाद समझा जाने लगा था कि वह अघोषित रूप से राजनीति से संन्यास ले चुकी हैं लेकिन इसी साल जनवरी में 81 वर्षीय शीला दीक्षित को दिल्ली कांग्रेस कमिटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. और तो और अध्यक्ष बनाए जाने के बाद उन्हें उत्तर-पूर्वी दिल्ली से कांग्रेस का उम्मीदवार भी घोषित कर दिया गया है. शीला की जितनी अधिक उम्र है, उनके पास उतना राजनीतिक अनुभव भी है.
12 मई को दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर वोट डाले जाएंगे. उससे पहले वह किस तरह से चुनावी मैदान में अपने राजनीतिक अनुभव के जौहर दिखा रही हैं.
दिल्ली की सात लोकसभा सीटों पर मतदान में अब चंद ही दिन बचे हैं. आप दिल्ली कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष हैं और साथ ही उत्तर-पूर्वी दिल्ली से उम्मीदवार हैं. इस समय सातों सीटों पर कांग्रेस अपने विरोधियों को कितनी चुनौती दे पा रही है?
अब तक जो सूचनाएं मिल रही हैं और फ़ीडबैक आ रहे हैं, उससे लगता है हमें जीतना चाहिए. हमारे दोनों विरोधियों आम आदमी पार्टी और बीजेपी की छवि अच्छी नहीं है. आम आदमी पार्टी के नेताओं में हलचल मची है कोई आ रहा है और कोई जा रहा है. वहीं, हमारे पास ऐसी जानकारी है कि दूसरी पार्टी बीजेपी के वर्तमान सांसदों से लोग ख़ुश नहीं हैं इसलिए हमें उम्मीद है कि हम जीतेंगे.
दिल्ली के पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में कांग्रेस खिसक कर तीसरे पायदान पर आ गई थी. तो ऐसी क्या ठोस वजहें हैं जो आप कह रही हैं कि आपकी पार्टी के पक्ष में हवा है?
आप जो कह रहे हैं वो हक़ीक़त थी. हम नहीं जीत पाए थे लेकिन लोकतांत्रिक राजनीति में यह चीज़ें चलती रहती हैं कि कभी आप जीतें, कभी आप हारें और कभी पूरी तरह साफ़ हो जाएं. यह कोई अस्वाभाविक चीज़ नहीं है. चुनावी राजनीति का यह एक अंग है.
बीजेपी देशभक्ति के आधार पर दिल्ली में वोट मांग रही है. उसका यह भी कहना है कि मोदी सरकार आने के बाद से कोई ‘आतंकी हमला’ नहीं हुआ है. वहीं, आम आदमी पार्टी बिजली, पानी, अस्पताल के नाम पर वोट मांग रही है. कांग्रेस किस अधार पर वोट मांग रही है?
पूरे तीन कार्यकाल में हमने जो काम किया दिल्ली के लोग उसके गवाह हैं. उस वक़्त दिल्ली कितनी बदली थी यह देश और दुनिया में सब जानते हैं. लेकिन अब इन्होंने क्या किया है? मेरे ही क्षेत्र में चले जाइये वहां गंदगी के अलावा कुछ नहीं है. क्या अच्छे स्कूल बनाएं हैं? जो अस्पताल और स्कूल बनाएं हैं, वो भी हमने ही बनाए थे. वो बस हमारे काम को आगे ले जा रहे हैं और उसे भी ठीक से नहीं कर रहे हैं.
आम आदमी पार्टी के चुनावी कैंपेन में दिल्ली को पूर्ण राज्य दिलाने का मुद्दा भी शामिल है. आप 15 साल दिल्ली की मुख्यमंत्री रही हैं तो क्या दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाया जा सकता है?
संविधान दिल्ली को विशेष राज्य का दर्जा देता है. इसे आप संसद से ही बदल सकते हैं तभी यह हो सकता है लेकिन यहां लोगों को यह विश्वास दिलाया जा रहा है कि दिल्ली की यह जनता कर सकती है. तो असल में आम आदमी पार्टी लोगों को गुमराह कर रही है. माफ़ करिएगा मैं ऐसा शब्द इस्तेमाल कर रही हूं, असल में वह झूठ बोल रहे हैं.हमने भी पूरी कोशिश की थी लेकिन इसकी वजह से हमने अपना काम नहीं टाला बल्कि काम करते रहे.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी यही कहते हैं कि ‘वह हमें तंग करते रहे, हम काम करते रहे?’ (ग़ुस्सा होते हुए) क्या काम करते रहे, कभी अपने चीफ़ सेक्रेटरी को थप्पड़ मार देते हैं. केजरीवाल जी से मैं यह पूछना चाहती हूं कि उन्होंने जनता से वादा किया था कि वह बिजली-पानी मुफ़्त देंगे क्या उन्होंने दिया?
बिजली-पानी फ़्री नहीं हुआ लेकिन जनता के पास जाइये तो वह कहती है कि बिजली के बिल ज़रूर कम हुए हैं?
बिजली का बिल तो कभी ज़्यादा होता है कभी कम होता है यह तो नीति है. उन्होंने क्या कहा था मैं यह आपसे पूछना चाहती हूं. उन्होंने कहा था हम फ़्री दे देंगे. (नाराज़ होते हुए) क्या आप मेरे पास उनकी तरफ़ से आए हैं.मोदी सरकार के पांच साल के कार्यकाल को आप किस तरह से देखती हैं?
आप बताइये कैसा है? उन्होंने कहा था कि 15-15 लाख हम सबको देंगे. क्या उन्होंने यह दिया? मुझे लगता है आम आदमी पार्टी और बीजेपी जैसी पार्टियां यह सब लोगों को गुमराह करने के लिए वादे करते हैं ताकि लोगों के मन में लालच आ जाए. वोट लेकर सरकार बनाकर यह पार्टियां वादे भूल जाती हैं. लोगों को यह एहसास होना चाहिए कि यह जो कहते हैं वह ज़रूरी नहीं कि करेंगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी भाषणों में आक्रामकता आई है. एक भाषण में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को ‘भ्रष्टाचारी नंबर वन’ तक कह दिया. चुनावी भाषणों की भाषा को आप किस तरह से देखती हैं?
यह बहुत बदतमीज़ी है. राजीव गांधी आज इस दुनिया में नहीं हैं. देश के लिए जो राजीव गांधी ने किया वह सब जानते हैं लेकिन इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि कहीं न कहीं वह घबराए हुए हैं. इसी वजह से वह ऐसे मुद्दे उठा रहे हैं जिनके कोई मायने नहीं हैं.
एक अख़बार की कटिंग सोशल मीडिया पर शेयर हो रही है जिसमें लिखा है कि 39 दिन में प्रधानमंत्री मोदी ने 105 रैलियां कीं और 56 दिन में राहुल गांधी ने 102 रैलियां कीं. इसके ज़रिए मोदी और राहुल गांधी की तुलना की गई है. यह दिखाता है कि मोदी साब बुरी तरह से घबराए हुए हैं.
आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन की चर्चाएं चल रही थीं. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि कांग्रेस ही गठबंधन नहीं चाहती है. क्या वजहें थीं जो गठबंधन नहीं हो पाया?
वो बात इतिहास हो चुकी है और इस वक़्त उसकी बात करने का क्या फ़ायदा है. हम अपनी सात सीटें लड़ रहे हैं, वो अपनी लड़ रहे हैं. यह दोनों पार्टियों की वजह से नहीं है क्योंकि वह दोनों किसी आम सहमति पर नहीं पहुंच पाए. आप लोग गठबंधन में क्यों इतनी रुचि ले रहे हैं, आपको कोई कमी दिखाई देती होगी लेकिन हम सात की सात सीटें जीत रहे हैं. गठबंधन ने हमें क्या लाभ देना था और हो सकता है इससे उन्हें लाभ हो रहा हो.
उत्तर-पूर्वी दिल्ली सीट से आपके सामने बीजेपी दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी हैं तो वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार दिलीप पांडे हैं. आप किसे बड़ी चुनौती मानती हैं?
देखिए हम चुनाव जीतने के लिए लड़ रहे हैं और पूरी कोशिश कर रहे हैं. अभी मैं कुछ नहीं कहना चाहती हूं. देखेंगे कि क्या होता है.
गांधी परिवार के आप क़रीबी रही हैं और राहुल गांधी को राजनीतिक रूप से परिपक्व होते देखा है. आपको क्या लगता है कि वह देश का नेतृत्व अब कर सकते हैं?
आप सब लोग गांधी परिवार की बात करते हैं. मैं आपसे गांधी परिवार की बात कहना चाहती हूं. हां, वो हमारे नेता हैं और हमारे नेता इसलिए भी हैं क्योंकि उन्होंने पिछला चुनाव छोड़कर जो भी चुनाव लीड किया है वो जीते हैं. जब हम उन्हें स्वीकार करते हैं और जनता भी स्वीकार करती है तो इसमें किसी को दिक्कत होनी ही नहीं चाहिए.
(बीबीसी से साभार)